
ये साइंस की बड़ी खबरों का साल भर का लेखा-जोखा है. पूरी कहानी पढ़ने को मिलेगी. रोचक खबरें... लेकिन आपको सिर्फ एक काम करना होगा. जो शब्द नीले रंग में बोल्ड और अंडरलाइन दिखे. बस उसे क्लिक करिए. डिटेल में खबर पढ़िए.
शुरुआत करते हैं ऐसी खबर से जो हम इंसानों यानी होमो सैपियंस का भविष्य तय करेगी. कौन सी महिला मां बनेगी. कौन सा पुरुष पिता बनेगा. यह खबर वह तय करेगी. यानी सिंथेटिक भ्रूण (Synthetic Embryo) की खबर. अब क्या सिंथेटिक बच्चे पैदा होंगे? आखिरकार सिंथेटिक भ्रूण बनाने की जरुरत किसी बायोटेक फर्म को क्यों पड़ रही है. एक बायोटेक कंपनी ने कहा है कि अब वह इंसानों का भ्रूण सिंथेटिक तौर पर विकसित करेगा. भ्रूण बनाने का मतलब सिंथेटिक जीवन को जन्म देना. यानी इंसानों का भविष्य नकली होने वाला है.
इंसानों ने ऐसी रोबोटिक उंगली भी बना ली है, जो इंसानी त्वचा से बनी है. यानी वह फील कर सकती है. यह दिखती भी इंसानी उंगली जैसी है. खास बात जानेंगे.... ये बिना टूटे मुड़ सकती है. घूम सकती है. अगर इसे चोट लग भी जाए तो घाव खुद-ब-खुद भर जाते हैं. यानी ये उंगली अपने आप ठीक हो जाती है. इसे बनाने वाले साइंटिस्ट का कहना है सिलिकॉन से बने रोबोट दूर से तो अच्छे लगते हैं. असली भी लेकिन पास आते ही भ्रम टूट जाता है. इस उंगली के ऊपर आपके हल्का सा पसीना भी दिखाई देगा.
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उंगली तक तो ठीक था... एक महिला को तो थ्रीडी प्रिंटर से बनाया गया कान लगा दिया गया. कान को उसी महिला की कोशिका से तैयार किया गया था. दुनिया में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी मरीज की कोशिका (Cells) लेकर उसके लिए नया थ्रीडी प्रिंटेड अंग बनाया गया हो. अमेरिका में एक कंपनी है, जिसका नाम है 3डीबायो थेराप्यूटिक्स (3DBio Therapeutics). इसके वैज्ञानिकों ने 20 वर्षीय महिला की कोशिकाओं से उसके लिए नया 3D प्रिंटेड कान बना दिया.
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इंसान से ज्यादा क्रिएटिव कोई हो नहीं सकता. इंसानी दिमाग के ब्रेन सेल्स को चूहों के दिमाग में ट्रांसप्लांट कर दिया. वजह पता है आपको.. न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर को गहराई से समझने और कई मानसिक विकारों का इलाज खोजने के लिए वैज्ञानिकों ने यह शोध किया है. इस शोध में जैसे-जैसे चूहे बड़े हुए, मानव न्यूरॉन्स ने चूहों के दिमाग में काम करना शुरू कर दिया और कई ब्रेन सर्किट बनाए. ताकि मानव मस्तिष्क को समझ सकें. उसकी दिक्कतों को सुलझा सकें.
खैर ये तो बात हो गई ऐसे बायोसाइंटिफिक इनोवेशन की. इस साल भारत में कई बेहतरीन साइंटिफिक काम हुए हैं. पहले भारत में हुई बड़ी साइंटिफिक घटनाओं के बारे में जानते हैं. इनमें से ज्यादातर स्पेस साइंस से जुड़ी हैं. पहली खबर श्रद्धांजलि की है. हम यहां याद करेंगे Mangalyaan को. ISRO के मंगलयान मिशन का अंत हो चुका है. 8 साल 8 दिन के बाद इस शानदार अंतरिक्ष मिशन का ईंधन और बैटरी खत्म हो चुकी है. अब भारत के मंगलयान से किसी तरह की कोई खबर नहीं आएगी. मिशन सिर्फ 6 महीने के लिए भेजा गया था लेकिन इसने लगातार आठ सालों तक बेहतरीन काम किया.
