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वैज्ञानिकों ने बनाया ऐसा रोबोट जो खुद को पिघलाकर छोटे छेदों से निकल जाता है, फिर से शेप में आ जाता है

ये रोबोट अपना आकार बदलता है. यह किसी भी जगह से निकल सकता है. खुद को लिक्विड में बदल लेता है, उसके बाद फिर से सॉलिड फॉर्म में आ जाता है. ठीक वैसे ही जैसे हॉलीवुड फिल्म टर्मिनेटर-2 में दिखाया गया है. यह रोबोट बिना अपनी ताकत खोए आकार बदल लेता है. फिर वापस अपने पुराने रूप में आ जाता है.

ये है वो रोबोट जो सलाखों के पीछे था, खुद का आकार बदल कर यह बाहर आ गया. (फोटोः मैटर ) ये है वो रोबोट जो सलाखों के पीछे था, खुद का आकार बदल कर यह बाहर आ गया. (फोटोः मैटर )
ऋचीक मिश्रा
  • हॉन्ग-कॉन्ग सिटी,
  • 31 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 1:21 PM IST

रोबोटिक्स की दुनिया लगातार बदल रही है. अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसा रोबोट बनाया है जो अपना आकार बदलता है. वैसे तो वह सॉलिड फॉर्म में है लेकिन अगर उसके कहीं से बाहर निकलना है तो वह लिक्विड यानी तरल हो जाता है. उसके बाद फिर से अपने पुराने फॉर्मेट में आ जाता है. यह काम करने से उसकी ताकत या क्षमता में कोई कमी नहीं आती. 

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वह नरम भी हो सकता है और सख्त भी. असल में ऐसा रोबोट बनाने के लिए वैज्ञानिकों को समुद्री-खीरे (Sea Cucumber) नाम के जीव से आइडिया मिला है. इससे पहले कभी ऐसा रोबोट नहीं बना जो अपना आकार बदलकर किसी भी छोटी से छोटी जगह से निकल जाए. 

देखिए कैसे खुद को पिघलाकर यह फिर से अपने शेप में आ जाता है. 

उम्मीद जताई जा रही है कि इस रोबोट का फायदा भविष्य में इलेक्ट्रॉनिक असेंबलिंग यूनिट्स और मेडिकल एप्लीकेशन में किया जा सकता है. द चाइनीज यूनिवर्सिटी ऑफ हॉन्ग कॉन्ग के इंजीनियर चेंगफेंग पैन ने कहा कि रोबोट को लिक्विड और सॉलिड स्टेट में खुद को बदलने की ताकत देना उनकी क्षमताओं को बढ़ा देता है. 

कमजोर नहीं मजबूत है ये लचीला रोबोट

चेंगफेंग ने कहा कि ऐसे रोबोट्स का फायदा हमें भविष्य में कई तरह से मिल सकता है. ये इंसानों के साथ मिलकर कई तरह नए टूल्स बना सकते हैं. रिपेयरिंग का काम कर सकते हैं. शरीर के टारगेटेड हिस्से में दवा की डिलीवरी कर सकते हैं. क्योंकि ये नरम हैं. जबकि सख्त पदार्थ ऐसे काम नहीं कर सकते. हालांकि आमतौर पर नरम रोबोट्स को कमजोर माना जाता है, लेकिन ये रोबोट कमजोर नहीं है. सॉलिड फॉर्म में आते ही वापस से मजबूत हो जाता है. 

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जेल में डालकर भी चेक किया रोबोट को

चेंगफेंग और उनके साथी क्विंगयुआन वांग ने बताया कि इस रोबोट की लोड कैपेसिटी कम नहीं हुई है. यह अपनी शारीरिक सरंचना बदलकर खुद को किसी भी विपरीत परिस्थिति से बाहर निकाल सकता है. इसकी जांच करने के लिए उन्होंने रोबोट को एक बेहद छोटे से जेल में रखा. लेकिन ये बार-बार उस जेल की सलाखों से बाहर निकल आए. 

