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ISRO को अंतरिक्ष में बड़ी कामयाबी, SpaDeX सैटेलाइट्स की डी-डॉकिंग सफल... गगनयान मिशन को मिलेगी मजबूती

SpaDeX मिशन 30 दिसंबर 2024 को लॉन्च किया गया था. इस मिशन के तहत ISRO ने दो सैटेलाइट्स (SDX01 और SDX02) को कक्षा में स्थापित किया था. इनका उद्देश्य अंतरिक्ष में डॉकिंग (जुड़ने) और फिर अलग होने की तकनीक का परीक्षण करना था. 16 जनवरी 2025 को इन सैटेलाइट्स को सफलतापूर्वक जोड़ा (dock) गया था. अब 13 मार्च 2025 को सुबह 9:20 बजे ISRO ने पहली ही कोशिश में इन्हें अलग करने में सफलता हासिल कर ली.

SpaDex सैटेलाइट्स को सफलतापूर्वक अलग कर दिया गया SpaDex सैटेलाइट्स को सफलतापूर्वक अलग कर दिया गया
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 13 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 7:31 PM IST

ISRO ने गुरुवार को SpaDeX (स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट) सैटेलाइट्स को सफलतापूर्वक अलग (de-dock) कर दिया. यह उपलब्धि भविष्य के चंद्रमा मिशनों, मानव अंतरिक्ष यात्रा और भारत के अपने अंतरिक्ष स्टेशन की राह आसान बनाएगी. केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'X' पर इसकी घोषणा की. 

उन्होंने कहा, "SpaDeX सैटेलाइट्स ने अविश्वसनीय डी-डॉकिंग पूरी की. यह भविष्य के मिशनों जैसे भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Bharatiya Antriksha Station), चंद्रयान-4 और गगनयान के लिए रास्ता साफ करता है. ISRO टीम को बधाई. हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण."

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SpaDeX मिशन क्या है?

SpaDeX मिशन 30 दिसंबर 2024 को लॉन्च किया गया था. इस मिशन के तहत ISRO ने दो सैटेलाइट्स (SDX01 और SDX02) को कक्षा में स्थापित किया था. इनका उद्देश्य अंतरिक्ष में डॉकिंग (जुड़ने) और फिर अलग होने की तकनीक का परीक्षण करना था. 16 जनवरी 2025 को इन सैटेलाइट्स को सफलतापूर्वक जोड़ा (dock) गया था. अब 13 मार्च 2025 को सुबह 9:20 बजे ISRO ने पहली ही कोशिश में इन्हें अलग करने में सफलता हासिल कर ली.

अब आगे क्या?

ISRO ने बताया कि सैटेलाइट्स अब स्वतंत्र रूप से अपनी कक्षा में घूम रहे हैं और उनकी स्थिति सामान्य है. इस उपलब्धि के साथ, भारत ने अंतरिक्ष में मिलने, जुड़ने और अलग होने की पूरी प्रक्रिया को सफलतापूर्वक परखा है. आने वाले दिनों में ISRO इन सैटेलाइट्स पर और भी महत्वपूर्ण प्रयोग करेगा. यह पूरा ऑपरेशन बेंगलुरु, लखनऊ और मॉरीशस स्थित ग्राउंड स्टेशनों से नियंत्रित किया गया था.

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यह उपलब्धि क्यों खास है?

ISRO ने बताया कि यह एक किफायती (cost-effective) प्रयोग था, जो भविष्य में भारत के अंतरिक्ष अभियानों के लिए बहुत उपयोगी साबित होगा. अंतरिक्ष में डॉकिंग और डी-डॉकिंग की यह तकनीक भारत के अंतरिक्ष स्टेशन बनाने और मानव मिशनों में अहम भूमिका निभाएगी.

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