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इसरो ने चार साल बाद देश का सबसे भारी रॉकेट LVM-3 लॉन्च किया था. लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से हुई थी. यह रॉकेट अपनी बड़ी सी नाक में ब्रिटिश कंपनी का सैटेलाइट ले गया. इस बार की लॉन्चिंग काफी महत्वपूर्ण थी क्योंकि इससे पहले इस रॉकेट से 2019 में लॉन्चिंग हुई थी. इस रॉकेट में 36 सैटेलाइट्स स्पेस में भेजे गए थे. सिर्फ इतना ही नहीं. इसरो ने इस साल एक जरूरी सैटेलाइट OceanSat-3 लॉन्च किया था. इसमें भूटान के लिए खास रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट था. इसके अलावा सात निजी नैनो सैटेलाइट्स भी.
सबसे बड़ी खबर ये थी कि देश में पहली बार किसी निजी कंपनी ने अपना रॉकेट लॉन्च किया. देश में निजी स्पेस उड़ानों का Prarambh हो चुका है. पहला निजी रॉकेट Vikram-S श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक लॉन्च हो गया. भविष्य में ISRO इन रॉकेटों की मदद से ज्यादा से ज्यादा सैटेलाइट लॉन्च कर पाएगा. यानी अब भारत में भी Elon Musk की कंपनी स्पेसएक्स की तरह निजी रॉकेट उड़ान भरेंगे.
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एक खबर और अच्छी है. इसी साल ISRO को नए प्रमुख डॉ. एस. सोमनाथ (Dr. S. Somanath) मिले. वो डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस के सेक्रेटरी बनाए गए. उन्होंने पद ग्रहण करने के बाद ही सफलता के झंडे गाड़े. 14 फरवरी 2022 की सुबह 5.59 बजे अपने सबसे भरोसेमंद रॉकेट PSLV-C52 से इस साल की पहली लॉन्चिंग यानी EOS-4 सैटेलाइट को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित करवा दिया.
अब जब अंतरिक्ष की बात हो रही है तो बाकी देशों के मिशन को कैसे भूल सकते हैं. इस साल तीन बड़े अंतरिक्ष मिशन पूरे किए गए. पहला था जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप (JWST). दूसरा डार्ट मिशन (DART Mission) और तीसरा अर्टेमिस-1 मून मिशन (Artemis-1) की लॉन्चिंग. जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप की लॉन्चिंग पिछले साल 25 दिसंबर 2021 को की गई थी. लेकिन वह एक महीने बाद अपने सही स्थान पर पहुंचा था. करीब 40 दिन बाद उसने ऐसी-ऐसी तस्वीरें भेजनी शुरू की, जिसने पूरी दुनिया की आंखें खोल दीं.
यहां तक तो ठीक था... भाई साहब नासा ने पूरा का पूरा स्पेसक्राफ्ट ले जाकर एस्टेरॉयड से टकरा दिया. DART Mission डिडिमोस एस्टेरॉयड के चंद्रमा डाइमॉरफोस से टकराया. टक्कर सटीक हुई है. यानी भविष्य में धरती को ऐसे एस्टेरॉयड के हमलों से बचाया जा सकेगा. जैसे ही उनके आने का पता चलेगा, उनकी तरफ धरती से स्पेसक्राफ्ट छोड़ दिया जाएगा. ताकि वो दूर अंतरिक्ष में ही अपनी दिशा बदल दें. सफलता भी मिली.
