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फिर फटा दुनिया का सबसे एक्टिव ज्वालामुखी... हवाई द्वीप के इस वॉल्कैनो का रहस्य नहीं सुलझ रहा

दुनिया का सबसे एक्टिव ज्वालामुखी किलुआ फिर से फट पड़ा है. हलेमा'उमा'उ क्रेटर में लावा का तालाब बनता जा रहा है. यह तालाब फिर से भर रहा है. किलुआ ने इस बार भी लावा के ऊंचे-ऊंचे फव्वारे निकाले. लगातार विस्फोट हो रहा है. जहरीली गैसें और गर्म लावा निकल रहा है.

 लावा कैल्डेरा के पश्चिमी हिस्से की दीवार में छेद हुआ, वहां से निकल रहा लावा तालाब में जा रहा है. (फोटोः रॉयटर्स) लावा कैल्डेरा के पश्चिमी हिस्से की दीवार में छेद हुआ, वहां से निकल रहा लावा तालाब में जा रहा है. (फोटोः रॉयटर्स)
आजतक साइंस डेस्क
  • नई दिल्ली,
  • 24 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 11:30 AM IST

हवाई द्वीप पर मौजूद किलुआ ज्वालामुखी (Kilauea Volcano) एक बार फिर से फट पड़ा है. इसके हलेमा'उमा'उ क्रेटर में लावा का तालाब बढ़ता जा रहा है. यूएस जियोलॉजिकल सर्वे ने अपने यूट्यूब चैनल पर इस विस्फोट का लाइव फुटेज भी दिखाया है. जिसमें ज्वालामुखी के काल्डेरा यानी ऊपर मौजूद कटोरो जैसी आकृति के उत्तर-पश्चिम में विस्फोट होता दिख रहा है. 

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यहां नीचे देखिए इस विस्फोट का Video

यह ज्वालामुखी 23 दिसंबर से फट रहा है. एक समय विस्फोट के दौरान लावा के फव्वारे 267 फीट की ऊंचाई तक जा रहे थे. पिघले हुए पदार्थ हलेमा'उमा'उ क्रेटर में जमा हो रहा है. ये ज्वालामुखी 30 साल से ज्यादा समय से लगातार फट रहा है. ये हवाई के बिग आइलैंड पर है. ये इस द्वीप का करीब 14 फीसदी हिस्सा घेरता है. 

ये ज्वालामुखी समुद्री सतह से 4190 फीट ऊंचा है. इतने साल से वैज्ञानिक इसकी स्टडी कर रहे हैं लेकिन आज तक ये नहीं पता चल पाया है कि ये ज्वालामुखी कैसे बना? इसमें लावा का फ्लो कैसे आता है. विस्फोट क्यों हो रहा है? लगातार इस चीज की स्टडी हो रही है. 

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अभी तक क्या पता चला इस ज्वालामुखी के बारे में... 

असल मैग्मा हॉटस्पॉट से 90 km से भी ज्यादा गहराई में है. किलुआ के नीचे मैग्मा के दो छिछले चैंबर्स का पता लगा था. 2014 में सीस्मिक वेव्स का इस्तेमाल करके करीब 11 km गहरे चैंबर का पता लगाया था. अब ऐसा लगता है कि असल मैग्मा चैंबर और भी गहरा है.बिग आइलैंड के दक्षिण-पूर्वी हिस्से से निकाली गई ज्वालामुखी की प्राचीन चट्टान के टुकड़ों का नया विश्लेषण बताता है कि किलुआ का जन्म 100 km गहरे पाइरोक्लास्टिक सामग्री के एक पूल से हुआ था.

नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित शोध के मुताबिक, 2.10 लाख और 2.80 लाख साल पहले, पैसिफिक टेक्टोनिक प्लेट शिफ्ट हुई. मैग्मा का एक हिस्सा ऊपर की तरफ समुद्र में चला गया. जैसे ही ये गर्म तरल पदार्थ ठंडा होकर जमा. इसने एक बड़ी 'शील्ड' बनाई जो करीब एक लाख साल पहले लहरों की वजह से फट गई.

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क्रिस्टलाइजेशन की स्टडी करके पता कर रहे डिटेल

इस हॉटस्पॉट से निकली मूल चट्टानें खोजना काफी कठिन है, क्योंकि वे नए लावा की कई परतों के नीचे हैं. पहले माना गया था कि किलुआ ज्वालामुखी ठोस चट्टान से बनाया गया था, जो आंशिक रूप से हॉटस्पॉट की गर्मी से पिघल रहा था. किलुआ ज्वालामुखी मूल रूप से फ्रैक्शनल क्रिस्टलाइजेशन से बना था. 

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एक क्रिस्टल है तब बन सकता है जब मैग्मा पृथ्वी के क्रस्ट के नीचे 90 km से अधिक उच्च दबाव और तापमान पर हो. गार्नेट को पृथ्वी के क्रस्ट के नीचे 150 km की गहराई तक क्रिस्टलाइज़ किया जा सकता है. माउंट वेसुवियस जैसे अन्य ज्वालामुखी भी क्रिस्टल फॉर्मेशन दिखाते हैं. किलुआ का असल मैग्मा चैंबर सबसे ज्यादा गहरा दिखाई पड़ता है. ऐसा क्यों है यह अब भी रहस्य बना हुआ है.

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