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अंतरिक्ष में मिले 5 लाख ऐसे तारे...जो भविष्य में बन सकते हैं धरती की 'बैटरी'

भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में ऐसे पांच लाख तारों की खोज की है, जो लिथियम से भरे हुए हैं. अगर किसी तरह से इन तारों से लिथियम लाने की व्यवस्था या तकनीक विकसित कर ली जाए तो सैकड़ों सालों दुनिया को ग्रीन और क्लीन एनर्जी का स्रोत मिल जाएगा.

भारतीय वैज्ञानिक ने खोजे लिथियम से भरे तारे. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी) भारतीय वैज्ञानिक ने खोजे लिथियम से भरे तारे. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
aajtak.in
  • नई दिल्ली/बेंगलुरु,
  • 01 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 10:52 AM IST
  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स की स्टडी.
  • भविष्य में स्पेस कॉलोनी बनाने में मिलेगी मदद!
  • फिलहाल अंतरिक्ष से खनिज लाने की तकनीक नहीं.

स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक कारों आदि में लगने वाली लिथियम आयन बैटरी के लिए जमीन के भीतर से लिथियम निकाला जाता है. जो कि धरती में काफी कम मात्रा में है. लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में ऐसे पांच लाख तारों की खोज की है, जो लिथियम से भरे हुए हैं. अगर किसी तरह से इन तारों से लिथियम लाने की व्यवस्था या तकनीक विकसित कर ली जाए तो सैकड़ों सालों दुनिया को ग्रीन और क्लीन एनर्जी का स्रोत मिल जाएगा. 

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करीब चार दशकों से खगोलविदों को यह जानकारी है कि कुछ खास प्रकार के तारे होते हैं, जहां लिथियम का अकूत भंडार है. उनकी सतह पर लिथियम की मात्रा काफी ज्यादा है. सूरज जैसे रेड जायंट (Red Giants) तारों की सतह पर लिथियम की मात्रा काफी ज्यादा पाई जाती है. लेकिन गर्म प्लाज्मा के चलते ये लिथियम खत्म हो जाता है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) बेंगलुरु के साइंटिस्ट दीपक और यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के प्रो. डेविड एल लैम्बर्ट ने इस बात की पुष्टि की है कि लिथियम से भरपूर तारों के केंद्र में हीलियम का जलता हुआ केंद्र है. 

सूरज जैसे तारों के अंदर हीलियम के गर्म केंद्र की वजह से सतह पर बनता है लिथियम. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)

यह स्टडी हाल ही में MNRAS नाम के जर्नल में प्रकाशित हुई है. जिसमें यह बताया गया है कि कैसे अत्यधिक गर्म हीलियम कोर फ्लैश के जरिए लिथियम का उत्पादन होता है. दीपक कहते हैं कि वैज्ञानिकों ने तारों की सतह पर लिथियम का अंदाजा तो लगाया था लेकिन यह जानकारी नहीं थी कि यह कैसे इतनी ज्यादा मात्रा में मिलता है या बनता है. रेड जायंट्स की यह सामान्य प्रक्रिया होती है कि वो लिथियम का निर्माण करता है. यानी सूरज की सतह पर लिथियम की मात्रा काफी ज्यादा होगा. 

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ऑस्ट्रेलियन पक्षी पर दिया गया तारों का नाम

दीपक कहते हैं कि सवाल ये उठता है कि आखिर लिथियम बन कैसे रहा है. क्या प्रोसेस है इसके पीछे. इसलिए हमने और प्रो. डेविड एल. लैम्बर्ट ने अंतरिक्ष में मौजूद 5 लाख तारों का सर्वे करना शुरु किया. स्टडी के लिए ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में मौजूद 3.9 मीटर के एंग्लो-ऑस्ट्रेलियन टेलिस्कोप की मदद ली गई. इस सर्वे को नाम दिया गया गालाह (GALAH). गालाह एक ऑस्ट्रेलियन पक्षी है. 

भविष्य में स्पेस कॉलोनी बनाने में मिल सकती है मदद

इस सर्वे के तहत लिथियम से भरे तारों को गालाह तारा (Galah Stars) नाम दिया गया है. इसमें तारों के मास (Mass) और मेटैलेसिटी (Metallicity) पर काम किया गया है. इन पांच लाख तारों में से गालाह तारों को अलग करने के बाद पता चला कि इनके पास लिथियम का भंडार है. बस ऐसी तकनीक विकसित करनी है जिससे लिथियम को लाकर उनका उपयोग किया जा सके. हालांकि इसे करने में ही सैकड़ों साल लग सकते हैं. क्योंकि इन तारों की दूरी काफी ज्यादा है. भविष्य में स्पेस में कॉलोनी बनाने में इन लिथियम तारों से लिथियम लेकर ऊर्जा के स्रोत को पैदा किया जा सकता है.

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