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अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 50 साल बाद चंद्रमा के लिए कोई मून मिशन भेजा है. नाम तो पता ही होगा आपको. यानी Artemis-1. दुनिया के सबसे बड़े रॉकेट SLS से चंद्रमा का चक्कर लगाकर वापस आने के लिए Orion Spacecraft भेजा. मिशन सफल रहा. स्पेसक्राफ्ट अपना काम करके वापस भी आ गया. यानी अर्टेमिस-3 मिशन में इंसानों को छह-सात दिन के लिए चंद्रमा की सतह पर रहने के लिए भेजा जाएगा.
अब आप अमेरिका की बात करेंगे तो चीन को कैसे भूल सकते हैं. चीन ने अपना स्पेस स्टेशन बना लिया. अब वहां उसके अंतरिक्षयात्री रह रहे हैं. हां वो बात अलग है कि स्पेस स्टेशन बनाने के चक्कर में उसके कई रॉकेट्स अनियंत्रित होकर धरती पर आकर गिरे हैं. जो हमेशा के लिए कई देशों के लिए खतरा बनते हैं.
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अब लोग अंतरिक्ष में घूमने भी जा रहे हैं. स्पेस स्टेशन पर फिल्मों की शूटिंग हो रही है. एलन मस्क की SpaceX, जेफ बेजोस की Blue Origin और कई अन्य कंपनियां लोगों को अंतरिक्ष की सैर करा रहे हैं. यानी अगले कुछ सालों में अंतरिक्ष में पर्यटन बेहद सामान्य घटना होगी. भले ही आप अंतरिक्ष के दरवाजे तक जाकर जीरो ग्रैविटी महसूस करके वापस चले आएं. लेकिन अंतरिक्ष के दरवाजे से पृथ्वी को देखना भी अपने-आप में बड़ी बात है.
आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि पृथ्वी के करीब कितने Alien हो सकते हैं. हाल ही में एक वैज्ञानिक ने दावा किया है कि हमारे सौर मंडल में 40 डेसीलियन इंटरस्टेलर ऑब्जेक्ट हो सकते हैं, जो बेहद चौंकाने वाली संख्या है. अमेरिका अब एलियन यानों को लेकर काफी गंभीर नजर आ रहा है, इसके लिए पिछले साल अमेरिकी रक्षा विभाग ने यूएपी टास्क फोर्स भी शुरू की थी. ये तब है जब पृथ्वी की कई जगहों पर इन एलियन यानों के दिखाई देने की खबरें मिलीं. लेकिन सोचिए, अगर ये एलियन यान 'कुछ' नहीं बल्कि असंख्य हों तो?
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एलियन हंटर और हार्वर्ड के खगोलशास्त्री एवी लोएब (Avi Loeb) एक बार फिर एक शोध के साथ वापस आए हैं. इस बार उन्होंने दावा किया कि हमारे सौर मंडल में 4 क्विंटलियन (quintillion) एलियन स्पेसक्राफ्ट छिपे हो सकते हैं. अब ये भी जान लीजिए कि 4 क्विंटलियन होता कितना है. यानी 4,000,000,000,000,000,000. जाहिर है ये संख्या बहुत ज्यादा बड़ी है. अब इतनी उड़न तश्तरियों की हमारे सौर मंडल में उड़ने की कल्पना कीजिए.
हर साल ब्लैक होल खोजे जाते हैं. उन्हें लेकर स्टडी की जाती है लेकिन हमारी आकाशगंगा के बीच में भी एक ब्लैक होल है. खगोलविदों ने मिल्की वे के केंद्र की अब तक की सबसे साफ तस्वीर ली, जिसमें ब्लैक होल भी दिखाई दे रहा है. इस ब्लैक होल का नाम है सैगिटेरियस ए* (Sagittarius A*). यह कुछ सेकेंड्स के लिए दिखता था, फिर गायब हो जाता था. यह इतना बड़ा है कि इसमें 43 लाख सूरज समा सकते हैं. यह धरती से करीब 27 हजार प्रकाश वर्ष दूर है.
