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ISRO Foundation Day 2023: 417 विदेशी सैटेलाइट, 217 देसी मिशन... आजादी के जश्न से जुड़ी है इसरो की भी हिस्ट्री

आजादी के जश्न से ISRO का सीधा नाता है. 54 साल पहले आज ही के दिन इसरो की स्थापना हुई थी. तब से लेकर इसरो ने सिवाय देश के काम आने. नाम ऊंचा करने के अलावा कुछ नहीं किया. दुनिया नंबर एक स्पेस एजेंसी है, जिसके कॉमर्शियल लॉन्च की तारीफ सबसे ज्यादा होती है. इसरो किफायती है. इंसानियत के लिए काम करती है.

15 अगस्त 1969 को ISRO की स्थापना हुई थी. डॉ. विक्रम साराभाई ने बनाई थी पूरी योजना. 15 अगस्त 1969 को ISRO की स्थापना हुई थी. डॉ. विक्रम साराभाई ने बनाई थी पूरी योजना.
ऋचीक मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 15 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 12:19 PM IST

54 साल... 34 देशों के 417 सैटेलाइट्स, 116 स्पेसक्राफ्ट मिशन, 86 लॉन्च मिशन, 13 स्टूडेंट सैटेलाइट और 2 री-एंट्री मिशन. ये है ISRO का गौरवशाली इतिहास. सफलता के अंतरिक्ष में भारतीय स्पेस एजेंसी का परचम लहरा रहा है. आज यानी 15 अगस्त 2023 को इसरो का स्थापना दिवस है. आज ही के दिन 1969 में देश के गौरवशाली वैज्ञानिक संस्थान की शुरुआत हुई थी. इसरो ने पहले देश को संभाला. लोगों की भलाई के लिए काम किए. फिर स्पेस मिशन. 

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation - ISRO), जो सीधे देश के प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है. वह अंतरिक्ष आधारित एप्लीकेशन, अंतरिक्ष में खोज, अंतरराष्ट्रीय स्पेस कॉपरेशन और संबंधित मिशन के लिए तकनीक विकसित करता है. 

इसरो दुनिया की छह बड़ी स्पेस एजेंसियों में शामिल है, जिसके पास खुद के रॉकेट्स हैं. क्रायोजेनिक इंजन है. जो दूसरे ग्रहों पर मिशन लॉन्च कर सकता है. जिसके पास भारी मात्रा में आर्टिफिशियल सैटेलाइट्स हैं. 15 अगस्त 1969 में तो इसका नाम बदला. इससे पहले 1962 में देश के महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के कहने पर सरकार ने इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च (INCOSPAR) बनाया. जो बाद में इसरो बन गया. 

पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट, आधा दर्जन प्रकार के रॉकेट

इसरो का पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट (Aryabhata) था. जिसे सोवियत स्पेस एजेंसी इंटरकॉसमॉस ने 1975 में लॉन्च किया था लेकिन 5 साल बाद ही इसरो ने अपना पहला सैटेलाइट RS-1 अपने घर से लॉन्च किया. इसके बाद इसरो रुका नहीं. इसरो के पास आधा दर्जन प्रकार के रॉकेट हैं. सैटेलाइट के वजन के हिसाब से अलग-अलग रॉकेट. 

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रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट्स का सबसे बड़ा नेटवर्क

भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट नेटवर्क है. चांद पर तीन और मंगल पर एक मिशन भेज चुका है. भविष्य में इंसानों को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी में लगा है. सेमी-क्रायोजेनिक इंजन का विकास किया जा रहा है. चांद और मंगल के बाद सूर्य और शुक्र पर भी स्पेसक्राफ्ट भेजने की तैयारी है. 

भारत भविष्य में स्पेस स्टेशन भी बनाएगा

रीयूजेबल लॉन्चर्स, हैवी और सुपर हैवी रॉकेट्स बनाने की तैयारी चल रही है. अपना स्पेस स्टेशन बनाने की योजना है. भविष्य में सौर मंडल के अन्य ग्रह यानी बृहस्पति, यूरेनस और नेपच्यून समेत कुछ एस्टेरॉयड्स पर भी मिशन भेजे जाएंगे. देश को आगे बढ़ाने में इसरो का महत्वपूर्ण योगदान है. आपदाओं से बचाया है. टेलिमेडिसिन, संचार, टीवी, नेविगेशन और डिफेंस के लिए निगरानी की व्यवस्था की है. 

