
द यूरोपियन काउंसिल फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (CERN) ने घोषणा की है कि वो चार साल बाद लार्ज हैड्रन कोलाइडर (Large Hadron Collider - LHC) को फिर से शुरू करने जा रहा है. अब ये महामशीन फिर से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की वजह खोजेगी. इस मशीन का काम बिग बैंग विस्फोट से पैदा हुए ब्रह्मांड के बारे में जानना है. गॉड पार्टिकल कहे जाने वाले हिग्स बोसान (Higgs Boson) की खोज फिर से शुरू करना है. इस मशीन को फिर से शुरू करके 13.6 खरब इलेक्ट्रोन वोल्ट जितनी ऊर्जा निकाली जाएगी.
हिग्स बोसान सिद्धांत की खोज एडविन हबल ने आज से 10 साल पहले 2012 में करी थी. इस मशीन के अंदर प्रोटोन पर उलटी दिशा में दो ऊर्जा बीम डाली जाती है. इससे गॉड पार्टिकल का जन्म होता है. इस मशीन को बनाने में 31 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की लगात आई थी. बिग बैंग के मुताबिक आज से लगभग 15 अरब साल पहले हमारे ब्रह्मांड बना था. कई सारे फिजिकल पार्टिकल्स भी बने थे. इन्हीं की मदद से धरती पर जीवन की शुरुआत हुई थी. इस मशीन के प्रयोग में कई भारतीय वैज्ञानिक भी शामिल है.
यूक्रेन-रूस युद्ध के समय द यूरोपियन काउंसिल फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (CERN) ने घोषणा की थी कि वो रूस (Russia) के साथ भविष्य के सारे समझौते फिलहाल के लिए रोक रहा है. साथ ही रूस को ऑब्जर्वर के पद से हटा दिया है. इसके अलावा सभी रूसी वैज्ञानिक संस्थानों के साथ नए समझौतों को रोक रहा है.
CERN की स्थापना साल 1954 में यूरोपियन, अमेरिकन और रूसी वैज्ञानिकों ने मिलकर किया था. इस फैसिलिटी ने शीत युद्ध (Cold War) के समय भी बेहतरीन तरीके से काम किया था. इस प्रयोगशाला ने कई उतार-चढ़ाव भी देखे हैं. 1962 में क्यूबन मिसाइल संकट, 1968 में सोवियत संघ द्वारा प्राग स्प्रिंग को रोकना, 1979 में अफगानिस्तान में रूसी सैनिकों की घुसपैठ आदि. लेकिन इतने समय तक इस प्रयोगशाला ने किसी तरह का कोई राजनीतिक झुकाव नहीं दिखाया था. लेकिन इस बार वह खत्म हो गया.
CERN ही लार्ज हैड्रन कोलाइडर (Large Hadron Collider) को संचालित करता है. यह दुनिया का सबसे बड़ा एटम स्मैशर है. इसी फैसिलिटी ने साल 2012 में हिग्स बोसोन (Higgs Boson) की खोज की थी. इस प्रयोग में दुनिया भर के 23 देश शामिल है. सात एसोसिएटेड सदस्य हैं. यूक्रेन इसमें बाद में जुड़ा. वह फैसिलिटी को फीस देता है. जबकि रूस की पोजिशन अमेरिका की तरह ऑब्जर्वर की तरह है. उसे किसी तरह की फीस नहीं देनी होती. (ये खबर इंटर्न आदर्श ने लिखी है)