
प्रकृति कई बार बेहद नाजुक और हैरान करने वाली रचना करती है. दुनिया की सबसे बड़ी झील में सर्दियों में कुछ पत्थर हवा में ऐसे लटक जाते हैं, जैसे कोई पानी की बूंद हो. इन लटकते हुए पत्थरों को दूर से देखकर ऐसा लगता है कि ये हवा में है. बल्कि ये बर्फ की बेहद पतली और नाजुक नोक पर टिके होते है. हाल ही में वैज्ञानिकों ने इस रहस्य को सुलझाया कि आखिरकार ऐसा होता कैसे है?
पत्थरों का वजन ज्यादा होता है. वह पानी में डूब जाते हैं लेकिन साइबेरिया में स्थित दुनिया की सबसे बड़ी झील लेक बैकल (Lake Baikal) में सर्दियों के मौसम वैसा ही नजारा देखने को मिलता है, जैसा कि आप इस खबर की मुख्य फोटो में देख रहे हैं. लेक बैकल को बाइकाल झील या बयकाल झील भी कहा जाता है. मुद्दा ये नहीं कि इसे क्या कहा जाता है...सवाल ये है कि आखिरकार ये पत्थर बर्फ की पतली नोक पर टिकते कैसे हैं.
लेक बैकल में जब सर्दियों में बर्फ जमती है तो वो विभिन्न प्रकार की आकृतियों में तब्दील होती है. इसमें एक प्रक्रिया होती है सब्लिमेशन (Sublimation) यानी बर्फ का ऊपर की तरफ जाना. सर्दियों में जैसे ही तापमान घटता है, पानी अलग-अलग रूपों में बर्फ में बदल जाता है. ऐसे में अगर झील के नीचे से ऊपर की तरफ किसी तरह का सब्लिमेशन होता है तो उसके ऊपर मौजूद वस्तु बाहर आ जाती है, वो हवा में लटकी हुई दिखाई देती है.
फ्रांस स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ लियोन के फिजिसिस्ट निकोलस टेबरले कहते हैं कि हवा में लटके हुए जेन स्टोन (Zen Stones) को खोजने की सबसे बेहतरीन जगह साइबेरिया का लेक बैकल है. यहां पर तो गर्मियों में भी तापमान माइनस में रहता है. सर्दियों में यह स्थिति और भयावह हो जाती है. हवा में लटकते जेन स्टोन को देखना बेहद दुर्लभ है, क्योंकि ये प्रकृति का ये हैरान करने वाला नजारा बेहद मुश्किल से होता है.
साइबेरिया की नेचर फोटोग्राफर ओल्गा जीमा ने हाल ही में जेन स्टोन की तस्वीरें लीं. जिसमें से एक फोटो उन्होंने अपने इंस्टाग्राम पर शेयर की है. इस तस्वीर के लिए बेस्ट ऑफ रसिया फोटो प्रतियोगिता में सर्वोच्च पुरस्कार भी मिला है. ओल्गा कहती हैं कि यह तस्वीर शांति और संतुलन को दिखाती है. यह प्रकृति के संतुलन को इतनी खूबसूरती से दिखाती है कि कोई भी हैरान रह जाएगा. एक भारी पत्थर बर्फ की पतली और नाजुक नोक पर टिका है.
NASA के एम्स रिसर्ट सेंटर के साइंटिस्ट जेफ मूर ने कहा कि बर्फ के जमने से यह पत्थर ऊपर टिक गया. ये परिभाषा गलत है. क्योंकि बर्फ ऊपर जमती है. झीले के अंदर तक बर्फ नहीं जमती. नीचे पानी का बहाव होता है. बहता हुआ पानी किसी भी भारी वस्तु को ज्यादा नहीं हिलाता जब तक कि बहाव में तेजी न हो. इस बात को प्रमाणित करने के लिए निकोलस टेबरले ने अपने प्रयोगशाला में एक एक्सपेरीमेंट किया.
निकोलस टेबरले ने लैब में 30 मिलीमीटर चौड़े धातु की तश्तरी को बर्फ के टुकड़े के ऊपर रखा. इसके बाद उसे फ्रीज ड्रायर में रखा गया. जिसमें हवा निकाल कर आद्रता यानी ह्यूमेडिटी को कम किया गया. इससे बर्फ सब्लिमेशन की प्रक्रिया शुरु कर देता है. टेबरले ने देखा कि धातु की तश्तरी के नीचे की बर्फ सब्लिमेट नहीं कर रही थी, बल्कि उसके निचला हिस्सा ये 8-10 मिलिमीटर प्रति दिन की गति से सब्लिमेट हो रहा था. कुछ दिनों के बाद लैब में वैसा ही नजारा बना जैसे लेक बैकल में देखने को मिलता है.
इसके बाद टेबरले और उनके साथियों ने यह निष्कर्ष निकाला कि सर्दियों में लेक बैकल के ऊपर मौजूद बादल सूरज की रोशनी को तितर-बितर कर देते हैं. उसकी दिशा को परिवर्तित कर देते हैं. हवा और गर्मी कम होती है. इसलिए आद्रता खत्म हो जाती है. धीरे-धीरे जेन स्टोन के नीचे की बर्फ सब्लिमेट करने लगती है. पत्थर एक छतरी की तरह बर्फ के ऊपर टिक जाता है. पत्थर के ठीक नीचे की बर्फ पिघलती नहीं है, बल्कि उसके आसपास की पिघल जाती है.