
हाल ही में किए गए शोध से पता चला है कि पृथ्वी के कोर के पास एक विशाल समुद्री तलहटी छिपी हुई है. सेस्मिक इमेजिंग (Seismic imaging) ने खुलासा किया है कि पृथ्वी का कोर इससे पूरी तरह से घिरा हुआ है. अगर पूरी तरह नहीं, तो भी इसका ज़्यादा से ज़्यादा हिस्सा घिरा हुआ है.
साइंस एडवांसेज (Science Advances) जर्नल में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, यह पतली, घनी परत पृथ्वी की सतह से करीब 3,200 किलोमीटर नीचे कोर और ग्रह की मध्य परत के बीच में स्थित है, जिसे मेंटल कहा जाता है.
पृथ्वी के अंदर के हिस्से का अध्ययन करने के लिए, भूकंपविज्ञानी भूकंप की तरंगों को मापते हैं जो पूरे ग्रह पर ज़ूम करते हुए पृथ्वी की सतह पर वापस आ जाती हैं. पृथ्वी के अंदर अलग-अलग संरचनाओं से गुज़रने के बाद ये तरंगें किस तरह बदलती हैं, यह देखकर शोधकर्ता एक नक्शा बना सकते हैं कि पृथ्वी के अंदरूनी हिस्से दिखते कैसे हैं. पिछले शोधों में कोर के पास, घने महासागर के क्रस्ट के कुछ अलग-अलग पॉकेट्स की पहचान की गई थी. इन पॉकेट्स को अल्ट्रा-लो-वेलोसिटी-ज़ोन स्ट्रक्चर्स (ULVZs) कहा जाता है, क्योंकि भूकंपीय तरंगें इनके माध्यम से बहुत धीमी गति से चलती हैं.
शोध की मुख्य लेखक और अलबामा यूनिवर्सिटी में जियोलॉजिकल साइंसेस की प्रोफेसर समांथा हैनसेन (Samantha Hansen) का कहना है कि ULVZs के लिए कोर-मेंटल सीमा के करीब 20% की पहले जांच की गई है, जिन्हें इन सभी जगहों पर पहचाना नहीं गया. हो सकता है कि यह सामग्री पूरे कोर को कवर करती हो.
नए शोध में, वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका में स्थित 15 स्टेशनों पर भूकंपीय उपकरण लगाए और तीन साल तक डेटा इकट्ठा किया. शोद से पहली बार यह पता चला कि दक्षिणी गोलार्ध (Southern Hemisphere) के डेटा का इस्तेमाल करके, कोर-मेंटल सीमा की हाई- रिज़ॉल्यूशन तस्वीर बनाई गई थी. कोर की तुलना में यह परत बहुत बारीक है, जो कि 724 किमी के पार है और मेंटल करीब 2,900 किमी मोटा है. जगहों के हिसाब से मोटाई अलग-अलग होती है, कुछ स्पॉट करीब 5 किमी मोटे हैं और बाकी 50 किमी.
शोधकर्ताओं का मानना है कि नए खोजे गए ULVZs ज़रूर 'भूमिगत पहाड़' हैं जिससे पृथ्वी के पिघले हुए कोर से गर्मी बाहर निकलती है. समांथा का कहना है कि इस परत की उपस्थिति कोर-मेंटल सीमा में गर्मी के प्रवाह को बफर कर सकती है. रिसर्च टीम अंटार्कटिका के सभी उपलब्ध भूकंपीय स्टेशनों से इकट्ठा किए गए आंकड़ों की जांच करके, अपने शोध का विस्तार करने की योजना बना रही है.