कैसे बनाया ये रोबोट 

वैज्ञानिकों ने इस रोबोट को बनाने के लिए गैलियम (Gallium) का इस्तेमाल किया. यह एक नरम धातु है. जो 29.76 डिग्री सेल्सियस पर पिघल जाता है. यानी इंसान के शरीर का औसत तापमान. आप गैलियम को अपने हाथ में पकड़ कर पिघला सकते हैं. वैज्ञानिकों ने गैलियम मैट्रिक्स को मैग्नेटिक पार्टिकल्स से मिला दिया. इसे नाम दिया मैग्नेटोएक्टिव सॉलिड-लिक्विड फेज ट्रांजिशनल मशीन. 

कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी के मैकेनिकल इंजीनियर कार्मेल मजीदी कहती हैं कि मैग्नेटिक पार्टिकल्स को दो काम होते हैं. पहला तो ये कि वह गैलियम मैट्रिक्स को अल्टरनेटिंग मैग्नेटिक फील्ड के लिए एक्टिव कर सके. इससे इंडक्शन पैदा होता है. पदार्थ में गर्मी पैदा होती है. वो पिघलने लगता है. दूसरा ये कि मैग्नेटिक फील्ड की वजह से गैलियम को मोबिलिटी मिलती है. इसके बाद रोबोट बनाया गया. फिर उसकी मोबिलिटी और आकार बदलने की क्षमता की जांच की गई. 

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क्या-क्या कर सकता है ये रोबोट

ये रोबोट सिर्फ आकार ही नहीं बदलता. यह छोटी-मोटी बाधाओं को पार कर सकता है. किसी बाधा के ऊपर से या जगह मिले वहां से निकल सकता है. यहां तक कि खुद को तोड़कर अलग करके फिर से वापस जुड़ सकता है. इसे खुद को फिर जोड़कर पुराने शेप में आना पता है. एक बार तरल बनने के बाद यह फिर से सॉलिड हो जाता है. यानी सख्त हो जाता है. 

पेट के अंदर से गंदगी साफ करेगा, दवा भी पहुंचाएगा

यह रोबोट पेट के अंदर मौजूद गंदगी को साफ कर सकता है. या फिर वहां तक दवा पहुंचा सकता है. जैसे कई बार छोटे बच्चे या इंसान कुछ निगल लेते हैं, तो वह सर्जरी करके निकालना पड़ता है. लेकिन इस रोबोट को कैप्सूल के आकार में पेट के अंदर पहुंचा दीजिए. उसके बाद यह पेट के अंदर फंसी चीज के चारों तरफ उसे घेर कर बाहर निकाल ले जाता है.  

इलेक्ट्रिक सर्किट सुधार सकता है

यह रोबोट उड़ी हुई सर्किट की जगह पहुंच कर उसे रिपेयर कर सकता है. यह खुद ही कंडक्टर या सोल्डर बनकर टूटी हुई सर्किट को जोड़ सकता है. बिना स्क्रू के किसी जगह को भरकर उसे पैक कर सकता है. टूटी हुई जगहों को जोड़ सकता है. जहां तक इंसानी शरीर में इसे लेकर जाने की बात है, वहां पर थोड़ा बदलाव करना पड़ेगा. क्योंकि गैलियम का मेल्टिंग प्वाइंट इंसानी शरीर के तापमान से कम होता है. ऐसे में वह सॉलिड फॉर्म में नहीं आ पाएगा. 

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कार्मेल कहती हैं कि इसलिए बायोमेडिकल मकसदों के लिए हमें इसके तापमान को नियंत्रित करना होगा. ताकि यह शरीर के अंदर जाकर दवा पहुंचा सके. यह स्टडी हाल ही मैटर जर्नल में प्रकाशित हुई है. 

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