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इस टेस्ट के जरिए पता लग जाएगा कब मरनेवाला है इंसान, AI करेगा मौत की भविष्यवाणी

डेथ टेस्ट एक तरह का ब्लड टेस्ट होगा. एक्सपर्ट इसमें कुछ अलग बायोमार्कर देखकर तय कर सकेंगे कि मरीज की मौत अगले दो से पांच सालों के भीतर हो सकती है. प्रिडिक्शन में बड़ा रोल AI का होगा. इससे पहले भी कई एक्सपर्ट्स ने आंखें देखकर मौत की भविष्यवाणी करने का दावा किया था.

एक्सपर्ट लगातार समय से पहले मौत का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay) एक्सपर्ट लगातार समय से पहले मौत का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:14 AM IST

क्या हो अगर हमें अपनी मौत का पता पहले ही लग जाए! कई अध्ययनों में पाया गया कि मौत की याद दिलाने पर इंसान ज्यादा बेहतर हो जाते हैं. वे ऐसे सारे काम करने लगते हैं जिनसे दुनिया में बदलाव आ सके. लेकिन तूफानी तरक्की के बाद भी साइंस अब तक मौत का सही समय पता करने में नाकामयाब रहा. अब डेथ प्रिडिक्शन को लेकर नए दावे हो रहे हैं. AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए पता लग सकेगा कि किसकी मौत लगभग कब होने वाली है. 

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इस आयुवर्ग के लोग हुए स्टडी में शामिल
नॉटिंघम यूनिवर्सिटी ने डेथ प्रिडिक्शन को लेकर ब्रिटिश लोगों पर ये स्टडी की. इसके तहत 40 से 69 साल की उम्र वाले लगभग हजार लोगों को लिया गया, जो लाइफ-स्टाइल बीमारियों जैसे डायबिटीज या ब्लड प्रेशर जैसी समस्याओं के साथ अस्पताल आए. हॉस्पिटल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से ये समझने की कोशिश हुई कि किन हालातों में मरीजों की हालत ज्यादा गंभीर हो जाती है, या उनकी मौत हो सकती है. खास बात ये है कि स्टडी प्रीमैच्योर डेथ के इशारे समझने की बात करती है, न कि उम्र के साथ अपने-आप होती मृत्यु की. 

अध्ययन से कई खास पैटर्न निकलकर आए, जिनके बारे में वैज्ञानिक मान रहे हैं कि ये एक तरह से मौत का पता लगाने की तरह है. साथ ही ये फायदा भी गिनाया जा रहा है कि अगर खास परिस्थितियों में मौत का ट्रेंड समझ आ सके तो डॉक्टर उन मरीजों की बजाए, जिनकी मौत करीब है, उनपर ध्यान दे सकेंगे, जिनके जीने की संभावना ज्यादा है. 

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नॉटिंघम यूनिवर्सिटी की स्टडी मूलतः प्रीमैच्योर डेथ प्रिडिक्शन के आसपास घूमती रही. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

इसे डेथ टेस्ट कहा गया
इसपर सारी जानकारी PloS One साइंस जर्नल में दी गई. डेथ टेस्ट के बारे में आम तरीके से समझें तो ये एक तरह का ब्लड टेस्ट होगा. एक्सपर्ट इसमें कुछ अलग बायोमार्कर देखकर तय कर सकेंगे कि मरीज की मौत अगले दो से पांच सालों के भीतर होगी या नहीं. प्रिडिक्शन टेस्ट में बड़ा रोल AI का होगा. ये स्टडी फिलहाल अपनी शुरुआती स्टेज में है, इसलिए पक्की तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता कि इसके दावे कितने सही हैं. 

साल 2021 की शुरुआत में भी मौत की भविष्यवाणी की बात हुई थी
पेंसिल्वेनिया के हेल्थकेयर सिस्टम Geisinger में दशकभर से ज्यादा समय से इसपर स्टडी की जा रही थी, जिसके नतीजे पिछले साल ही बाहर आए. वैज्ञानिकों ने क्लेम किया कि इकोकार्डियोग्राम वीडियो देखकर AI न सिर्फ मौत का पता लगा सकेगा, बल्कि ये भी पक्की तौर पर सामने आ जाएगा कि मरीज की मौत सालभर के भीतर होगी.

मौत से पहले सभी को कुछ खास संकेत मिलते हैं, ये बात बहुतेरी बार कही जा चुकी. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

स्टडी के दौरान लगभग सवा 8 लाख से ज्यादा इकोकार्डियोग्राम देखे गए, और नब्बे फीसदी मामलों में AI की भविष्यवाणी सही पाई गई. पेंसिल्वेनिया का ये अध्ययन नेचर बायोमेडिकल इंजीनियरिंग नाम की साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ.

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आंखों में भी दिखेगी मौत
इसी साल की शुरुआत में एक और स्टडी आई थी, जिसमें दावा था कि आंखें देखकर मौत का समय बताया जा सकेगा. दिल की बीमारी से जूझ रहे मरीजों पर हुई स्टडी में AI रेटिना को स्कैन करता और मौत का अनुमानित समय बताया. इस तरीके से लगभग 18 सौ लोगों की मौत का सटीक अनुमान लगाया जा सका. ये वे लोग थे, जिनकी रेटिना समय से पहले  बूढ़ी हो चुकी थी.

यहां समझ लें कि आंखों को देखकर इंसान की बायोलॉजिकल उम्र का पता पहले से ही लगता रहा है. लेकिन अगर आंखों में अर्ली-एजिंग आ रही है, तो इसका मतलब कि शख्स की गलत लाइफ-स्टाइल उसे समय से पहले बूढ़ा करके मौत की तरफ ले जा रही है.

रेटिना को देखकर न केवल बायोलॉजिकल उम्र, बल्कि बची हुई उम्र बताने की भी बात हो रही है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

क्या मौत के भी लक्षण होते हैं?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से मौत का पता लगाने जैसे शोध तो चल ही रहे हैं, दूसरी तरफ वैज्ञानिकों की एक बिरादरी आध्यात्मिक-वैज्ञानिक चीजों को मिलाकर देखने पर जोर दे रही है. वे मानते हैं कि कुछ खास बातों पर ध्यान देने पर समझ आ सकता है कि मौत करीब है. मौत किसी बीमारी की तरह ही अपने लक्षण देने लगती है, बस जरूरत है उन्हें देखने की. जैसे मौत के करीब पहुंचे लोगों की खुराक, बातचीत और तौर-तरीका एकदम बदल जाता है. वे अक्सर मर चुके लोगों की बात करते हैं. ये एक तरह का संकेत है जो बताया है कि मौत आसपास है.

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ऑस्ट्रेलियन साइंस पत्रकार बिएंका नोग्रेडी ने 'द एंड- ह्यूमन एक्सपीरिएंस ऑफ डेथ' नाम की किताब में ऐसे लोगों के इंटरव्यू संजोए हैं, जो ताजा-ताजा अपने किसी परिजन की मौत देख चुके थे. अलग-अलग हुए इन इंटरव्यूज में भी लोगों ने एक समान बातें कहीं.

 

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