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काशी और तमिलनाडु के लोगों का DNA एक समान, BHU के जीन वैज्ञानिक का दावा

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के जीन वैज्ञानिक ने दावा किया है कि काशी और तमिलनाडु के लोगों का डीएनए समान है. इससे पता चलता है कि भले ही हमारा रंग-रूप अलग हो, लेकिन हमारे पूर्वज एक ही हैं. 35 हजार सैंपलों के अध्ययन के बाद किया गया है ये दावा.

BHU के जीन वैज्ञानिक काशी और तमिलों के डीएनए में मिलने वाली समानता दिखा रहे हैं. BHU के जीन वैज्ञानिक काशी और तमिलों के डीएनए में मिलने वाली समानता दिखा रहे हैं.
रोशन जायसवाल
  • वाराणसी,
  • 03 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 4:22 PM IST

वाराणसी में होने वाले काशी-तमिल संगमम कार्यक्रम के दौरान BHU के एक जेनेटिक साइंटिस्ट का दावा भारत के उत्तर और दक्षिण के राज्यों के संबंधों को और मजबूती देने वाला है. इसमें कहा गया है कि काशी और तमिलनाडु के लोगों का DNA एक है. बल्कि यह भी दावा करता है कि भले ही हमारा रंग-रूप अलग हो, लेकिन हमारे पूर्वज एक ही है. 

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काशी विश्वनाथ की धरती से रामेश्वरम की भूमि का नाता कोई नया नहीं है. इस बात को अब और बल मिल चुका है. क्योंकि BHU में चल रहे रिसर्च में यह बात निकलकर आई है कि काशी और तमिलों के पूर्वज एक ही हैं. ऐसा दावा इसलिए किया गया है क्योंकि दोनों ही जगहों के DNA एक समान हैं. रिसर्च को लीड करने वाले काशी हिंदू विवि के जंतु विज्ञान विभाग के जीन विज्ञानी प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि यह शोध कोई नया नहीं है, बल्कि 2006 से यह चल रहा है. अबतक 35 हजार सैंपल जुटाया जा चुका है. 

नॉर्थ और साउथ इंडिया के जीनोम मिलते हैं. बेसिक जीन कैरेक्टर एक समान है. 

इस शोध में यह खोजा जा रहा है कि भारत की जातियां-जनजातियां आपस में कितनी भिन्न या समान है. इसी कड़ी में काशी के 100 लोगों और तमिलनाडु के 200 लोगों का भी सैंपल लिया गया. रिसर्च में चौंकाने वाले नतीजे आए हैं. काशी के लोगों के चार जीनोम तमीलनाडु के जीनोम की तरह थे. सवाल यह है कि चारों जीनोम एक जैसे होने के बाद भी काशी और तमिल के लोग अलग कैसे दिखते हैं? 

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तो इसकी वजह है कि जीनोम के कंपोनेंट कही कम तो कही ज्यादा थे. लेकिन हमारे पूर्वजों की तरफ से बना बेसिक कंपोनेंट एक ही है. हमारे पूर्वज भी एक ही रहे. उन्होंने बताया कि इस शोध में अलग-अलग यूनिवर्सिटी और कॉलेज के कुल 75 वैज्ञानिक लगे हैं.  

आणविक जीवविज्ञान केंद्र (CCMB) हैदराबाद और BHU की टीम इस शोध का नेतृत्व कर रही है. यह रिसर्च वर्ष 2006 से शुरू हुआ है. अब भी जारी है. उन्होंने बताया कि पूरे भारत से एक लाख सैंपल कलेक्ट किए जाएंगे. आगे जाकर इस डेटा का फोरेंसिक में बड़ा इस्तेमाल होगा. इससे सबसे ज्यादा लाभ क्राइम एनालिसिस में भी किया जा सकता है. इससे पता चलेगा कि अपराधी कहां का है. या पीड़ित किस जगह का है?

वहीं, इस शोध टीम के सदस्य प्रज्जवल प्रताप सिंह ने बताया कि यह पापुलेशन बेस्ड रिसर्च है. साउथ इंडियन और नॉर्थ इंडियन गंगेटिक प्लेन के DNA का एनालिसिस किया गया. हमें यह पता चला कि दोनों ही जगहों के पूर्वज एक समान थे. हम सभी के बेसिक जेनेटिक सेम है.

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