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केदारनाथ में बड़ा हादसा... भीमबली में पहाड़ मंदाकिनी नदी पर गिरा, बना तालाब

केदारनाथ के पैदल यात्रा मार्ग में भीमबली में पूरा का पूरा पहाड़ ही दरक कर मंदाकिनी नदी में गिर गया. नदी का प्रवाद रुक गया. एक तरफ तालाब बन गया. ठीक वैसा ही नजारा जैसा साल 2013 में था. किस्मत अच्छी थी कि किसी तरह के जानमाल का नुकसान नहीं हुआ. लेकिन हादसा भयावह था.

बाएं से... भीमबली के पास पहाड़ टूटते हुए. पीले घेरे में दिख रहा है मंदाकिनी नदी का प्रवाह रुकने से बना तालाब. बाएं से... भीमबली के पास पहाड़ टूटते हुए. पीले घेरे में दिख रहा है मंदाकिनी नदी का प्रवाह रुकने से बना तालाब.
प्रवीण सेमवाल/आजतक साइंस डेस्क
  • केदारनाथ/नई दिल्ली,
  • 12 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 12:07 AM IST

11 अगस्त 2024 की दोपहर केदारनाथ के भीमबली में भयानक भूस्खलन हुआ. एक पूरा पहाड़ खिसक कर मंदाकिनी नदी में गिर गया. वहां आ-जा रहे यात्रियों ने इस नजारे का वीडियो बनाया. वीडियो में दिख रहा है कि कैसे पूरा का पूरा पहाड़ नदी में समा रहा है. पहाड़ के मलबे से नदी का रास्ता रुक गया.

मंदाकिनी नदी के ऊपरी हिस्से की तरफ तालाब बन गया. अच्छी बात ये थी कि इस हादसे में किसी जान नहीं गई. कोई नुकसान नहीं हुआ. जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी नन्दन सिंह रजवार ने बताया कि 11 अगस्त को अपराह्न में भीमबली हेलीपैड के सामने नदी पार पहाड़ी से भूस्खलन हुआ. इससे मंदाकिनी नदी में पानी रुक गया. 

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रजवार ने बताया कि वहां तालाब बन गया था. जो अब धीरे-धीरे कम होने लगा है. किसी प्रकार से जान माल की कोई क्षति नहीं हुई है. उन्होंने बताया कि गौरीकुंड से रुद्रप्रयाग तक अलर्ट जारी कर दिया गया है. उन्होंने नदी किनारे रह रहे लोगों से अपील की है कि कोई भी व्यक्ति नदी के ओर न जाए. सतर्क रहें. 

पर क्या ये काफी नहीं है कि इस तरह के हादसों में बढ़ोतरी हो रही है... 

अप्रैल 2024 में ही ISRO ने खुलासा किया था कि हिमालय पर 2431 ग्लेशियल लेक्स हैं. जिनमें से 676 झीलों का आकार लगातार बढ़ा है. इनमें से 130 भारतीय इलाके में हैं. इन झीलों के टूटने का खतरा बरकरार है. ग्लोबल वॉर्मिंग से इन ग्लेशियल झीलों पर खतरा मंडरा रहा है. यहां तो ग्लेशियर की बात है लेकिन ऐसे हादसे भूस्खलन से भी हो सकते हैं. पहाड़ टूटकर किसी नदी का रास्ता रोकेंगे तो नदी एक न एक दिन उसे तोड़कर आगे बढ़ेगी. इससे भयानक हादसा होगा.  

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हिमालय पर कुल मिलाकर 2431 झीलें, लगातार बढ़ रहा आकार

1984 से 2023 तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि हिमालय में 2431 झीलें ऐसी हैं, जो आकार में 10 हेक्टेयर से बड़ी हैं. जबकि 1984 से अब तक 676 झीलें ऐसी हैं, जिनके क्षेत्रफल में फैलाव हुआ है. इनमें से 130 भारत में मौजूद हैं. सिंधु नदी के ऊपर 65, गंगा के ऊपर सात और ब्रह्मपुत्र के ऊपर 58 ग्लेशियल लेक्स बनी हैं. 

भूस्खलन से कैसे हो सकता है इस तरह का हादसा? 

पहाड़ बनते समय भारी मात्रा में लैंडमास एक से दूसरी जगह मूव होता है. जब भी कोई वस्तु अधिक ऊर्जा वाली स्थिति में पहुंचती है, तब वह कम ऊर्जा की तरफ भागती है. ताकि स्थिरता और संतुलन बना रहे. ऐसा ही भूस्खलन के समय पहाड़ों में होता है. जब ये पहाड़ खिसकर नीचे नदी में गिरेंगे, तो एक तरफ तालाब बनेगा. 

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जहां तालाब बनेगा वहां ऊर्जा ज्यादा होगी. फिर तालाब में बढ़ता पानी दबाव बढ़ाते हुए कम ऊर्जा की तरफ भागने का प्रयास करेगा. यहीं पर तालाब की दीवार टूटेगी और निचले इलाकों में फ्लैश फ्लड आएगा. पिछले 10-15 वर्षों में चरम मौसमी आपदाओं (Extreme Weather Events) का आना बढ़ गया है. इसकी वजह से पहाड़ी ढलाने स्थिरता पा नहीं रहे. इसे पाने के लिए ऊपर से नीचे की तरफ खिसक जाते हैं. आमतौर पर इसे लैंडस्लिप कहते हैं. 

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लैंडस्लिप पहले होता है, बड़े पैमाने पर भूस्खलन होता है

जब लैंडस्लिप बड़े पैमाने पर होता है, तब इसे लैंडस्लाइड कहा जाता है. लैंडस्लाइड तब मानते हैं, जब 10 वर्ग मीटर की जमीन एकसाथ खिसक जाए. यानी ऐसी पहाड़ी ढलान जिसके नीचे मजबूत पत्थर कम होते हैं. ऊपर ढीली मिट्टी होती है. इस मिट्टी पर पेड़-पौधे कम होते हैं. जब इस पर ऊपर से ज्यादा पानी गिरता है. तब यह सरकता है. 

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लैंडस्लाइड होने की सिर्फ दो वजहें हो सकती हैं. पहला भूकंप और दूसरा बेहद तेज बारिश. बाकी कुछ नहीं बदल रहा है. अगर इन दोनों प्राकृतिक वजहों से लैंडस्लाइड नहीं हो रहा है. तो किसी और चीज से नहीं हो सकता. क्योंकि भौगोलिक परिस्थितियां स्थिर हैं. इसे बिगाड़ रहा है इंसान. जलवायु परिवर्तन करके और बेतरतीब निर्माण करके.

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