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कहां से आ रहा है दुनिया के सबसे सक्रिय ज्वालामुखी का गर्म लावा, सोर्स को लेकर वैज्ञानिक परेशान

दुनिया का सबसे सक्रिय ज्वालामुखी 'किलुआ' कैसे बना होगा, यह जानने के लिए एक शोध किया गया. शोध से पता चलता है कि असल मैग्मा हॉटस्पॉट से 90 किलोमीटर से भी ज्यादा गहराई में है.

किलोवियो ज्‍वालामुखी दुनिया का सबसे सक्रिय ज्वालामुखी है (Photo: Getty) किलोवियो ज्‍वालामुखी दुनिया का सबसे सक्रिय ज्वालामुखी है (Photo: Getty)
aajtak.in
  • होनोलूलू,
  • 02 जून 2022,
  • अपडेटेड 7:41 AM IST
  • असल मैग्मा हॉटस्पॉट से 90 किलोमीटर गहराई में
  • किलुआ ज्वालामुखी पाइरोक्लास्टिक सामग्री के पूल से बना है

हवाई (Hawaii) में, 'किलुआ ज्‍वालामुखी' (Kilauea Volcano) को दुनिया का सबसे सक्रिय ज्वालामुखी कहा जाता है. फिर भी हम यह नहीं जानते कि यह ज्वालामुखी बना कैसे. 

एक नए शोध से पता चलता है कि असल मैग्मा (Original Magma) हॉटस्पॉट से 90 किलोमीटर से भी ज्यादा गहराई में है. पहले के शोधों में किलुआ के नीचे मैग्मा के दो छिछले चैंबर्स का पता लगा था. 2014 में सीस्मिक वेव्स (Seismic waves) का इस्तेमाल करके करीब 11 किलोमीटर गहरे (जो 6.8 मील) बड़े चैंबर का पता लगाया था. अब ऐसा लगता है कि असल मैग्मा चैंबर और भी गहरा है.

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किलुआ ज्वालामुखी का मुख्य पाइरोक्लास्टिक पूल 100 किलोमीटर गहरा हो सकता है. (Photo: Getty)

बिग आइलैंड (Big Island) के दक्षिण-पूर्वी हिस्से से निकाली गई ज्वालामुखी की प्राचीन चट्टान के टुकड़ों का नया विश्लेषण बताता है कि किलुआ ज्वालामुखी का जन्म 100 किलोमीटर गहरे पाइरोक्लास्टिक सामग्री (Pyroclastic material) के एक पूल से हुआ था.

नेचर कम्युनिकेशंस (Nature Communications) में प्रकाशित शोध के मुताबिक, 210,000 और 280,000 साल पहले, पैसिफिक टेक्टोनिक प्लेट शिफ्ट हो गई और मैग्मा का एक हिस्सा ऊपर की तरफ समुद्र में चला गया. जैसे ही ये गर्म तरल ठंडा हुआ और जमा, इसने एक बड़ी 'शील्ड' बनाई जो करीब 100,000 साल पहले लहरों की वजह से फट गई.

ऐसा लगता है कि ये ज्वालामुखी ठोस पत्थरों से ही बना है, जो अब पिघलना शुरु हुए हैं. (Photo: Getty)

इस हॉटस्पॉट से निकली मूल चट्टानें खोजना काफी कठिन है, क्योंकि वे नए लावा की कई परतों के नीचे हैं. पहले माना गया था कि किलुआ ज्वालामुखी ठोस चट्टान से बनाया गया था, जो आंशिक रूप से हॉटस्पॉट की गर्मी से पिघल रहा था.

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हालांकि, नए शोध से इस बात को बल नहीं मिला. आंशिक रूप से पिघलने के बजाय, ऐसा लगता है कि किलुआ ज्वालामुखी मूल रूप से फ्रैक्शनल क्रिस्टलाइजेशन (Fractional crystallization) से बना था.

अभी तक इस ज्वालामुखी के असली स्रोत का पता नहीं चल पाया है. (Photo: Getty)

शोध की मुख्य लेखक और ऑस्ट्रेलिया में मोनाश यूनिवर्सिटी (Monash University) की भूविज्ञानी लौरा मिलर (Laura Miller) का कहना है कि हमने एक्पेरिमेंट के जरिए इन सैंपल के फॉर्मेशन का पता लगाया. इसमें उच्च तापमान और दबाव पर सिंथेटिक चट्टानों का पिघलाना शामिल है. हमें पता लगा है कि सैंपल केवल गार्नेट के क्रिस्टलाइजेशन और हटाए जाने से बने हो सकते हैं.

गार्नेट एक क्रिस्टल है जो तब बन सकता है जब मैग्मा पृथ्वी के क्रस्ट के नीचे 90 किलोमीटर से अधिक उच्च दबाव और तापमान पर हो. एक्सपेरिमेंट से पता चलता है कि गार्नेट को पृथ्वी के क्रस्ट के नीचे 150 किलोमीटर की गहराई तक क्रिस्टलाइज़ किया जा सकता है.

 

माउंट वेसुवियस (Mount Vesuvius) जैसे अन्य ज्वालामुखी भी क्रिस्टल फॉर्मेशन दिखाते हैं. किलुआ का असल मैग्मा चैंबर सबसे ज्यादा गहरा दिखाई पड़ता है. ऐसा क्यों है यह अब भी रहस्य बना हुआ है.

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