इन महान वैज्ञानिकों ने की थी इसरो की शुरुआत 

एसके मित्रा, सीवी रमन, मेघनाद साहा, विक्रम साराभाई, सतीश धवन, होमी जहांगीर भाभा, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, एचजीएस मूर्ति, वामन दत्तात्रेय पटवर्धन जैसे वैज्ञानिकों ने इसरो के अलग-अलग सेंटर्स, तकनीक, रॉकेट्स, इंजन आदि को विकसित करने में मदद की. 1980 में जब भारत ने पहला सैटेलाइट रोहिणी सीरीज-1 (RS-1) देश से लॉन्च किया, तब भारत दुनिया के उन सात देशों की सूची में शामिल हो गया जिनके पास रॉकेट लॉन्च की सुविधा थी. सैटेलाइट बनाने की ताकत थी. ये देश थे- सोवियत संघ, अमेरिका, फ्रांस, इंग्लैंड, चीन और जापान. 

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रॉकेट बनाते गए, सैटेलाइट्स छोड़ते गए

SLV-3 रॉकेट से 1983 में लॉन्चिंग बंद कर दी गई. इसके बाद शुरू हुई ASLV रॉकेट्स की उड़ान. जिन्हें ऑगमेंटेड सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल कहते थे. इसके बाद PSLV यानी पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल और फिर GLSV यानी जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल रॉकेट बनाए गए. ASLV रॉकेट्स ने चार लॉन्च किए जिसमें से दो विफल रहे. इसके बाद अगर पीएसएलवी रॉकेट की बात करें तो इससे अब तक 58 लॉन्चिंग की गई है. जिसमें से सिर्फ दो ही लॉन्च विफल हुए हैं. 

जहां तक बात रही GSLV रॉकेट्स के उड़ान की तो अब तक 15 लॉन्च हो चुके हैं. जिनमें से चार विफल हो चुके हैं. GSLV-Mk3 रॉकेट की सात उड़ाने हुईं हैं. 100 फीसदी सफलता दर रही है इस रॉकेट की. इसके अलावा स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) भी है. ये नया रॉकेट है छोटे सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग के लिए. इसके दो लॉन्च हुए हैं, दोनों ही सफल रहे हैं. 

इसरो बनने के समय क्या कहा था साराभाई ने

डॉ. विक्रम साराभाई ने कहा था कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो विकासशील देश में अंतरिक्ष गतिविधियों की प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हैं. हमारे लिए, उद्देश्य की कोई अस्पष्टता नहीं है. हमारे पास चंद्रमा या ग्रहों की खोज या मानवयुक्त अंतरिक्ष-उड़ान में आर्थिक रूप से उन्नत देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने की कल्पना नहीं है. लेकिन हम आश्वस्त हैं कि यदि हमें राष्ट्रीय स्तर पर और राष्ट्रों के समुदाय में एक सार्थक भूमिका निभानी है, तो हमें मनुष्य और समाज की वास्तविक समस्याओं के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियों को विकसित कर उनके इस्तेमाल किसी से पीछे नहीं रहना चाहिए. हमें ध्यान देना चाहिए कि हमारी समस्याओं के लिए परिष्कृत प्रौद्योगिकियों और विश्लेषण के तरीकों के इस्तेमाल को भव्य योजनाओं को शुरू करने को लेकर भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए. हम देश के आर्थिक विकास के लिए काम करेंगे न कि दिखावे के लिए.

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प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए ढेरों सैटेलाइट

इसरो के पास दो मुख्य सैटेलाइट सिस्टम है. पहला इंडियन नेशनल सैटेलाइट सिस्टम (INSAT) जिनसे पूरे देश में संचार व्यवस्था बनी रहती है. दूसरा इंडियन रिमोट सेंसिंग प्रोग्राम (IRS). इन उपग्रहों की बदौलत प्राकृतिक संसाधनों, आपदाओं आदि की जानकारी मिलती है. 

