
वैज्ञानिकों ने एक मछली को हेल्मेट की तरह दिखने वाला हेडगेयर पहना दिया है. वह किसी साइबोर्ग की तरह लग रही है. दरअसल वैज्ञानिक यह जानना चाहते थे कि मछलियों के मस्तिष्क में ऐसा क्या है, जिसकी वजह से वह अपनी दुनिया में नेविगेट कर सकती हैं.
वैज्ञानिक मछलियों के ब्रेन मेकैनिज़्म के बारे में जानना चाहते थे. इसलिए उन्होंने गोल्ड फिश के सिर पर एक साइबरनेटिक हेडगियर (Cybernetic headgear) पहनाया, ताकि इसपर स्टडी की जा सके कि नेविगेट करते समय मछली के मस्तिष्क में न्यूरॉन्स कैसे चलते हैं. इज़राइल में नेगेव के बेन-गुरियन यूनिवर्सिटी में एक न्यूरोसाइंटिस्ट रोनेन सेगेव (Ronen Segev) का कहना है कि नेविगेशन व्यवहार का एक बेहद अहम पहलू है, क्योंकि हम खाना खोजने के लिए, आश्रय खोजने के लिए और शिकारियों से बचने के लिए नेविगेट करते हैं.
प्लस बायोलॉजी (PLOS Biology) जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने शोध के लिए 15 मछलियों के सिर पर साइबरनेटिक हेडगियर बांधे थे. ऐसा करना उनके लिए ज़रा भी आसान नहीं था. क्योंकि एक गोल्ड फिश का दिमाग दाल के दानों के एक छोटे समूह जैसा दिखता है. यह सिर्फ आधा इंच लंबा होता है. सर्जरी करने वाले न्यूरोसाइंटिस्ट लियर कोहेन (Lear Cohen) का कहना है कि एक माइक्रोस्कोप के नीचे, हमने मछली के दिमाग को खोला और उसमें इलेक्ट्रोड डाल दिए. हर इलेक्ट्रोड का व्यास, इंसान के एक बाल के बराबर होता है.
ये सर्जरी करना मुश्किल इसलिए भी था क्योंकि मछली को नुकसान पहुंचाए बिना उन्हें ये काम किसी सूखी जगह पर करना था, और पर मछली को पानी चाहिए. और आप ये भी नहीं चाहते कि मछली ज़रा भी हिले. शोधकर्ताओं ने कहा कि मछली के मुंह में पानी और एनेस्थेटिक्स डालकर उन्होंने इन दोनों समस्याओं को हल किया.
मस्तिष्क में इलेक्ट्रोड डालने के बाद, उन्हें एक छोटे रिकॉर्डिंग डिवाइस से जोड़ा गया, जो न्यूरोन्स की गतिविधि को मॉनिटर कर सकता था. इसे वाटरप्रूफ केस में सील किया गया था, जो मछली के माथे पर लगाया गया था. इन चीज़ों से मछली की वजन न बढ़े, इसके लिए उन्होंने डिवाइस में प्लास्टिक फोम लगाया.
सर्जरी से ठीक होने के बाद, मछली के हेडगेयर का इस्तेमाल एक्सपेरिमेंट के लिए किया गया. मछलियों ने दो फुट लंबे, छह इंच चौड़े टैंक में नेविगेट किया. मछलियां तैरकर टैंक के किनारों के जितनी करीब पहुंचती हैं, उनके मस्तिष्क में नेविगेशनल सेल्स उतने ही ज़्यादा चमकते हैं.
मछली के ब्रेन-कंप्यूटर से यह पता चला कि मछली ऐसे नेविगेशन सिस्टम का इस्तेमाल करती है जो स्तनधारियों के सिस्टम से बहुत अलग है. मनुष्यों और इस क्लास के बाकी सदस्यों में, नेविगेश्नल सेल हमारे पर्यावरण के अंदर हमारी सही लोकेशन को पिंग करती हैं और उस जगह के चारों ओर एक नक्शा बनाती हैं. स्तनधारियों के पास खास तरह के न्यूरॉन्स होते हैं जो मस्तिष्क में इस तरह के पिन बनाते हैं जिससे पता चलता है कि आप यहां हैं. शोधकर्ताओं को ये सेल्स मछलियों में नहीं मिले.
इसके बजाय, गोल्डफिश एक अलग तरह के न्यूरॉन पर भरोसा करती है जो मछली को यह बताता है कि वह किसी सीमा या किसी बाधा के करीब पहुंच रही है. यह जानकारी इकट्ठा करने के बाद कि वह अलग-अलग बाधाओं से कितनी दूर है, मछली खुद को उन्मुख कर लेती है.
सभी प्रयोगों को यूनिवर्सिटी की एनिमल वेल्फेयर कमेटी ने अप्रूव किया था. और मछलियों के स्विमिंग ट्रायल के बाद, शोधकर्ताओं ने उन्हें यूथेनाइज़ किया, ताकि वे उनके दिमाग की और जांच कर सकें. टीम को आगे यह सीखने की उम्मीद है कि मछलियों का नैविगेशन सिस्टम हमसे कैसे और क्यों अलग है.