
अपने सैनिक को खतरे में डाले बिना रूस (Russia) ने यूक्रेन (Ukraine) की राजधानी कीव पर घातक हमला किया. एक साथ की सुसाइड ड्रोन्स (Suicide Drones) से कीव की कई इमारतों को निशाना बनाया गया. कीव बुरी तरह से हिल गया. लोग इन ड्रोन्स पर असॉल्ट राइफलों से गोलियां दागते भी दिखाई दिए. लेकिन ये आत्मघाती ड्रोन्स जिस काम से आए थे, वो उन्होंने पूरा किया. आखिर इस तरह के ड्रोन्स काम कैसे करते हैं? इनकी रक्षा प्रणाली के पीछे का साइंस क्या है? ये कैसे समूह में हमला करते हैं?
कामीकेज ड्रोन्स (Kamikaze Drones) यानी सुसाइड ड्रोन्स. इन्हें उड़ाने के लिए किसी इंसान की जरुरत नहीं होती. इनके नेविगेशन सिस्टम और एवियोनिक्स सिस्टम में एक बार दुश्मन का टारगेट लोकेशन फीड कर दो. इन्हें उड़ा दो. हथियारों को एक्टिव कर दो. उसके बाद ये अपना काम बूखबी कर देते हैं. अगर एक साथ दर्जनों ड्रोन्स किसी शहर के ऊपर हमला करेंगे तो कोई भी सेना एंटी-ड्रोन प्रणाली का भी इस्तेमाल नहीं कर पाएगी. यानी तबाही पक्की है.
सुसाइड ड्रोन्स की खासियत यही होती है कि ये खुद तो मरेंगे ही, दुश्मन टारगेट को भी खत्म कर देंगे. इन्हें वापस लाने का कोई टेंशन नहीं होता. इन्हें सेना की भाषा में लॉयटरिंग म्यूनिशन (Loitering Munition) कहते हैं. इन्हें इमारत, टैंक, बख्तरबंद वाहन, सैनिकों के समूह पर कहीं भी गिरा दो. तबाही मचा देते हैं. एक बार आपने इनके अंदर दुश्मन टारगेट की लोकेशन फीड कर दीजिए. उसके बाद ये उसकी मौत की खबर दे देते हैं.
हर कामीकेज ड्रोन में आगे एक कैमरा और कुछ सेंसर्स लगे होते हैं. ड्रोन में गाइडेड हथियार लगाए जाते हैं. यानी ड्रोन और हथियार को टारगेट की लोकेशन पता होती है. ड्रोन के जीपीएस पर लोकेशन लॉक हो जाती है, तब ये टेकऑफ के बाद सीधे लक्ष्य तक पहुंचकर खुद को उड़ा लेता है. ऐसे ड्रोन्स अलग-अलग रेंज के होते हैं. उनके हथियारों का वजन भी अलग-अलग हो सकता है. ज्यादा तबाही यानी ज्यादा भारी हथियार लोड कर दीजिए.
रूस में जिन ड्रोन्स से हमला किया गया है. उन्हें रूस की दो कंपनियां बनाती हैं. पहली जाला केवाईबी-यूएवी (Zala KYB-UAV) और दूसरी रोजटेक कलाशनिकोव (Rostec Kalashnikov). दोनों कंपनियों के ये तिकोन ड्रोन बेहद खतरनाक माने जाते हैं. पिछले साल तक इनका ट्रायल चल रहा था. लेकिन इस साल जबसे रूस ने यूक्रेन के खिलाफ जंग छेड़ी. इनका इस्तेमाल बढ़ा दिया गया. इन्हें रूसी सैनिक स्ट्राइक ड्रोन्स कहते हैं. ये तीन KG हथियार लेकर उड़ सकते हैं.
30 मिनट तक लगातार उड़ने की क्षमता होती है. इस समय इनकी गति ज्यादा नहीं होती. क्योंकि इन्हें अपने टारगेट तक नेविगेट करके पहुंचना होता है. इस ड्रोन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस विजुअल आइडेंटिफिकेशन (AIVI) टेक्नोलॉजी लगी है ताकि टारगेट की रीयल टाइम पहचान हो सके. इसलिए गति को 80 से 130 किलोमीटर प्रतिघंटा के हिसाब से ही रखा जाता है. यानी कोई ढंग का निशनेबाज हो तो इन पर आसानी से निशाना लगा सकता है.
रूस ने जिन तिकोन सुसाइड ड्रोन्स का इस्तेमाल किया है वह 0.95 मीटर लंबा है. इसके पंखों का फैलाव 1.21 मीटर है. 0.165 मीटर ऊंचे इस ड्रोन से जासूसी, सर्विलांस, रीकॉन्सेंस और हमला चारों काम किया जा सकता है. उड़ान के दौरान ही टारगेट की पहचान कर उसपर घातक हमला किया जा सके. इसे लॉन्च करने के लिए कैटापॉल्ट यानी गुलेल जैसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है. इसकी रेंज 40 किलोमीटर तक है.