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श्रद्धा के कातिल आफताब का होना है पॉलीग्राफी और नार्को टेस्ट, जानिए दोनों में क्या है अंतर?

श्रद्धा मर्डर केस में आरोपी आफताब का पॉलीग्राफ टेस्ट होने वाला है. इसके बाद नार्को टेस्ट भी होगा. दोनों ही टेस्ट में पुलिसवाले आफताब से केस से संबंधित सवाल पूछेंगे. वह कई राज खोल सकता है. लेकिन दोनों टेस्ट में अंतर क्या है? अगर एक टेस्ट से भी वही बात पता चलनी है, तो दूसरे टेस्ट की क्या जरुरत है?

आफताब पूनावाला का पहले पॉलीग्राफ टेस्ट होगा. इसके बाद नार्को एनालिसिस टेस्ट. आफताब पूनावाला का पहले पॉलीग्राफ टेस्ट होगा. इसके बाद नार्को एनालिसिस टेस्ट.
ऋचीक मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 21 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 11:22 PM IST

श्रद्धा वॉल्कर मर्डर केस में आफताब पूनावाला आरोपी है. दिल्ली पुलिस को आफताब के पॉलीग्राफ टेस्ट (Polygraph) टेस्ट की अनुमति मिल चुकी है. आफताब का नार्को एनालिसिस टेस्ट (Narco Analysis Test) भी होगा. दोनों ही टेस्ट में पुलिसवाले आफताब से सच उगलवाएंगे. एक में फिजिकली दूसरे में उसे नशे यानी अर्धचेतना में करके. या यूं कह ले आधा बेहोश करके. दोनों ही टेस्ट में अंतर क्या है? 

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पॉलीग्राफ हो या नार्को एनालिसिस टेस्ट दोनों ही करवाने के लिए भारत में अदालत से अनुमति लेनी होती है. मामले की गंभीरता को देखते हुए एक या दोनों ही टेस्ट कराए जाते हैं. पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान आफताब से सवालों के जवाब पूछे जाएंगे. ब्लड प्रेशर, हार्ट रेट, पल्स रेट और शरीर पर निकलने वाले पसीने या हाथ-पैर के मूवमेंट से पता किया जाएगा कि वो सच बोल रहा है या नहीं. लेकिन इस टेस्ट से किसी बात के पुख्ता होने की संभावना नहीं होती. क्योंकि इस टेस्ट के बाद आफताब ने जो भी कहा, उसकी जांच पुलिस को फिजिकली मौके पर जाकर करनी होगी. 

नार्को टेस्ट में इंसान के शरीर में सोडियम पेंटोथाल (Sodium Pentothal) नाम का ड्रग एक सीमित मात्रा में डॉक्टरों की देखरेख में डाला जाता है. इसे ट्रुथ सीरम (Truth Serum) भी कहते हैं. ये दवा शरीर में जाते ही इंसान को अर्ध-चेतना यानी आधी बेहोशी में ले आता है. वह सही गलत का फैसला नहीं कर पाता. वह सिर्फ वहीं बात बोलता है, जो उसे सच लगता है. या उसकी याद्दाश्त में सच के रूप में बैठा है. इस ड्रग का इस्तेमाल कई बार सर्जरी के दौरान एनेस्थेसिया के तौर मरीज को बेहोश करने के लिए किया जाता है. ताकि उसे दर्द न हो. 

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इस तरह से किया जाता है पॉलीग्राफ टेस्ट

पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान मशीन के चार या छह प्वाइंट्स को इंसान के सीने, उंगलियों से जोड़ दिया जाता है. फिर उससे पहले कुछ सामान्य सवाल पूछे जाते हैं. इसके बाद उससे अपराध से संबंधित सवाल पूछे जाते हैं. इस दौरान मशीन के स्क्रीन पर इंसान की हार्ट रेट, ब्लड प्रेशर, नाड़ी आदि पर नजर रखी जाती है. टेस्ट से पहले भी इंसान का मेडिकल टेस्ट किया जाता है. तब उसके सामान्य हार्ट रेट, ब्लड प्रेशर, नाड़ी दर आदि को नोट कर लिया जाता है. 

जब टेस्ट शुरू होता है, सवाल पूछे जाने लगते हैं. तब जवाब देने वाला अगर झूठ बोलता है, उस समय उसका हार्ट रेट, ब्लड प्रेशर, नाड़ी दर घटता या बढ़ता है. माथे पर या हथेलियों पर पसीना आने लगता है. इससे पता चलता है कि इंसान झूठ बोल रहा है. हर सवाल के समय इन सिग्नलों को रिकॉर्ड किया जाता है. अगर इंसान सच बोल रहा होता है, तब उसकी ये सभी शारीरिक गतिविधियां सामान्य रहती हैं. 

ऐसे किया जाता है नार्को एनालिसिस टेस्ट?

नार्को टेस्ट जरूरी नहीं है कि 100 फीसदी सही हो. क्योंकि नशे की हालत में इंसान कई बार उलटे-सीधे जवाब भी देता है. कई बार कहानियां गढ़ने लगता है. इस हालात में अगर सवाल पूछने वाला सही तरीके से सवाल पूछे तो मरीज सही जवाब भी दे सकता है. क्योंकि यह सवाल पूछने का सॉफ्ट तरीका है. कुछ लोग इसे थर्ड डिग्री का नरम तरीका भी कहते हैं. इस टेस्ट के दौरान साइकोलॉजिस्ट को बिठाया जाता है. कोशिश होती है कि सवाल भी वही पूछे. ताकि सही जवाब मिल सके. साइकोलॉजिस्ट के साथ जांच अधिकारी या फोरेंसिक एक्सपर्ट बैठते हैं. 

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नार्को टेस्ट से पहले क्या होता है?

नार्को टेस्ट से पहले इंसान का साधारण मेडिकल जांच होता है. ताकि उसकी शारीरिक स्थिति जांची जा सके. इसके बाद उसकी उम्र, लिंग और अन्य मेडिकल कंडिशंस के आधार पर उसे सोडियम पेंटोथाल की डोज दी जाती है. डोज ज्यादा होने पर बुरी स्थिति बन सकती है, इसलिए यह टेस्ट एक्सपर्ट की निगरानी में होता है.

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