
NASA ने हाल ही में ऐसे रॉकेट इंजन की सफल टेस्टिंग की है, जो परमाणु ऊर्जा से चलता है. इस इंजन की टेस्टिंग के साथ ही वह इंसानों को मंगल पर जल्दी पहुंचाने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ गया है. इस इंजन से चलने वाला रॉकेट मात्र 45 से 50 दिनों में किसी भी यान या इंसान को मंगल ग्रह तक पहुंचा देगा. जबकि अभी कम से कम 10 से 11 महीने लगते हैं.
इंसान अभी तक सिर्फ चंद्रमा तक पहुंचा है. लेकिन किसी दूसरे ग्रह पर उसके कदम नहीं पड़े हैं. किसी भी दूसरे ग्रह पर पहुंचने के लिए सिर्फ रॉकेट ही नहीं चाहिए. ऐसा ईंधन भी चाहिए जो लंबे समय तक चल सके. खत्म न हो. इसलिए परमाणु ईंधन से चलने वाले रॉकेट ऐसे मिशन में काम आएंगे. साथ ही जरुरत पड़ेगी- लाइफ सपोर्ट सिस्टम, रेडिएशन शील्डिंग, पावर और प्रोप्लशन सिस्टम आदि की.
रॉकेट को उड़ने की ताकत उसका प्रोपल्शन सिस्टम देता है. प्रोपल्शन सिस्टम को ईंधन के लिए अगर परमाणु ऊर्जा मिल जाए तो वह ज्यादा लंबे समय तक उड़ान भर सकता है. इसलिए नासा ने बाइमोडल न्यूक्लियर थर्मल रॉकेट पर काम शुरू किया है. न्यूक्लियर थर्मल रॉकेट में दो तरीके हैं. पहला न्यूक्लियर थर्मल प्रोग्राम. दूसरा न्यूक्लियर इलेक्ट्रिक प्रोग्राम. इन दोनों के जरिए मंगल ग्रह की यात्रा 100 दिन में पूरी हो जाएगी. बाद में इसे कम करके 45-50 दिन कर सकते हैं.
यह रॉकेट की दुनिया का चमत्कार होगा
नासा ने पिछले साल नया प्रोग्राम शुरू किया है. नाम है नासा इनोवेटिव एडवांस्ड कॉन्सेप्ट्स. पहले फेज में न्यूक्लियर रॉकेट बनाया जा रहा है. इसी रॉकेट में लगने वाले परमाणु इंजन का परीक्षण हाल ही में किया गया है. यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा में हाइपरसोनिक्स प्रोग्राम एरिया के प्रमुख प्रो. रयान गोसे कहते हैं कि यह रॉकेट अंतरिक्ष मिशन की दुनिया में चमत्कार होगा. इससे आप अंतरिक्ष की लंबी दूरियों को कम से कम समय में पूरा कर पाएंगे.
प्लाज्मा से मिलेगी ऊर्जा, शांति से उड़ेगा रॉकेट
न्यूक्लियर थर्मल प्रोपल्शन (NTP) में परमाणु रिएक्टर लिक्विड हाइड्रोजन प्रोपेलेंट को गर्म करेगा. इससे आयोनाइज्ड हाइड्रोजन गैस बनेगी. यानी प्लाज्मा. जिससे प्रोपल्शन सिस्टम के जरिए चैनलाइज्ड करके नॉजल से निकाला जाएगा. जब नॉजल से यह प्लाज्मा निकलेगा तो यह रॉकेट को तेज गति प्रदान करेगा.
68 साल बाद किया जा रहा है ऐसा प्रयोग
अमेरिकी एयरफोर्स और एटॉमिक एनर्जी कमीशन ने 1955 में पहली बार प्रोजेक्ट रोवर के समय इस तरह के प्रोपल्शन सिस्टम को बनाने का प्रयास किया था. यह जब यह प्रोजेक्ट 1959 में पहुंचा तो इसे न्यूक्लियर इंजन फॉर रॉकेट व्हीकल एप्लीकेशन में बदल गया. यह एक सॉलिड कोर न्यूक्लियर रिएक्टर था. इसकी टेस्टिंग सफल रही थी.
70 के दशक में नासा की फंडिंग कम होने से रुका था प्रोजेक्ट
1973 में अपोलो मिशनों को खत्म कर दिया गया. नासा की फंडिंग कम कर दी गई थी. इसलिए न्यूक्लियर रॉकेट इंजन का प्रोजेक्ट बंद कर दिया गया था. दूसरे तरीके को न्यूक्लियर इलेक्ट्रिक प्रोग्राम कहते हैं. इसमें परमाणु ईंधन के जरिए इलेक्ट्रिसिटी पैदा करने की बात कही जाती है.
भविष्य में न्यूक्लियर-इलेक्ट्रिक रॉकेट बनेंगे
न्यूक्लियर इलेक्ट्रिक प्रोग्राम के तहत आयन इंजन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड बनाएगा. जो इनर्ट गैस जैसे जेनॉन को क्रिएट करेगा. उससे रॉकेट को गति मिलेगी. थर्मल और इलेक्ट्रिक दोनों ही सिस्टम आधुनिक और सुरक्षित माने जा रहे हैं. यानी कम ईंधन में ज्यादा दूरी तय की जा सकती है. यह पारंपरिक रॉकेट के प्रोपल्शन सिस्टम की तुलना में 30 से 40 फीसदी ज्यादा फायदेमंद होगा.