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बृहस्पति ग्रह को भी पृथ्वी से प्यार है. इसलिए तो वह 59 सालों बाद नजदीक आया था. सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति धरती के नजदीक आया. आमतौर पर धरती से बृहस्पति की दूरी अधिकतम दूरी 96 करोड़ किलोमीटर रहती है. लेकिन 25-26 सितंबर को यह दूरी घटकर 59 करोड़ किलोमीटर हो गई थी. इससे पहले हमारी धरती के इतने पास बृहस्पति ग्रह अक्टूबर 1963 में आया था.
चांद की सतह पर दो गड्ढे मिले है, जो एक रहस्यमयी रॉकेट की टक्कर से बना है. लेकिन उसके आसपास कहीं भी रॉकेट के बूस्टर या हिस्से का कोई अता-पता नहीं चल रहा है. यह टक्कर चार महीने पहले हुई थी. तस्वीरें नासा के LRO ने ली हैं. वैज्ञानिकों को समझ नहीं आ रहा कि रॉकेट के एक हिस्से की टक्कर से दो गड्ढे कैसे बन गए? पहली बार इंसानी कचरे की वजह से चांद पर गड्ढे बने थे. कायदे से ये हैरानी की बात है कि हम इंसान धरती के साथ-साथ अंतरिक्ष और अन्य ग्रहों-उपग्रहों को गंदा कर रहे हैं.
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वैज्ञानिकों को हमारी आकाशगंगा के केंद्र में ऐसे सूक्ष्म कण मिले हैं, जो मिलकर आरएनए (RNA) बनाते हैं. अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या हमारी उत्पत्ति की वजह आकाशगंगा के केंद्र में मौजूद है. क्या हमारे पूर्वज या धरती पर मौजूद किसी भी प्राणियों के पूर्वजों की पैदाइश और विकास गैलेक्सी के बीच से हुई थी. आकाशगंगा के बीच में कुछ ऐसे मॉलिक्यूलर बादल मिले हैं, जहां पर भारी मात्रा में ऐसे अतिसूक्ष्म कण पाए गए हैं, जो आरएनए (RNA) का निर्माण करते हैं. इस बादल में विभिन प्रकार के नाइट्राइल्स (Nitriles) मिले हैं. ये कण अकेले बेहद टॉक्सिक होते हैं. लेकिन जैसे ही उपयुक्त वातावरण में आते हैं, ये जीवन की उत्पत्ति के लिए कार्य करने लगते हैं.
साल के शुरुआत में ही रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया. नतीजा ये हुआ कि इसका असर साइंटिफिक कार्यों पर भी पड़ा. सोयुज प्रोग्राम सस्पेंड हो गया. रूस को एक्सोमार्स प्रोजेक्ट से बाहर निकाल दिया गया. कई सारे प्रोजेक्ट्स बंद कर दिए गए. यूक्रेन के साथ युद्ध करने पर यूरोपीय संघ (European Union) ने रूस पर कई प्रतिबंध लगा दिए हैं. इससे नाराज रूस ने फ्रेंच गुएना (French Guiana) से सभी स्पेस लॉन्च को रोक दिया है. उसके कोरोऊ कॉस्मोड्रोम से लॉन्च तो रोका ही है, साथ ही फ्रेंच गुएना से सभी तकनीकी कर्मचारियों को वापस बुला लिया है.
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इसका बदला लेने के लिए मंगल ग्रह (Mars) के लिए चल रहे एक मिशन से यूरोपियन स्पेस एजेंसी (European Space Agency) ने रूस (Russia) को बाहर निकाल दिया है. अब रूसी स्पेस एजेंसी रॉसकॉसमॉस (Roscosmos) इस प्रोजेक्ट से बाहर है. यह मिशन करीब 8433 करोड़ रुपये का था. लेकिन हर जगह दुख की खबरें नहीं आती. कुछ अच्छी खबरें भी आती है. साल के अंत नजदीक आते-आते नोबल पुरस्कारों की घोषणा हुईं.
