
ISRO 2 सितंबर 2023 की सुबह 11.50 बजे आदित्य-एल1 (Aditya-L1) मिशन लॉन्च करने जा रहा है. यह भारत की पहली अंतरिक्ष आधारित ऑब्जरवेटरी (Space Based Observatory) है. लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से की जाएगी. इस यात्रा के दौरान आदित्य-एल1 15 लाख किलोमीटर की यात्रा करेगा.
यह चांद की दूरी से करीब चार गुना ज्यादा है. लॉन्चिंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है PSLV-XL रॉकेट. जिसका नंबर है PSLV-C57. आदित्य अपनी यात्रा की शुरुआत लोअर अर्थ ऑर्बिट (LEO) से करेगा. उसके बाद यह धरती की गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्र यानी स्फेयर ऑफ इंफ्लूएंस (SOI) से बाहर जाएगा. फिर शुरू होगी क्रूज फेज.
यह थोड़ी लंबी चलेगी. इसके बाद इसे हैलो ऑर्बिट (Halo Orbit) में डाला जाएगा. जहां पर L1 प्वाइंट होता है. यह प्वाइंट सूरज और धरती के बीच में स्थित होता है. लेकिन सूरज से धरती की दूरी की तुलना में मात्र 1 फीसदी है. इस यात्रा में इसे 127 दिन लगने वाला है.
सूरज की स्टडी क्यों?
सूरज हमारा तारा है. उससे ही हमारे सौर मंडल को ऊर्जा यानी एनर्जी मिलती है. इसकी उम्र करीब 450 करोड़ साल मानी जाती है. धरती से इसकी दूरी करीब 15 करोड़ किलोमीटर है. बिना सौर ऊर्जा के धरती पर जीवन संभव नहीं है. सूरज की ग्रैविटी की वजह से ही इस सौर मंडल में सभी ग्रह टिके हैं. नहीं तो वो कब का सुदूर गहरे अंतरिक्ष में तैर रहे होते.
सूरज का केंद्र यानी कोर का तापमान अधिकतम 1.50 करोड़ डिग्री सेल्सियस रहता है. यहां पर न्यूक्लियर फ्यूजन होता है. इसी की वजह से सूरज चारों तरफ आग उगलता हुआ दिखता है. सतह से थोड़ा ऊपर यानी इसके फोटोस्फेयर का तापमान 5500 डिग्री सेल्सियस तक रहता है. सूरज की स्टडी इसलिए ताकि उसकी बदौलत सौर मंडल के बाकी ग्रहों की समझ भी बढ़ सके.
धरती ही नहीं, अंतरिक्ष का मौसम भी जरूरी
सूरज की वजह से लगातार धरती पर रेडिएशन, गर्मी, मैग्नेटिक फील्ड और चार्ज्ड पार्टिकल्स का बहाव आता है. इसी बहाव को सौर हवा या सोलर विंड कहते हैं. ये उच्च ऊर्जा वाली प्रोटोन्स से बने होते हैं. सोलर मैग्नेटिक फील्ड का पता चलता है. जो कि बेहद विस्फोटक होता है. यहीं से कोरोनल मास इजेक्शन (CME) होता है. इसकी वजह से आने वाले सौर तूफान से धरती को कई तरह के नुकसान की आशंका रहती है. इसलिए अंतरिक्ष के मौसम को जानना जरूरी है. यह मौसम सूरज की वजह से बनता और बिगड़ता है.
आदित्य मिशन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- आदित्य सूरज के कोरोना से निकलने वाली गर्मी और गर्म हवाओं की स्टडी करेगा.
- सौर वायुमंडल को समझने का प्रयास करेगा.
- सौर हवाओं के विभाजन और तापमान की स्टडी करेगा.
- सौर तूफानों के आने की वजह, सौर लहरों और उनका धरती के वायुमंडल पर क्या असर होता है, इसकी स्टडी करेगा.
आदित्य में खास बात क्या है, क्यों है ये अलग?
- आदित्य-एल1 भारत का पहला सोलर मिशन है.
- सबसे महत्वपूर्ण पेलोड विजिबल लाइन एमिसन कोरोनाग्राफ (VELC) है. इसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स ने बनाया है.
- सूर्ययान में 7 पेलोड्स हैं. जिनमें से 6 पेलोड्स इसरो और अन्य संस्थानों ने बनाया है.
- आदित्य-एल1 स्पेसक्राफ्ट को धरती और सूरज के बीच एल1 ऑर्बिट में रखा जाएगा. यानी सूरज और धरती के सिस्टम के बीच मौजूद पहला लैरेंजियन प्वाइंट. इसलिए उसके नाम में L1 जुड़ा है.
