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इस मरते हुए तारे ने निगल लिया पूरा ग्रह, वैज्ञानिकों ने पहली बार देखा ऐसा नज़ारा

वैज्ञानिकों को अब तक कई सबूत मिले हैं जिसमें तारों ने अपने आस-पास के ग्रहों को निगला है. लेकिन ये पहली बार हुआ कि उन्होंने इस घटना को अपनी आंखो से देखा. शोधकर्ताओं का कहना है कि आने वाले कुछ सालों में हमारा सूर्य भी पृथ्वी को कुछ इसी तरह से निगल जाएगा.

पहली बार वैज्ञानिकों ने किसी तारे को ग्रह निगलते हुए देखा (Photo: International Gemini Observatory/NOIRLab/NSF_AURA_M. Garlick_M. Zamani) पहली बार वैज्ञानिकों ने किसी तारे को ग्रह निगलते हुए देखा (Photo: International Gemini Observatory/NOIRLab/NSF_AURA_M. Garlick_M. Zamani)
aajtak.in
  • वॉशिंगटन,
  • 08 मई 2023,
  • अपडेटेड 7:51 PM IST

खगोलविदों ने पहली बार किसी मरते हुए तारे को अपने ही किसी ग्रह को निगलते हुए देखा है. आने वाले समय में हमारे अपने ग्रह के भाग्य का यह एक ट्रेलर हो सकता है. सूरज जिस तरह से बढ़ रहा है, 5 अरब सालों में पृथ्वी के साथ भी कुछ ऐसा ही हो सकता है. 

यह मरता हुआ तारा पृथ्वी से 13,000 प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित था. यह अपने मूल आकार से हजारों गुना बड़ा हो गया था. खगोलविदों ने इस ग्रह की मौत को सफेद रौशनी के रूप में देखा, जो 10 दिनों में बहुत तेजी से बढ़ी थी. इस रौशनी और ग्रह को निगलने वाले तारे में से बाहर निकलने वाली सामग्री के कैमिकल सिग्नेचर की स्टडी करने पर पता लगा कि इस तारे ने जिस ग्रह को निगला था, वह पृथ्वी के आकार के कम से कम 30 गुना बड़ा था. यह ग्रह एक विशाल गैस का गोला था. इस घटना से जुड़ी जानकारी को नेचर जर्नल में प्रकाशित किया गया है.

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प्रकाश 100 दिनों तक चमकता रहा और इसके बाद बुझ गया ​(Photo: International Gemini Observatory/NOIRLab/NSF_AURA_M. Garlick_M. Zamani)

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में कवली इंस्टीट्यूट फॉर एस्ट्रोफिजिक्स एंड स्पेस रिसर्च के एक पोस्टडॉक्टोरल छात्र और शोध के मुख्य लेखक किसलय डे (Kishalay De) का कहना है कि  हम पृथ्वी का भविष्य देख रहे हैं. 

अपने अधिकांश जीवन में, तारे हाइड्रोजन परमाणुओं को हीलियम में मिलाकर जलते हैं. जब उनका हाइड्रोजन ईंधन खत्म हो जाता है, वे हीलियम को फ्यूज करना शुरू कर देते हैं, जिससे भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है. इस वजह से वह अपने मूल आकार से सैकड़ों या हजारों गुना तक बढ़ जाता है. और वह अपने आसपास के ग्रहों को निगल लेते हैं क्योंकि अब वे विशालकाय तारों में बदल जाते हैं, जिन्हें लाल दानव या Red Giants कहा जाता है. 

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खगोलविदों ने पहली बार Zwicky Transient Facility, नाम के एक खगोलीय सर्वे का इस्तेमाल करते हुए अजीब प्रकाश को देखा. तब इस फ्लैश को ZTF SLRN-2020 नाम दिया गया. यह प्रकाश की सुदर किरण के रूप में शुरू हुआ और अगले 10 दिनों में 100 गुना तेज हो गया. यह प्रकाश 100 दिनों तक चमकता रहा और इसके बाद बुझ गया.

इस फ्लैश की वजह जानने के लिए शोधकर्ताओं ने हवाई में केके ऑब्ज़रवेटरी का रुख किया और इसके कैमिकल कंपोज़ीशन का पता लगाया. शुरु में, शोधकर्ताओं को लगा था कि उन्होंने एक नोवा देखा, लेकिन कैमिकल सिग्नेचर मैच नहीं कर रहे थे.

 

किसलय डे का कहना है कि शोधकर्ताओं ने जिन अणुओं को देखा, वे केवल उन तारों में देखे गए हैं जो बहुत ठंडे हैं. और जब कोई तारा चमकता है, तो वह आमतौर पर ज़्यादा गर्म हो जाता है. इसलिए, कम तापमान और चमकीले तारे एक साथ नहीं रहते.

NASA के NEOWISE इन्फ्रारेड स्पेस टेलीस्कोप का इस्तेमाल करके, शोधकर्ताओं को पता लगा कि - फ्लैश से निकली ऊर्जाकम थी, किसी भी पिछले तारे के मुकाबले करीब 1,000 गुना कम. तब खगोलविदों को पता लगा कि उन्होंने बृहस्पति ग्रह के समान आकार वाले किसी ग्रह के आखिरी लम्हों को उस तेज़ रौशनी के रूप में देखा था. 

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तारों के अपने आसपास के ग्रहों को निगलने के सबूत तो लंबे समय से देखे जा रहे हैं, लेकिन यह अब तक का पहला डायरेक्ट ऑब्ज़रवेशन था. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह एक अहम इंनसाइट भी देता है कि लगभग 5 अरब सालों यानी 500 करोड़ साल के बाद, पृथ्वी भी बुध और शुक्र को साथ लेकर हमारे तारे, यानी सूरज में ऐसे ही विलय हो जाएगी.

 

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