
चीन के ज़ुरोंग रोवर (Zhurong rover) के नए आंकड़ों से पता लगा है कि मंगल ग्रह पर कुछ 400,000 साल पहले भारी मात्रा में तरल पानी मौजूद रहा होगा. यह पानी ग्रह के जाने माने रेतीले टीलों (Sandy dunes) में पिघली हुई बर्फ के रूप में मौजूद था.
2021 की शुरुआत में ज़ुरोंग रोवर के लाल ग्रह पर उतरने के बाद से, रोवर ने मंगल ग्रह के बारे में हमें बहुत सी जानकारी भेजी है. दशकों से हमें यही पता है कि मंगल ग्रह पर प्राचीन नदियां रही हैं और अब तक यही सोचा गया कि मंगल ग्रह पर मौजूद आखिरी तरल कोई 300 करोड़ साल पहले ही सूख गया था.
पिछले साल यह अनुमान भी खारिज कर दिया गया, जब ज़ुरोंग रोवर ने कुछ सबूतों के आधार पर यह जानकारी दी कि हाल ही के 70 करोड़ साल पहले तक मंगल ग्रह पर तरल पानी मौजूद हो सकता है. ज़ुरोंग ने पिछले कुछ सालों में यूटोपिया प्लैनिटिया (Utopia Planitia) की जांच की है. यह मंगल ग्रह की सतह पर एक विशाल मैदान है, जिसके 3,300 किलोमीटर दूर, सौर मंडल का सबसे बड़ा इंपैक्ट बेसिन (Impact basin) है.
मिशन पर काम कर रहे चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज की टीम के मुताबिक, यह मिशन ग्रह पर मौजूदा जीवन के संकेतों की खोज के लिए भविष्य के एक्सप्लोरेशन मिशनों के लिए अहम सुराग देता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि ये ड्यून या टीलों पर पतले, फटे क्रस्ट्स और कणों के गुच्छों लिपटे होते हैं. ऐसा तब ही होता है जब हाल ही में वहां तरल पानी मौजूद रहा हो.
चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज के एक वैज्ञानिक और शोध के एक लेखक शियाओगुआंग किन ( Xiaoguang Qin) कहना है कि रेत के टीले काफी ज़्यादा आधुनिक लैंडफॉर्म हैं. टीलों पर बनी पपड़ियों ने रेत के टीलों को जमा दिया है और जिससे वो हिल नहीं सकते.
इस नए सबूत से पता चलता है कि लाल ग्रह पर 14 लाख से 4 लाख साल पहले के बीच, बर्फ जमा रही होगी. रेत के टीलों पर जमा खनिजों का होना, वहां पानी की मौजूदगी के संकेत देता है. इन कणों में सल्फेट्स, सिलिका, आयरन ऑक्साइड और क्लोराइड जैसे पदार्थ सामने आए हैं. शोधकर्ताओं के मुताबिक, जब तापमान फ्रॉस्ट प्वाइंट से नीचे चला गया, तो जल वाष्प टीलों पर बर्फ के रूप में जम गई. इसी वजह से टीलों में दरारें और पपड़ी बनी.
हालांकि, अन्य शोधकर्ताओं ने इस टीम के तर्कों को सही माना है, लेकिन अभी भी संभावना है कि ये टीले किसी और भूगर्भीय प्रक्रिया से बने थे. इस शोध को साइंस एडवांसेज (Science Advances) जर्नल में प्रकाशित किया गया है.