
समुद्र तल से 29,029 फीट की ऊंचाई पर स्थित, माउंट एवरेस्ट (Mount Everest), पृथ्वी की सबसे ऊंची चोटी है. माउंट एवरेस्ट पर चढ़ना आसान नहीं है, कहा जाता है कि इस पर्वत पर अब तक 300 से ज़्यादा लोगों की जान जा चुकी है. लेकिन एक और चीज़ है जो लोगों को इस पर्वत के बारे में डराती है. वह है इसका रात में डरावनी आवाज़ें निकालना. जी हां, माउंट एवरेस्ट से रात को भयानक आवाज़ें सुनाई देती हैं. यूं लगता है जैसे पर्वत कराह रहा है.
नेटफ्लिक्स की एक डॉक्यूमेंट्री सीरीज़, आफ्टरशॉक: एवरेस्ट एंड द नेपाल अर्थक्वेक (Aftershock: Everest and the Nepal Earthquake) में, 2015 के नेपाल भूकंप के बाद के बारे में बताया गया है. इस भूकंप में करीब 9,000 लोगों की जान गई थी. इस सीरीज़ पर बात कर रहे हैं डेव हैन (Dave Hahn), जो अनुभवी हैं और 15 बार एवरेस्ट के शिखर पर पहुंच चुके हैं.
एवरेस्ट से आने वाली आवाज़ों पर हैन कहते हैं कि जैसे ही पहाड़ पर सूरज डूबता है, आपको पॉपिंग की आवाज़ें सनाई दे सकती हैं. आप घाटी के चारों ओर, अलग-अलग जगहों से बर्फ और चट्टानों को गिरते हुए सुन सकते हैं.
2018 का शोध आने से पहले तक कोई नहीं जानता था कि रात में पहाड़ जीवित क्यों लगता है और ऐसी तेज़ आवाजें क्यों आती हैं जो सैकड़ों किलोमीटर दूर से भी सुनी जा सकती हैं.
2017 में, नेपाल और जापान के शोधकर्ताओं की एक टीम ने हिमालय की ग्लेशियल सेस्मिक एक्टिविटी (Glacial seismic activity) पर शोध करना शुरू किया. एक सप्ताह से भी ज़्यादा लंबे ट्रेक के दौरान, टीम ने एक खुले ग्लेशियर पर कैंप लगाया, जहां मलबा नहीं था और तब उन्होंने वहां अजीब आवाज़ें सुनीं जो रात के समय आना शुरू हो गई थीं.
ग्लेशियोलॉजिस्ट और शोध के मुख्य लेखक एवगेनी पोडॉल्स्की (Evgeny Podolskiy) ने कहा कि हमने जोरदार बूम जैसी आवाज़ सुनी. हमने देखा कि हमारा ग्लेशियर रात को फट रहा है, उसमें दरारें आ रही हैं. टीम द्वारा आगे की जांच करने पर पता चला कि ये शोर रात में होने वाली थर्मल फ्रैक्चरिंग की वजह से आता है. यह मूवमेंट्स पर तापमान में बदलावों के प्रभावों के बारे में बताता है और बदले में ग्लेशियरों से आवाज़ें आती हैं.
पोडॉल्स्की ने बताया कि दिन में शोधकर्ताओं ने टी-शर्ट पहनकर काम किया, लेकिन जैसे ही सूरज डूबा तापमान लगभग -15 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया. बिना मलबे वाला ग्लेशियर, जिस पर टीम ने डेरा डाला हुआ था, अपने मलबे वाले ग्लेशियरों की तुलना में तत्वों के साथ ज़्यादा संपर्क में था, जिससे उनकी सतहों के ठंडा होने पर एक्सटेंसिव थर्मल कॉन्ट्रैक्शन हुआ. इसकी वजह से ग्लेशियरों पर नियर-सरफेस फ्रैक्चरिंग हुई और जिससे निकलने वाली तेज़ आवाज़ें पूरी पर्वत श्रृंखला तक गूंजती रहीं. पतले ग्लेशियरों पर थर्मल कॉन्ट्रैक्शन का जोखिम ज़्यादा देखा गया, जबकि मोटे ग्लेशियरों पर कम.
हिमालय पृथ्वी पर बर्फ के सबसे बड़े भंडार में से एक होने के बावजूद, ग्लेशियर सेस्मोलॉजी स्टडीज़ में इनका ज़िक्र सबसे कम है. इसी वजह से, यह अभी भी तक साफ नहीं है कि दुनिया के बाकी हिस्सों के ग्लेशियरों की तुलना में, तापमान परिवर्तन का प्रभाव सबसे ज़्यादा हिमालय के ग्लेशियरों पर ही क्यों पड़ता है.