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Siberia के गड्ढों का वैज्ञानिकों ने खोला रहस्य... पाताल के अंदर से आती थी भयानक विस्फोट की आवाज

साइबेरिया में बने विशालकाय गड्ढों का रहस्य वैज्ञानिकों ने खोल दिया है. इन गड्ढों से रुक-रुककर तेज विस्फोट की आवाजें आती थीं. गड्ढे ऐसे इलाके में हैं, जो 40 हजार से ज्यादा वर्षों से जमा हुआ है. यानी पर्माफ्रॉस्ट है.

साइबेरिया में ऐसे कुल मिलाकर आठ गड्ढे बने हैं, जिनसे अक्सर विस्फोट की आवाजें आती हैं. (सभी फोटोः AFP) साइबेरिया में ऐसे कुल मिलाकर आठ गड्ढे बने हैं, जिनसे अक्सर विस्फोट की आवाजें आती हैं. (सभी फोटोः AFP)
आजतक साइंस डेस्क
  • मॉस्को,
  • 29 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 9:23 PM IST

साइबेरिया (Siberia) में करीब एक दशक पहले आठ ऐसे गहरे विशालकाय गड्ढे खोजे गए थे, जो पूरे आर्कटिक इलाके में और नहीं थे. 160 फीट गहरे इस गड्ढों से विस्फोट की भयानक आवाज आती रहती थी. करीब दस साल तक वैज्ञानिक इनसे आने वाली आवाज़ों से हैरान-परेशान थे. अब जाकर इनके रहस्य का खुलासा हुआ है. ये कैसे बने? आवाज क्यों आती थी. 

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रूस के उत्तरी यमाल (Yamal) और जिडान (Gydan) प्रायद्वीप में ये गड्ढे हैं. यह पूरा इलाका साइबेरियन पर्माफ्रॉस्ट का है. हाल ही में वैज्ञानिकों ने EarthArXiv में प्रीप्रिंट पेपर प्रकाशित किया है. जिसमें इन गड्ढों के बनने के रहस्य के खुलासे का दावा किया गया है. क्योंकि पिछले कई सालों से इन गड्ढों के बनने के अलग-अलग कारण गिनाए जाते रहे हैं. 

एक कारण गिनाया गया - ये गड्ढे यानी क्रेटर ऐतिहासिक झील का हिस्सा रहे हैं. जो अत्यधिक सर्दी की वजह से पहले जम गया और बाद में सूख गया. इसके बाद जब जमीन के अंदर से प्राकृतिक गैस (Natural Gas) के बाहर निकलने का दबाव बढ़ा तो भयानक विस्फोट के साथ बड़े-बड़े गड्ढे बनते चले गए.  

हर जगह ऐतिहासिक झील नहीं, इसलिए थ्योरी फेल हो गई

लेकिन ऐतिहासिक झील वाली थ्योरी इसलिए फेल हो गई क्योंकि जायंट एस्केप क्रेटर्स (GECs) पर यह सेट नहीं होती. क्योंकि प्रायद्वीप पर भौगोलिक स्थितियां ऐसी नहीं है. क्योंकि हर गड्ढे के ऊपर कोई ऐतिहासिक झील नहीं थी. इसके पहले भी पर्माफ्रॉस्ट में बने गड्ढों की एक वजह प्राकृतिक गैस का निकलना बताया गया है. लेकिन इससे यह पता नहीं चलता कि ये गड्ढे सिर्फ उत्तरी रूस में ही क्यों बने? 

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पर्माफ्रॉस्ट की चौड़ाई कहीं कम तो कहीं बहुत ज्यादा

इसलिए शोधकर्ताओं ने यमाल और जिडान में बने गड्ढों को लेकर अपनी रिपोर्ट में इस थ्योरी को खारिज कर दिया. क्योंकि इस प्रायद्वीप में बने पर्माफ्रॉस्ट की चौड़ाई में अंतर है. कहीं यह 1600 फीट चौड़ी है, तो कहीं कुछ सौ फीट है. ऐसा माना जाता है कि यहां कि मिट्टी 40 हजार साल से ज्यादा समय से जमी हुई है. पर्माफ्रॉस्ट बनी हुई है. 

यमाल-जीडान के पर्माफ्रॉस्ट में गैस का भारी भंडार

जमने की वजह से इस जमीन में भारी मात्रा में मीथेन गैस इकट्ठा हो गई. यानी भारी मात्रा में प्राकृतिक गैस भंडार बन गया. इस गैस भंडार की वजह से गर्मी पैदा हो रही थी. अंदर से पर्माफ्रॉस्ट पिघल रहा था. जिसकी वजह से जमीन के अंदर हवा के पॉकेट बन रहे थे. यानी खोखले हिस्से. फिर धीरे-धीरे जब तापमान बढ़ना शुरू हुआ, तब रूस के पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने का खतरा भी बढ़ता चला गया. 

बढ़ते तापमान की वजह से लगातार पिघल रहा पर्माफ्रॉस्ट

यमाल और जीडान में पर्माफ्रॉस्ट जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से ऊपर और नीचे दोनों तरफ से पिघल रहा था. जिसकी वजह से परत पतली होती जा रही थी. कमजोर पर्माफ्रॉस्ट पर जब नीचे की तरफ से गैस रिलीज होने का दबाव बना तो जो एयर पॉकेट बने थे, वो तेजी से धंस गए. ऊपर की मिट्टी जमीन में धंस गई. बड़े गड्ढे बन गए.

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और भी गड्ढे रहे होंगे... जो समय के साथ भर गए

शुरूआत छोटे गड्ढों से हुई जो बाद में और विस्फोट की वजह से बड़े होते चले गए. कुल मिलाकर इस इलाके में ऐसे आठ गड्ढे बने. विस्फोट से भारी मात्रा में बर्फ बाहर निकली. जिससे जमीन पर आसपास दरारें भी पड़ीं. वैज्ञानिकों का मानना है कि यहां और भी गड्ढे रहे होंगे, जो समय के साथ पानी और मिट्टी के बहाव की वजह से भर गए होंगे. 

एक अनुमान के अनुसार आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट में 1900 बिलियन टन ग्रीनहाउस गैस जमा है. यानी कार्बन डाईऑक्साइड और मीथेन. लगातार बढ़ता तापमान और जलवायु परिवर्तन रूस के पर्माफ्रॉस्ट के लिए खतरा बनता जा रहा है. अगर ये पिघले तो दुनिया में कई जगहों पर बड़ी प्राकृतिक आपदाएं आ सकती हैं. 

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