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देश को आपदाओं से बचाने के लिए सरकार ने दिए 4797 करोड़ रुपए, PRITHvi VIgyan स्कीम को हरी झंडी

केंद्रीय कैबिनेट ने 4797 करोड़ रुपए की PRITHvi VIgyan स्कीम को अनुमति दे दी है. इस योजना के तहत देश को सभी प्रकार की आपदाओं से पहले चेतावनी देनी होगी. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय देश की विभिन्न वैज्ञानिक संस्थाओं के साथ मिलकर इस स्कीम को लागू करेगा. रिसर्च करवाएगा. आउटरीच प्रोग्राम चलवाएगा.

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय इस स्कीम के तहत जलवायु, हिमालय, समुद्र, जमीन से जुड़ी अलग-अलग योजनाएं चलाएगा. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय इस स्कीम के तहत जलवायु, हिमालय, समुद्र, जमीन से जुड़ी अलग-अलग योजनाएं चलाएगा.
आजतक साइंस डेस्क
  • नई दिल्ली,
  • 05 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 4:48 PM IST

केंद्रीय मंत्रिमंडल (Union Cabinet) ने पृथ्वी विज्ञान स्कीम (PRITHvi VIgyan) यानी पृथ्वी स्कीम को अनुमति दे दी है. कैबिनेट की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे थे. ये योजना साल 2021 से 2026 तक लागू रहेगी. योजना की कुल लागत 4,797 करोड़ रुपए है. 

इस योजना के तहत पूरे देश में सस्टेनेबल तरीके से जीवित और निर्जीव रिसोर्सेस को खोजना है. संभालना है. उन्हें संरक्षित करना है. इनमें तीनों ध्रुवों पर भी नजर रखी जाएगी. यानी आर्कटिक, अंटार्कटिक और हिमालय. मौसम संबंधी चेतावनियां देनी होंगी. जैसे समुद्री तूफान, चक्रवाती तूफान, बाढ़, गर्मी, थंडरस्टॉर्म, बिजली का गिरना, सुनामी, भूकंप आदि.

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इस योजना में वर्तमान में पांच उप-योजनाएं चल रही हैं - वायुमंडल और जलवायु अनुसंधान-प्रारूप निरीक्षण प्रणाली और सेवाएं (ACROSS), महासागर सेवाएं, प्रारूप अनुप्रयोग, संसाधन और प्रौद्योगिकी (O-SMART), ध्रुवीय विज्ञान और क्रायोस्फीयर अनुसंधान (PACER), भूकंप विज्ञान और भूविज्ञान (SAGE) और अनुसंधान, शिक्षा, प्रशिक्षण और आउटरीच (REACHOUT).

पृथ्वी योजना के प्रमुख उद्देश्य 

- पृथ्वी प्रणाली और परिवर्तन के महत्वपूर्ण संकेतों को रिकॉर्ड करने के लिए वायुमंडल, महासागर, भूमंडल, क्रायोस्फीयर और ठोस पृथ्वी के लंबे समय के डेटा को निकालना, संभालना और बदलावों को दर्ज करना. 
- मौसम, महासागर और जलवायु खतरों को समझने और भविष्यवाणी करने तथा जलवायु परिवर्तन के विज्ञान को समझने के लिए संबंधित प्रणालियों का विकास. 
- नई घटनाओं और संसाधनों की खोज करने की दिशा में पृथ्वी के ध्रुवीय और उच्च समुद्री क्षेत्रों की खोज.
- सामाजिक एप्लीकेशन के लिए समुद्री संसाधनों की खोज हेतु प्रौद्योगिकी का विकास और संसाधनों का सतत उपयोग. 
- पृथ्वी प्रणाली विज्ञान से प्राप्त ज्ञान और डेटा को सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ के लिए सेवाओं के रूप में बदलना.  

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पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय को मिले ये निर्देश

इस दौरान पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) को कुछ खास निर्देश भी दिए गए हैं. वो हैं- समाज के लिए मौसम, जलवायु, महासागर और तटीय राज्य, जल विज्ञान, भूकंप विज्ञान और प्राकृतिक खतरों से संबंधित विज्ञान-से-सेवा प्रदान करनेा. देश के लिए सतत तरीके से समुद्री जीवित और निर्जीव संसाधनों की खोज करना. उनका दोहन करना. 

पृथ्वी के तीन ध्रुवों (आर्कटिक, अंटार्कटिक और हिमालय) की खोज करने का भी निर्देश दिया गया है. विभिन्न एजेंसियों और राज्य सरकारों द्वारा मंत्रालय को प्रदान की गई सेवाओं का इस्तेमाल, प्राकृतिक आपदाओं से लोगों को बचाने और संपत्तियों को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए और प्रभावी तरीकों का इस्तेमाल करना.  

ये 10 संस्थान कर रहे हैं मंत्रालय की मदद

- भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD)
- राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र (NCMRWF)
- समुद्री जीवन संसाधन और पारिस्थितिकी केंद्र (CMLRE)
- राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (NCCR)
- राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (NCS)
- राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT)
- भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS)
- राष्ट्रीय ध्रुव और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR)
- भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM)
- राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र (NCESS) 

पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के तहत कौन-कौन से इलाके आते हैं 

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पृथ्वी प्रणाली विज्ञान में खासतौर से पांच हिस्से हैं. ये हैं- वायुमंडल, जलमंडल, भूमंडल, क्रायोस्फीयर, जीवमंडल और उनके बीच का जटिल संबंध. इनके लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय सभी पहलुओं पर समग्र रूप से कार्य करता है. पृथ्वी योजना के विभिन्न घटक एक-दूसरे पर निर्भर हैं. इन्हें MoES के अंतर्गत संबंधित संस्थानों द्वारा संयुक्त प्रयासों के माध्यम से एकीकृत रूप में चलाया जाता है.  

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