
पृथ्वी पर ग्लेशियर (Glacier) जब पिघलता है उसके नीचे से पानी बहने लगता है. क्योंकि यहां पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravity) बहुत ज्यादा है. ज्यादा पिघलाव होने से ग्लेशियर टूटते भी हैं. एवलांच यानी हिमस्खलन आता है. या फिर ग्लेशियर टूटकर किसी जलस्रोत के ऊपर गिरे तो 2013 के केदारनाथ हादसे जैसी आपदा भी आ सकती है. या फिर उत्तराखंड के चमोली जैसी.
मंगल ग्रह (Mars) पर भी ग्लेशियर हैं. बहुत बड़े-बड़े. सूखे हुए. यानी उनमें नमी कम है. दूसरी बात ये है कि लाल ग्रह की ग्रैविटी बहुत कम है. सूरज की गर्मी से जो पिघलाव होता भी है, उसकी वजह से ग्लेशियर के नीचे पानी जमा नहीं हो पाता. दूसरी बात ये कि कमजोर ग्रैविटी की वजह से ग्लेशियर टूटकर खिसकते नहीं हैं. जहां हैं वहीं टिके रहते हैं.
ग्लेशियरों के खिसकने से जमीन की सतह पर घाटियां बनती हैं. रिजेस बनते हैं. कई बार उलटी पहाड़ियां भी बनती है. यानी ऊपर की तरफ चौड़ी और नीचे से पतली. बहुत वर्षों तक वैज्ञानिकों को यह लगता रहा कि मंगल ग्रह के ग्लेशियर हमेशा जमे रहते होंगे. लेकिन फ्रांस की नानटेस यूनिवर्सिटी की प्लैनेटरी साइंटिस्ट एना राउ गालोफ्रे ने बताया कि मंगल ग्रह पर मौजूद ग्लेशियर पिघल रहे हैं, लेकिन उनकी गति बेहद धीमी है. उनमें मूवमेंट है लेकिन धीरे-धीरे हो रहा है.
एना ने कहा कि धरती पर ग्लेशियरों का टूटकर नीचे आना, फिसलना, आगे बढ़ना या पीछे खिसकना पहाड़ी इलाकों समेत ध्रुवों पर भी देखने को मिलता है. लेकिन मंगल ग्रह पर इतने बड़े पैमाने के ग्लेशियर इरोज़न (Glacier Erosion) नहीं होते. जबकि वहां ग्लेशियर बनने की प्रक्रिया तेजी से होती है.
मंगल ग्रह पर जमीन का आकार, उतार चढ़ाव ग्लेशियरों के पिघलने से ही बने हैं. क्योंकि मंगल ग्रह पर बहता हुआ पानी था. लेकिन अब वैसी स्थिति नहीं है. लोगों को लगता था कि मंगल ग्रह के ग्लेशियर जमीन बनने के साथ-साथ जमते चले गए. लेकिन बर्फ असल में कहां है ये पता करने के लिए एना और उनकी टीम ने मंगल ग्रह के ग्लेशियरों का मॉडल बनाया.
तब इन्हें पता चला कि धरती की ग्रैविटी पिघलते हुए पानी को ग्लेशियर के नीचे जमा कर देती है. जिससे ड्रेनेज शुरू हो जाता है. इस जमा हुए और बहते हुए पानी से ग्लेशियर में मूवमेंट आने लगता है. जैसे सड़क पर जब पानी पड़ा होता है, तब आपके गाड़ी के पहिए फिसलते हैं. मंगल ग्रह की कम ग्रैविटी की वजह से ड्रेनेज थोड़ा ज्यादा तेजी से होता है. एना की स्टडी जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुई है.
एना को मंगल ग्रह के किसी भी ग्लेशियर के नीचे जमा पानी का स्रोत नहीं मिला. इसलिए मंगल ग्रह के ग्लेशियर कभी भी मूवमेंट तेजी से नहीं कर सकते. वो धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं. इस वजह से मंगल ग्रह पर ग्लेशियरों के टूटने की घटनाएं कम होती है. न ही वहां एवलांच आते हैं. ग्लेशियरों के विचित्र आकार और व्यवहार वायुमंडलीय दबाव और तापमान की वजह से बनते हैं. हालांकि मंगल ग्रह के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद ग्लेशियर उत्तरी ध्रुव के ग्लेशियरों की तुलना में तेजी से मूव कर रहे हैं.