इसरो सिर्फ रॉकेट लॉन्च नहीं करता... और भी बड़े काम है इसके जिम्मे

इसरो रॉकेट और सैटेलाइट लॉन्चिंग के अलावा और भी कई काम करता है. देश में इसके छह रिसर्च फैसिलिटी हैं. तिरुवनंतपुरम में विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर. यहां बनते हैं रॉकेट. तिरुवनंतपुरम और बेंगलुरु में मौजूद है लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर. यहां इंजनों का विकास किया जाता है. अहमदाबाद के फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी में खगोलीय विज्ञान से संबंधित काम होते हैं. इसकी एक ऑब्जरवेटरी उदयपुर में भी है. 

तिरुपति में नेशनल एटमॉस्फियरिक रिसर्च लेबोरटरी है. जहां पर वायुमंडल से संबंधित स्टडी की जाती है. अहमदाबाद में स्पेस एप्लीकेशन सेंटर है. जहां पर संचार, सर्वे, रिमोट सेंसिंग, मौसम, पर्यावरण संबंधी स्पेस एप्लीकेशन बनाए जाते हैं. उन्हें सैटेलाइट में लगाकर अंतरिक्ष में भेजा जाता है. शिलॉन्ग में नॉर्थ-ईस्टर्न स्पेस एप्लीकेशन सेंटर है. यह रिमोट सेंसिंग, जीआईएस, संचार और स्पेस साइंस के लिए काम करता है. 

इसरो के पास महेंद्रगिरी में प्रोपल्शन कॉम्प्लेक्स है. जहां पर लिक्विड इंजनों, स्टेज इंजन, और सेटेलाइट्स के इंजनों की जांच होती है. इसके अलावा चार कंस्ट्रक्शन और लॉन्च फैसिलिटी हैं. बेंगलुरु स्थित यूआर राव सैटेलाइट सेंटर. यहां पर सैटेलाइट्स की असेंबलिंग और निर्माण होता है. क्वालिटी चेक होती है. लेबोरेटरी फॉर इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स में ऊंचाई से संबंधित सेंसर बनते हैं. 

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श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से रॉकेट लॉन्च किया जाता है. इसके अलावा तिरुवनंतपुरम में थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन हैं. जहां से साउंडिंग रॉकेट्स की लॉन्चिंग होती है. इसरो के ट्रैकिंग और कंट्रोल फैसिलिटी की भरमार है. बेंगलुरु में मौजूद है- इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क, इसरो टेलिमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क, स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस कंट्रोल सेंटर है. हैदराबाद में नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर है. इसकी शाखाएं बालानगर और शादनगर में भी है. देहरादून में इसकी ट्रेनिंग होती है. 

ISRO के ट्रेनिंग सेंटर्स, जहां बनते हैं बड़े वैज्ञानिक

देहरादून स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग. तिरुवनंतपुरम का इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी. अहमदाबाद में डेवलपमेंट एंड एजुकेशनल कम्यूनिकेशन यूनिट. अगरतला, भोपाल, जालंधर, नागपुर, राउरकेला और तिरुचिरापल्ली में स्पेस टेक्नोलॉजी इन्क्यूबेशन सेंटर्स हैं. बुर्ला और संबलपुर में स्पेस इनोवेशन सेंटर हैं. वाराणसी, गुवाहाटी, कुरुक्षेत्र, जयपुर, मैंगलुरु और पटना में रीजनल एकेडेमी सेंटर फॉर स्पेस है.  

भविष्य में कौन-कौन से बड़े मिशन हैं... 

इसरो भारतीय एस्ट्रोनॉट्स को अंतरिक्ष में भेजने के लिए गगनयान मिशन की तैयारी कर रहा है. अगले डेढ़ या दो साल में हमारे अंतरिक्षयात्री स्पेस में यात्रा करेंगे. चंद्रयान सीरीज में तीन और यान भेजे जा सकते हैं. ये काम 2035 तक किया जाएगा. इसके अलावा सूर्ययान यानी आदित्य-एल1 अगस्त के अंत तक लॉन्च होने की संभावना है. अगले साल ही शुक्र ग्रह की स्टडी के लिए शुक्रयान लॉन्च किया जा सकता है. अगले साल ही मंगलयान-2 की भी योजना है. 2030 तक मंगलयान-3 भी भेजा जा सकता है.   

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