
सदियों तक ऑस्ट्रिया के सबसे पुराने कुलीन परिवारों में से एक ने अपने तहखाने में एक दुखद रहस्य छिपाकर रखा था. तहखाने में बंद थी एक बच्चे की ममी. स्टारहेमबर्ग कुल के इस बच्चे की उम्र 1 या 2 साल की रही होगी. अब जांच में पता चला है कि इस बच्चे की मौत खाने-पीने की कमी या किसी चोट से नहीं हुई थी, बल्कि धूप की कमी के चलते हुई थी.
बच्चे की यह ममी 16 वीं और 17 वीं शताब्दी की है. इस ममी में बच्चे के शरीर की छोटी-छोटी डिटेल साफ देखी जा सकती हैं. बच्चे का शरीर एक रेशमी कपड़े में लिपटा हुआ था. लेकिन बड़े और रसूखदार परिवार का होने के बावजूद भी बच्चा स्वस्थ नहीं था. सीटी स्कैन की मदद से ममी की एक वर्चुअल ऑटॉप्सी की गई , जिसमें बच्चे की पसलियों में विकृति का पता चला. ये लक्षण कुपोषण केथे जो खासकर विटामिन डी की कमी से होते हैं. इसे रिकेट्स (Rickets) कहा जाता है.
शोधकर्ताओं ने एक दूसरी संभावना पर भी विचार किया था. उनके मुताबिक हो सकता है मौत विटामिन सी की कमी से हुई होगी, जिससे स्कर्वी रोग होता है. जबकि पसली में पाई गई विकृति दोनों ही स्थितियों से मेल नहीं खातीं. फैट टिश्यू की जांच से पता चला कि बच्चे की उम्र के हिसाब से उसका वजन बाकी बच्चों की तुलना में ज्यादा था. इसलिए शोधकर्ताओं को लगता है कि बच्चे को उस समय अच्छी तरह से खिलाया-पिलाया गया होगा. इससे विटामिन सी की कमी की संभावना खत्म हो जाती है.
दूसरी तरफ, अगर विटामिन डी की बात करें तो यह खाने से हमारे शरीर में नहीं पहुंचता, बल्कि त्वचा में पराबैंगनी विकिरण (Ultraviolet Radiation) से होने वाली रासायनिक प्रतिक्रियाओं के ज़रिए बनता है. इससे पता चलता है कि बच्चा भोजन की कमी से नहीं, बल्कि धूप की कमी से कुपोषित था.
बचपन में हड्डियों के बनने और उनकी मजबूती के लिए विटामिन डी बहुत ज़रूरी होता है. यह शरीर को जीवन भर कैल्शियम और फॉस्फोरस को बेहतर ढंग से अवशोषित करने में मदद करता है. म्यूनिख यूनिवर्सिटी के रोगविज्ञानी एंड्रियास नेरलिच का कहना है कि हालांकि रिकेट्स से किसी की मौत नहीं होती, लेकिन बच्चे के फेफड़ों पर घातक निमोनिया के लक्षण दिखते हैं, जो विटामिन-डी की कमी वाले शिशुओं में आम होते हैं.
फ्रंटियर्स (Frontiers) में प्रकाशित शोध के मुताबिक, इस समय के दौरान अभिजात वर्ग अक्सर अपनी त्वचा को साफ रखने के लिए धूप से बचता था. यूरोपीय समाज में उस दौर के रसूख वाले लोग ऐसे ही रहते थे, जबकि किसानों और मजदूरों ही धूप में चलते थे.
इटली में, 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान फ्लोरेंस में मेडिसी चैपल में दफन किए गए कुलीन बच्चों के कई कंकाल मिले हैं, जिनमें भी रिकेट्स के लक्षण दिखते हैं. हालांकि तहखाने में मिले इस बच्चे के बारे में शोधकर्ताओं का कहना है कि चूंकि इस बच्चे का खान-पान अच्छा था, उसकी देखभाल अच्छे से की गई थी. इसलिए उसके शरीर में फैट ज्यादा था, जिसकी वजह से ही इस बच्चे का शरीर इतने साल बाद भी अच्छी तरह से संरक्षित था.
बच्चे की यह ममी रेशम के कपड़े में लिपटी थी और तहखाने में यह अकेला बच्चा था. शोधकर्ताओं का मानना है कि वह पहला बच्चा रहा होगा. बच्चे के ताबूत पर उसके नाम से संबंधित कोई शिलालेख नहीं था.