
रूस का Luna-25 मून मिशन चांद पर क्रैश हो गया. भारत का Chandrayaan-3 ने सफल लैंडिंग की. इस साल अमेरिका के दो मून मिशन लॉन्च होने की संभावना है. इसी बीच जापान ने भी 07 सितंबर 2023 की सुबह यानी आज अपना मून मिशन लॉन्च कर दिया. इस मिशन की लॉन्चिंग तांगेशिमा स्पेस सेंटर के योशीनोबू लॉन्च कॉम्प्लेक्स से की गई.
जापानी स्पेस सेंटर (JAXA) ने अपने H-IIA रॉकेट के जरिए यह लॉन्चिंग सफलतापूर्वक की. रॉकेट अपने साथ स्मार्ट लैंडर फॉर इन्वेस्टिगेटिंग मून (SLIM) और एक्स-रे इमेजिंग एंड स्पेक्ट्रोस्कोपी मिशन (XRISM) लेकर गया. स्लिम मिशन में जापान चांद पर लैंडिंग की अपनी क्षमता का प्रदर्शन करना चाहता है. वह भी अत्यधिक सटीकता के साथ.
SLIM एक हल्का रोबोटिक लैंडर है. जिसे तय स्थान पर ही उतारा जाएगा. उसकी जगह में कोई बदलाव नहीं होगा. ताकि सटीक सॉफ्ट लैंडिंग का प्रदर्शन हो सके. इस मिशन को मून स्नाइपर (Moon Sniper) भी कहा जा रहा है. यानी स्लिम की लैंडिंग उसके तय स्थान के 100 मीटर के दायरे में ही होगी. यह मिशन 831 करोड़ रुपए से ज्यादा का है. पिछले महीने 26 और 28 अगस्त को इसकी लॉन्चिंग होनी थी लेकिन खराब मौसम की वजह से टल गई थी.
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आराम से चांद पर पहुंचेगा स्लिम, 6 महीने की यात्रा करेगा
जापानी स्पेस एजेंसी के प्रेसिडेंट हिरोशी यामाकावा ने कहा कि स्लिम को इस हिसाब से भेजा जा रहा है, उसके ईंधन को ज्यादा से ज्यादा बचाया जा सके. यह मिशन चांद की सतह पर अगले साल फरवरी महीने में लैंड करेगा. मकसद सटीकता वाली लैंडिंग है. यानी जहां हम चाहते हैं, वहीं पर लैंड हो. बल्कि ये नहीं कि कहां हम कर सकते हैं.
कहां उतरेगा जापान का स्लिम लैंडर
जापान का SLIM लैंडर चांद के नीयर साइड यानी उस हिस्से में उतरेगा जो हमें अपनी आंखों से दिखाई देता है. संभावित लैंडिंग साइट मेयर नेक्टारिस (Mare Nectaris) है. जिसे चांद का समुद्र कहा जाता है. यह चांद पर सबसे ज्यादा अंधेरे वाला धब्बा कहा जाता है. स्लिम में एडवांस्ड ऑप्टिकल और इमेज प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी लगी है.
लैंडिंग के बाद स्लिम चांद की सतह पर मौजूद ओलिवीन पत्थरों की जांच करेगा, ताकि चांद की उत्पत्ति का पता चल सके. इसके साथ किसी तरह का रोवर नहीं भेजा गया है. इसके साथ XRISM सैटेलाइट भी भेजा गया है. जो चांद के चारों तरफ चक्कर लगाएगा. इसे जापान, नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने मिलकर बनाया है. यह चांद पर बहने वाले प्लाज्मा हवाओं की जांच करेगा. ताकि ब्रह्मांड में तारों और आकाशगंगाओं की उत्पत्ति का पता चल सके.
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यह H-IIA रॉकेट की 47वीं उड़ान थी
H-IIA जापान का सबसे भरोसेमंद रॉकेट है. यह उसकी 47वीं उड़ान थी. इसे मित्शुबिशी हैवी इंड्स्ट्रीज ने बनाया है. इसकी लॉन्चिंग सफलता दर 98 फीसदी है. जापान ने इस मून मिशन की लॉन्चिंग कई महीनों तक टाली थी, ताकि वह मीडियम लिफ्ट H3 रॉकेट के फेल होने की जांच कर रहा था. इस मिशन के बाद जापान 2024 में हाकुतो-2 (Hakuto-2) और 2025 में हाकुतो-3 (Hakuto-3) मिशन भेजेगा. यह भी एक लैंडर और ऑर्बिटर मिशन होगा.
Chandrayaan-3 की सफल लैंडिंग के दो हफ्ते बाद लॉन्च
यह लॉन्चिंग भारत के चंद्रयान-3 की लैंडिंग के दो हफ्ते बाद हो रही है. भारत चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन चुका है. दक्षिणी ध्रुव के पास पहुंचने वाला पहला देश. रूस ने प्रयास किया था लेकिन उसका लूना-25 मिशन दक्षिणी ध्रुव के पास क्रैश कर गया. इससे पहले जापान दो बार प्रयास कर चुका है लेकिन उसे सफलता नहीं मिली थी.
जापान के पहले प्रयास हो गए थे विफल
जापान ने पिछले साल भी चांद पर लैंडर भेजा था. लेकिन उसके हाथ विफलता लगी. जापान का अपने मून लैंडर ओमोतेनाशी (Omotenashi) से संपर्क टूट गया था. जिसे पिछले साल नवंबर में लैंड होना था. इसके बाद अप्रैल महीने में हाकूतो-आर (Hakuto-R) मिशन लैंडर को चांद पर भेजा गया. लेकिन यह चांद पर जाकर क्रैश हो गया. इससे पहले अक्टूबर 2022 में एप्सिलॉन रॉकेट में लॉन्च के समय विस्फोट हो गया था.