- L1 असल में अंतरिक्ष का पार्किंग स्पेस है. जहां कई उपग्रह तैनात हैं.
- भारत का सूर्ययान धरती से 15 लाख km दूर स्थित इस प्वाइंट से सूरज की स्टडी करेगा. करीब नहीं जाएगा.
सूर्य की HD फोटो मिलेगी हमें...
सूर्ययान में लगा VELC सूरज की HD फोटो लेगा. इस स्पेसक्राफ्ट को PSLV रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा. इस पेलोड में लगा कैमरा सूरज के हाई रेजोल्यूशन तस्वीरे लेगा. साथ ही स्पेक्ट्रोस्कोपी और पोलैरीमेट्री भी करेगा.
ये हैं महत्वपूर्ण पेलोड्स
सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलिस्कोप (SUIT)... सूरज के फोटोस्फेयर और क्रोमोस्फेयर इमेजिंग करेगा. यानी नैरो और ब्रॉडबैंड इमेजिंग होगी.
सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (SoLEXS)... सूरज को बतौर तारा मानकर वहां से निकलने वाली सॉफ्ट एक्स-रे किरणों की स्टडी करेगा.
हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS)... यह एक हार्ड एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर है. यह हार्ड एक्स-रे किरणों की स्टडी करेगा.
आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (ASPEX)... यह सूरज की हवाओं, प्रोटोन्स और भारी आयन के दिशाओं और उनकी स्टडी करेगा.
प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य (PAPA)... यह सूरज की हवाओं में मौजूद इलेक्ट्रॉन्स और भारी आयन की दिशाओं और उनकी स्टडी करेगा.
एडवांस्ड ट्राई-एक्सियल हाई रेजोल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर्स... यह सूरज के चारों तरफ मैग्नेटिक फील्ड की स्टडी करेगा.
अब तक 22 सूर्य मिशन भेजे जा चुके हैं...
सूरज पर अब तक अमेरिका, जर्मनी, यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने कुल 22 मिशन भेजे हैं. एक ही मिशन फेल हुआ है. एक ने आंशिक सफलता हासिल की. सबसे ज्यादा मिशन NASA ने भेजे हैं. नासा ने पहला सूर्य मिशन पायोनियर-5 (Pioneer-5) साल 1960 में भेजा था. जर्मनी ने अपना पहला सूर्य मिशन 1974 में नासा के साथ मिलकर भेजा था. यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने आअपना पहला मिशन नासा के साथ मिलकर 1994 में भेजा था.
सिर्फ नासा के सोलर मिशन
नासा ने अकेले 14 मिशन सूर्य पर भेजे हैं. इनमें से 12 मिशन सूरज के ऑर्बिटर हैं. यानी सूरज के चारों तरफ चक्कर लगाते हैं. एक मिशन फ्लाईबाई है. दूसरा सैंपल रिटर्न था. नासा के पार्कर सोलर प्रोब ने सूरज के आसपास से 26 बार उड़ान भरी है. नासा के साथ यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) ने चार मिशन किए हैं. ये थे उलिसस और सोहो. उलिसस के तीन मिशन भेजे गए हैं. ESA ने अकेले सिर्फ एक मिशन किया है. वो एक सोलर ऑर्बिटर था. यह दो साल पहले लॉन्च किया गया था. यह स्पेसक्राफ्ट अब भी रास्ते में है. वहीं जर्मनी ने दो मिशन किए हैं. दोनों ही नासा के साथ मिलकर. पहला 1974 में और दूसरा 1976 में. दोनों का नाम हेलियोस-ए और बी था.
ये मिशन फेल और ये आंशिक सफल
नासा का 1969 में भेजा गया पायोनियर-ई स्पेसक्राफ्ट एक ऑर्बिटर था, जो फेल हो गया था. यह अपनी तय कक्षा में पहुंच ही नहीं पाया. नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी का उलिसस-3 मिशन जो साल 2008 में भेजा गया था. वह आंशिक सफल था. उलिसस ने शुरुआत में कुछ डेटा भेजा. बाद में उसकी बैट्री खत्म हो गई.
सूरज से सैंपल लाने वाला मिशन
नासा ने साल 2001 में जेनेसिस मिशन लॉन्च किया था. इसका मकसद था सूरज के चारों तरफ चक्कर लगाते हुए सौर हवाओं का सैंपल लेना. उसने सफलता हासिल की. सौर हवाओं का सैंपल लिया और धरती की तरफ लौटा. लेकिन यहां पर उसकी क्रैश लैंडिंग हुई. हालांकि नासा के वैज्ञानिकों ने अधिकतर सैंपल कलेक्ट कर लिया था.