
लैरेंज प्वाइंट (Lagrange Point). यानी L. यह नाम गणितज्ञ जोसेफी-लुई लैरेंज के नाम पर दिया गया है. इन्होंने ही इन लैरेंज प्वाइंट्स को खोजा था. जब किसी दो घूमते हुए अंतरिक्षीय वस्तुओं के बीच ग्रैविटी का एक ऐसा प्वाइंट आता है, जहां पर कोई भी वस्तु या सैटेलाइट दोनों ग्रहों या तारों की गुरुत्वाकर्षण से बचा रहता है.
आदित्य-L1 के मामले में यह धरती और सूरज दोनों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से बचा रहेगा. लॉन्च के बाद आदित्य 16 दिनों तक धरती के चारों तरफ चक्कर लगाएगा. इस दौरान पांच बार ऑर्बिट बदला जाएगा. ताकि सही गति मिले. फिर आदित्य का ट्रांस-लैरेंजियन 1 इंसर्शन होगा. यहां से शुरू होगी 109 दिन की लंबी यात्रा. जैसे ही आदित्य-L1 पर पहुंचेगा, वह वहां पर एक ऑर्बिट मैन्यूवर करेगा. ताकि L1 प्वाइंट के चारों तरफ चक्कर लगा सके.
हमारे सूरज की अपनी ग्रैविटी है. धरती की अपनी ग्रैविटी है. अंतरिक्ष में जहां पर दोनों की ग्रैविटी टकराती है. या यूं कहें जहां पर धरती की ग्रैविटी का असर खत्म होता है. वहां से सूरज की ग्रैविटी का असर शुरू होता है. इसी प्वाइंट को लैरेंज प्वाइंट कहते हैं. धरती और सूरज के बीच ऐसे पांच लैंरेंज प्वाइंट हैं. भारत का सूर्ययान लैरेंज प्वाइंट वन यानी L1 पर तैनात होगा.
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सूरज से 14.85 करोड़ और धरती से 15 लाख किमी दूर रहेगा Aditya-L1
दोनों की ग्रैविटी की जो सीमा है वहां कोई छोटी वस्तु लंबे समय तक रह सकती है. वह दोनों की ग्रैविटी के बीच फंसी रहेगी. इससे स्पेसक्राफ्ट का ईंधन कम इस्तेमाल होता है. वह ज्यादा दिन काम करता है. जहां तक L1 की बात रही तो यह सूरज और धरती की सीधी रेखा के बच स्थित है. यह सूरज और धरती की कुल दूरी का एक फीसदी हिस्सा है. यानी 15 लाख किलोमीटर. जबकि, सूरज से धरती की दूरी 15 करोड़ किलोमीटर है
ऐसे पूरी होगी आदित्य-एलवन की यात्रा.
- आदित्य-L1 अपनी यात्रा की शुरुआत लोअर अर्थ ऑर्बिट (LEO) से करेगा. यानी PSLV-XL रॉकेट उसे तय LEO में छोड़ देगा.
- इसके बाद धरती क चारों तरफ पांच ऑर्बिट मैन्यूवर करके सीधे धरती की गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्र यानी स्फेयर ऑफ इंफ्लूएंस (SOI) से बाहर जाएगा. फिर शुरू होगी क्रूज फेज. यह थोड़ी लंबी चलेगी.
- आदित्य-L1 को हैलो ऑर्बिट (Halo Orbit) में डाला जाएगा. जहां पर L1 प्वाइंट होता है. इस यात्रा में इसे 109 दिन लगेंगे. इसे कठिन इसलिए माना जा रहा है क्योंकि इसे दो बड़े ऑर्बिट में जाना है.
कितनी कठिनाई है रास्ते में...
- पहली कठिनाई है धरती के धरती के SOI से बाहर जाना. क्योंकि पृथ्वी अपने गुरुत्वाकर्षण शक्ति से आसपास मौजूद हर चीज को अपनी ओर खींचती है.
- दूसरी कठिनाई है क्रूज फेज और हैलो ऑर्बिट में L1 पोजिशन को कैप्चर करना. अगर आदित्य की गति को नियंत्रित नहीं किया तो वह सीधे सूरज की तरफ चला जाएगा. जलकर खाक हो जाएगा.
आदित्य-L1 असल में है क्या?
Aditya-L1 भारत की पहली अंतरिक्ष आधारित ऑब्जरवेटरी (Space Based Observatory) है. यह सूरज से इतनी दूर तैनात होगा कि उसे गर्मी तो लगे लेकिन खराब न हो. क्योंकि सूरज की सतह से थोड़ा ऊपर यानी फोटोस्फेयर का तापमान करीब 5500 डिग्री सेल्सियस रहता है. केंद्र का तापमान 1.50 करोड़ डिग्री सेल्सियस रहता है. ऐसे में किसी यान या स्पेसक्राफ्ट का वहां जाना संभव नहीं है.