हमारी अपनी आकाशगंगा से धरती पर कुछ विचित्र सिग्नल आ रहे हैं. वो बेहद कम समय के लिए...यानी कुछ मिलिसेकेंड्स के लिए. वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि कहीं हमारी आकाशगंगा यानी मिल्की-वे के अंदर ही कोई ऐसी सभ्यता या एलियन ग्रह तो नहीं है, जहां से हमें ये संदेश मिल रहे हैं. वैसे तो ये कहानी शुरु होती है पिछले साल से...लेकिन इन सिग्नलों में आ रहे संदेशों को समझने का प्रयास अब भी चल रहा है. क्योंकि ये नया है.
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बायोलॉजी का नोबेल Svante Paabo को दिया गया. इन्होंने यह पता किया कि इंसान एक जगह से पूरे ग्रह पर कैसे फैल गए? स्वीडन के प्रोफेसर पाबो की रुचि हमारे पूर्वजों से प्राप्त पुरानी और खराब हो चुकी जेनेटिक सामग्री के सीक्वेंसिंग में थी. कई लोगों ने सोचा कि यह एक असंभव चुनौती थी. लेकिन पाबो ने पहली बार 40,000 साल पुराने हड्डी के टुकड़े से DNA सीक्वेंस की. इससे मानव विकास के कई सवालों के जवाब हमें मिले.
साल 2022 का फिजिक्स का नोबेल तीन फिजिसिस्ट को दिया गया है. ये हैं एलेन एसपेक्ट, जॉन क्लॉसर और एंटन ज़ीलिंगर. तीनों ने क्वांटम इनटैंगलमेंट पर अलग-अलग प्रयोग किए हैं. भविष्य में इसकी मदद से बड़े-बड़े, सुपर-डुपर फास्ट क्वांटम कंप्यूटर बनाए जा सकते हैं. क्वांटम संचार हो सकता है. वह भी अंतरिक्ष में एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक बिना किसी बाधा के. ऊर्जा बढ़ाई जा सकती है. अंतरिक्ष से ऊर्जा ली और लाई जा सकती है. साथ ही 100 जीबी के डेटा कंप्रेस करके एक जीबी के मेमोरी कार्ड में रख सकते हैं. क्वाटंम इनटैंगलमेंट का सबसे बड़ा फायदा भविष्य में जो होगा, वो है टेलिपोर्टेशन (Teleportation). एक सेकेंड में दिल्ली से न्यूयॉर्क आप बिना किसी ट्रेन, प्लेन, जेट, बस के पहुंच जाएंगे.
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केमिस्ट्री का नोबेल पुरस्कार जिस तकनीक को मिला है. वह कैंसर का इलाज कर सकती है. डीएनए में बदलाव कर सकती है. प्लास्टिक कचरे से निजात दिला सकती है. आपके घर को सुरक्षित बना सकती है. शॉर्ट सर्किट से लगने वाली आग से बचा सकती है. यानी आपके जीवन की हर समस्या का समधान कर सकती है.
इस साल धरती ने भी बहुत डराया. प्राकृतिक आपदाओं का साल था. लेकिन कुछ घटनाओं ने हैरान कर दिया. वैज्ञानिकों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया. जैसे- पाकिस्तान की बाढ़, टोंगा ज्वालामुखी का फटना, इंडोनेशिया का भूकंप. न्यूजीलैंड के पास दक्षिणी प्रशांत महासागर में इतना भयानक ज्वालामुखी विस्फोट हुआ कि धरती के चारों तरफ हवा के दबाव की एक लहर यानी शॉक वेव दो बार दौड़ गई. ज्वालामुखी से शुरू हुई शॉकवेव उत्तरी अफ्रीका में जाकर खत्म हुई और फिर वहां से वापस उठी तो ज्वालामुखी तक आ गई. जैसे तालाब में कंकड़ फेंकने से लहर उठती है. इस ज्वालामुखी का नाम है टोंगा (Tonga Volcano). इसके धमाके की आवाज 2300 किलोमीटर दूर तक स्पष्ट सुनाई दी. यानी दिल्ली से चेन्नई की दूरी. सिर्फ इतना ही नहीं, शॉक वेव की वजह से 4 फीट ऊंची लहरों की सुनामी आई. जिससे काफी नुकसान हुआ है.
