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जानिए आखिर अलास्का के ज्वालामुखी को फटने से क्या रोक रहा है

1991 और 1992 के बीच वेस्टडल पीक ज्वालामुखी (Westdahl Peak volcano) में कई विस्फोट देखे गए थे, जिसके बाद अंदाजा लगाया जा रहा था कि 2010 में इसमें विस्फोट होगा. लेकिन आज तक यह ज्वालामुखी धधक रहा है, जानिए क्यों.

सालों से धधक रहा है ज्वालामुखी (Photo: Getty) सालों से धधक रहा है ज्वालामुखी (Photo: Getty)
aajtak.in
  • वॉशिंगटन,
  • 14 मई 2022,
  • अपडेटेड 8:07 PM IST
  • 1991-92 के बीच ज्वालामुखी में हुए थे विस्फोट
  • तब से अब तक धधक रहा है वेस्टडल पीक ज्वालामुखी

भूवैज्ञानिकों (Geologists) को उम्मीद थी कि 2010 तक वेस्टडल पीक ज्वालामुखी (Westdahl Peak volcano) फिर से फटेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. यह ज्वालामुखी अभी भी धधक रहा है और इस तरफ इशारा कर रहा है कि हमारा अंदाजा गलत था. 

ज्वालामुखियों के आसपास के लोगों की सुरक्षा और विमानन जोखिमों को कम करने के लिए, इनके फटने की सटीक चेतावनी देने की कोशिश करना बहुत ज़रूरी भी है और मुश्किल भी. भूविज्ञानी लिलियन लुकास (Geologist Lilian Lucas) का कहना है कि ज्वालामुखी का पूर्वानुमान लगाने में कई बातों का ध्यान रखा जाता है, जैसे- ज्वालामुखी के मैग्मा कक्ष (Magma Chamber) की गहराई और आकार, जिस दर पर मैग्मा उस चेंबर को भरता है और उन चट्टानों की मजबूती पर जिसमें चेंबर होता है.

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आखिरी बार 1991-92 के बीच हुए थे विस्फोट (Photo: Pixabay)

पश्चिमी अलास्का (Western Alaska) में, एल्यूटियन द्वीप श्रृंखला ( Aleutian Islands chain) पर स्थित, वेस्टडाहल पीक शील्ड ज्वालामुखी (Westdahl Peak Shield volcano) में आखिरी बार 1991 और 1992 के बीच कई विस्फोट देखे गए थे. इसके बाद से ज्वालामुखी धधकता रहा, जिसे लेकर अंदाजा लगाया जा रहा था कि यह अब फटने वाला है. यह ज्वालामुखी दुनिया के बाकी ज्वालामुखियों से अलग है, क्योंकि यह ज्वालामुखी करीब एक किलोमीटर मोटी बर्फ की परत से ढका रहता है.

ज्वालामुखी पर 1-3 किलोमीटर बर्फ की मोटी परत (Photo: Pexels)

फ्रंटियर्स इन अर्थ साइंस (Frontiers in Earth Science) में प्रकाशित हुए शोध में लिलियन लुकास (Lilian Lucas) उनके सहयोगियों ने लिखा है कि 'हमारे संख्यात्मक प्रयोगों (Numerical Experiments) से पता चलता है कि एक आइस कैप (1-3 किलोमीटर मोटी परत) मैग्मा सिस्टम के औसत रेपोज़ अंतराल (Repose Interval) को बढ़ाती है.' 

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कंप्यूटर सिमुलेशन (Computer Simulations) का इस्तेमाल करते हुए इलिनोइस यूनिवर्सिटी (University of Illinois) के शोधकर्ताओं ने आइस कैप की मोटाई और ज्वालामुखी के अंदर वॉल्यूम में ज़रूरी बदलाव के बीच संबंध का पता लगाया, जो विस्फोट के लिए ज़रूरी है. यह ज्वालामुखी के मैग्मा फ्लक्स (Magma flux) पर भी निर्भर है, जो मैग्मा की उत्पादन दर होता है. 

बर्फ की वजह से ज्वालामुखी में विस्फोट नहीं हो रहा (Photo: Avo alaska edu)

मैग्मा चेंबर के आकार, जीओमेट्री और मैग्मा फ्लक्स को ध्यान में रखते हुए, टीम ने कैल्कुलेट किया कि जिस ज्वालामुखी पर बर्फ नहीं है उसकी तुलना में, यह ज्वालामुखी आइस कैप के दबाव से करीब 7 साल सुस्त हो जाता है. 

वैज्ञानिक लिखते हैं कि हम नहीं जानते कि वर्तमान में  वेस्टडल सिस्टम असफल होने के कितना करीब है. साथ ही सिस्टम के फ्लक्स रेट के हमारे अनुमानों को अपडेट करने के लिए हाल ही के भूगर्भीय डेटा की अभी तक जांच नहीं की गई है. उन्होंने आगे लिखा कि अगर वेस्टडल के मैग्मा फ्लक्स हाल के वर्षों में धीमा हुआ है और सिस्टम असफल होने के करीब है तो मौसम ही अंत में बड़ी भूमिका निभा सकता है.

 

एक ज्वालामुखी का आकार और गहराई अभी भी एक विस्फोट में हो रही देरी की सबसे बड़ी वजह होते हैं. हालांकि, जब सिस्टम एक निश्चित थ्रेशहोल्ड तक पहुंचता है और फ्लक्स कम होता है, तो आइस कैप का वजन अहम भूमिका निभाता है. यान झान का कहना है कि यह विचार करना जरूरी होगा कि जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियर का पिघलना आने वाले समय में वेस्टडल पीक और दूसरे बड़े ज्वालामुखियों को कैसे प्रभावित कर सकता है.

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