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Red-Headed Vulture in Delhi: दिल्ली-NCR में छह साल बाद दिखा दुर्लभ लाल सिर वाला गिद्ध

दिल्ली में छह साल बाद दुर्लभ लाल सिर वाला गिद्ध (Red Headed Vulture) दिखाई दिया है. इससे पहले यह साल 2017 में दिखा था. इस दुर्लभ पक्षी को असोला भट्टी वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी में देखा गया है. आइए जानते हैं इस बेहतरीन विशालकाय स्केवेंजर पक्षी की खासियत...

ये है लाल सिर वाला गिद्ध जो असोला भट्टी वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी में देखा गया. (फोटोः मनन सिंह महादेव) ये है लाल सिर वाला गिद्ध जो असोला भट्टी वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी में देखा गया. (फोटोः मनन सिंह महादेव)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 31 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 11:04 AM IST

साल 2017 के बाद पहली बार दिल्ली के भट्टी माइंस इलाके में लाल सिर वाला गिद्ध (Red Headed Vulture) देखा है. इसे असोला भट्टी वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी में 20 जनवरी को देखा गया था. उसी हफ्ते गुरुग्राम के चंदू बुढेरा में बेहद कम दिखने वाला ब्लैक वल्चर यानी काला गिद्ध दिखा था. 

बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी में विंटर रैप्टर सर्वे कर रही थी. उसी दौरान यह लाल सिर वाला गिद्ध दिखाई दिया. लाल सिर वाला गिद्ध इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (IUCN) के क्रिटिकली एनडेंजर्ड (Critically Endangered) सूची में शामिल है. अब पूरी दुनिया में 10 हजार से भी कम बचे हैं. 

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असोला भट्टी वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी के मैनेजर सोहेल मदान ने बताया कि इससे पहले यह पक्षी यहां पर साल 2017 में दिखा था. उसी साल सर्दियों में पहली बार विंटर रैप्टर सर्वे शुरू हुआ था. हालांकि 2017 के बाद यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के मांगर बानी इलाके में दो बार दिख चुका है. लेकिन असोला भट्टी में छह साल बाद दिखा था. 

Red-headed Vulture अधिकतम साढ़े तीन फीट लंबा होता है. इसका विंग स्पैन 8.50 फीट तक होता है. (फोटोः गेटी)

सोहेल ने कहा कि NCR इलाके में छह साल बाद इस शानदार पक्षी का दिखना एक दुर्लभ घटना है. यह पक्षी कई तरह के हैबिटेट में सर्वाइव कर सकता है, लेकिन भारत में इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है. यह स्केवेंजर्स पक्षियों का सरताज है. मरे जीवों को खाकर खत्म करता है. साथ ही उनके अंदर से निकले वाले पैथोजेंस को खत्म करता है. 

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देश के पश्चिमी, उत्तरी और पूर्वी इलाकों के 13 राज्यों में गिद्धों की आबादी को लेकर सर्वे चल रहा है. यह बात पहले ही पुख्ता हो चुकी है कि इनकी संख्या कम हो रही है. इसकी वजह है डाइक्लोफिनैक (Diclofenac) नाम का ड्रग. यह पक्षियों के लिए जहरीला होता है. इसलिए पशु चिकित्सकों ने इस दवा को 2006 में बैन कर दिया था. 

इससे गिद्धों की आबादी में जो कमी आ रही थी, उसमें रुकावट हुई है लेकिन इनकी संख्या बढ़ भी नहीं रही है. क्योंकि इसके अलावा कुछ और दवाएं भी हैं, जो बुरा असर डालते हैं. जैसे- एसिलोफिनैक, निमुस्लाइड और केटोप्रोफेन. गिद्धों के लिए जो दवाएं नुकसानदेह नहीं है, वो हैं मेलोजिकैम और टोलफिनैमिक एसिड.

 सोहेल ने बताया कि अब असोला में ज्यादातर इजिप्शियन गिद्ध दिखते हैं. उनकी संख्या यहां पर पर्याप्त है. हमें गिद्धों की अन्य प्रजातियों को भी बचाना होगा. उनकी आबादी को बढ़ाना होगा. बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी ने गिद्धों की आबादी जानने के लिए साल 2017 में सर्वे शुरू किया था. अब तक 70 सर्वे हो चुके हैं. 

इन सर्वे के अनुसार देश में एनडेंजर्ड इजिप्शियन वल्चर, ग्रेटर स्पॉटेड ईगल, पैलिड हैरियर और नॉर्दन गोशॉक जैसे पक्षी भी दिखे हैं. पहली बार किसी हिमालयन प्रजाति को दिल्ली में देखा गया था. वह भी असोला भट्टी में.  

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