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इस साल यूरोप का कोई हिस्सा ऐसा नहीं बचा था जो भयानक गर्मी की चपेट में न रहा हो. बढ़ते तापमान से फ्रांस, ग्रीस के जंगलों में भयानक आग लग गई थी. ग्रेटर ब्रिटेन में घर जल रहे थे. स्पेन और पुर्तगाल में तापमान संबंधी दिक्कतों की वजह से 1000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी थी. पारा 40 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया था. यूरोप बर्फ की तरह पिघल रहा था. सही मायनों में पूरे यूरोप ने पहली बार Climate Emergency देखी थी.
इस साल मध्य जून में पाकिस्तान लगातार भीग रहा था. भयानक मॉनसूनी बारिश से. पाकिस्तान की राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने कहा था कि 3.30 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित थे. 10 लाख घर क्षतिग्रस्त हो चुके थे. पाकिस्तान का एक तिहाई हिस्सा पानी में डूबा था. अब बात करते हैं इंडोनेशिया के भूकंपों की... सबसे ज्यादा ज्वालामुखी वाला देश भयानक भूकंप से परेशान हुआ. 270 लोग मारे गए थे. सैकड़ों लोग लापता हो गए थे. हालांकि इंडोनेशिया में भूकंप, ज्वालामुखी और सुनामी तीनों का खतरा हमेशा बना रहता है.
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साल 2015 से लेकर इस साल तक दुनिया का तापमान बहुत तेजी से बढ़ा. इसका सबसे ज्यादा नुकसान भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश को भुगतना पड़ रहा है. इस बात का खुलासा विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने किया. उसकी रिपोर्ट में इन तीनों देशों के लिए भयानक आपदाओं वाले भविष्य की आशंका जताई गई थी.
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जलवायु परिवर्तन का असर की वजह से पक्षियों की एक प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर आ पहुंची है. दक्षिण अफ्रीका के पीली चोंच वाले हॉर्नबिल (Yellow-Billed Hornbill) 2027 के बाद नजर हीं आएंगे. सिर्फ इतना ही नहीं पिछले 200 सालों में पेड़-पौधों की 800 प्रजातियां नष्ट हो चुकी हैं. ऐसे ही न जाने कितने जीव दुनिया से हर साल खत्म होते जा रहे हैं. अब जब क्लाइमेट चेंज की बात हो रही है तो हम आर्कटिक या अंटार्कटिक या दुनिया के ग्लेशियरों की हालत कैसे भूल सकते हैं. ये भी तो ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से पिघलते जा रहे हैं.
जलवायु परिवर्तन से हमारी पृथ्वी बुरी तरह प्रभावित हो रही है. हाल ही में इंटरनेशनल क्रायोस्फीयर क्लाइमेट इनिशिएटिव रिसर्च नेटवर्क की रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्मियों में आर्कटिक की समुद्री बर्फ (summertime Arctic sea ice) 2050 तक गायब हो जाएगी. यानी महज 30 सालों में दुनिया के सबसे बर्फीले इलाकों में बर्फ नहीं दिखेगी. जब बर्फीली दुनिया खत्म होगी तो नए बैक्टीरिया और जॉम्बी वायरस बाहर आएंगे. ये वर्तमान दुनिया के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं.
वैज्ञानिकों को मांस खाने वाले डायनासोर की हड्डियों के जीवाश्म मिले हैं. इसे यूरोप का अब तक का सबसे बड़ा डायनासोर कहा जा रहा है. इस डायनासोर की लंबाई 33 फीट से ज्यादा थी. ऐसे कई जीवों की खोज वैज्ञानिकों ने की. जिनसे इंसानों या उनके पूर्वजों के संबंधों का खुलासा होता है.