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Stone Man Disease: ऐसी दुर्लभ बीमारी जो शरीर में बना देती है दूसरा कंकाल

स्टोन मैन डिजीस... यह 10 लाख में किसी एक को होने वाली बेहद दुर्लभ बीमारी है. लेकिन अगर ये हो गई तो शरीर में दूसरा कंकाल बनने लगता है. जिसका इलाज अभी खोजा जा रहा है. लक्षण बचपन से ही दिखने लगते हैं. आइए जानते हैं इस खतरनाक बीमारी के बारे में...

ये उन मरीजों की तस्वीर है, जिन्हें स्टोन मैन डिजीस हुई है. (फोटोः किटरमैन जे/जे न्यूरॉल) ये उन मरीजों की तस्वीर है, जिन्हें स्टोन मैन डिजीस हुई है. (फोटोः किटरमैन जे/जे न्यूरॉल)
आजतक साइंस डेस्क
  • नई दिल्ली,
  • 29 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 12:30 PM IST

फाइब्रोडिस्प्लेसिया ओसिफिकेंस प्रोग्रेसिवा (FOP) जितना कठिन नाम, उतनी ही दुर्लभ बीमारी. आम भाषा में इसे स्टोन मैन डिजीस (Stone Man Disease) कहते हैं. यह बहुत ही कम लोगों को होती है. लेकिन जिसे होती है उसकी जिंदगी खराब हो जाती है. क्योंकि शरीर में दूसरा कंकाल निकल आता है. इंसान पत्थर सा बन जाता है. 

इसका एक नाम और है- मंचमेयर डिजीस (Munchmeyer Disease). यह बीमारी इतनी दुर्लभ है कि ये 10 लाख लोगों से किसी एक को होती है. यह किसी निश्चित भौगोलिक इलाके में नहीं होती. यह किसी को भी हो सकती है. उससे फर्क नहीं पड़ता कि वह आदमी है या औरत. वो किसी भी नस्ल का इंसान हो सकता है. 

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यह बीमारी ACVR1 जीन में होने वाले म्यूटेशन की वजह से होती है. यह जीन ही हड्डियों के निर्माण और विकास के लिए जिम्मेदार होता है. जब भ्रूण में बच्चा विकसित हो रहा होता है, तब यह जीन महत्वपूर्ण काम करता है. कंकाल का विकास करता है. फिर जीवनभर आपकी हड्डियों का ख्याल रखता है. उनकी रिपेयरिंग और मेंटेनेंस करता है.

जरूरी नहीं कि खानदान में किसी को बीमारी हुई हो 

अगर ACVR1 जीन में म्यूटेशन हो जाए तो यह शरीर में दूसरा कंकाल बनाने लगता है. आमतौर पर यह बीमारी उन लोगों में होती है, जिनकी कोई फैमिली हिस्ट्री नहीं होती. यह अत्यधिक दुर्लभ बीमारी है. म्यूटेशन वाली जीन की एक कॉपी ही काफी है इस बीमारी को पैदा करने के लिए. 

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क्या होते हैं इस बीमारी के लक्षण?

जब भी किसी को स्टोन मैन डिजीस होती है, तब उसके शरीर में मांसपेशियों और उन्हें जोड़ने वाले टिश्यू की जगह हड्डियों वाले टिश्यू लेने गते हैं. इसकी वजह से दूसरा कंकाल बनने लगता है. जो इंसान के शारीरिक मूवमेंट को रोक देते हैं. पहला लक्षण होता है ऊंचाई कम होना. दूसरा होता है जन्म के समय बड़ी एड़ियां. 50 फीसदी मरीजों के अंगूठे विचित्र आकृति के हो जाते हैं. 

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लक्षण बचपन से ही दिखने लगते हैं

यह बीमारी बचपन से या पैदा होते ही दिखने लगती है. इसका असर गले, पीठ, छाती, बांह और पैरों पर दिखता है. मरीज को बीच-बीच में जलने वाला दर्द महसूस हो सकता है. अकड़न महसूस हो सकती है. बुखार आ सकता है, जैसे फ्लू में आता है. 30 साल की उम्र तक इस बीमारी से जूझने वाला व्यक्ति हिल भी नहीं पाता. 

सांस न ले पाने से हो जाती है मौत

इस बीमारी से जूझने वाले लोग अधिकतम 56 साल तक ही जी पाते हैं. इनकी मौत आमतौर पर कार्डियोरेस्पिरेटरी फेल्योर की वजह से होती है क्योंकि हड्डियों के बढ़ने की वजह से इन्हें सांस लेने में दिक्कत होती है. कोई खास इलाज है नहीं. सिवाय दर्द और एंटी-इंफ्लामेट्री दवाओं के. कुछ दवाएं अमेरिका में मौजूद हैं. जैसे- Palovarotene. इससे 54 फीसदी ही आराम मिलता है. पूरा नहीं. 

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