
भारत लगातार जल रहा है. खासतौर से वो हरे-भरे इलाके जो हमें ऑक्सीजन देते हैं. पिछले 12 दिनों में देश के जंगलों में 42,799 बार आग लगी. अभी तो गर्मी आई भी नहीं है लेकिन जंगल जल रहे हैं. पिछले साल इसी समय की तुलना में इस बार जंगलों में 19,929 बार ज्यादा आग लगी है. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) के मुताबिक 23 राज्यों के जंगलों में इस समय आग लगी है.
ये आंकड़े डराने वाले हैं. ये 2019-2020 में ऑस्ट्रेलिया में लगी 'महाआग' की याद दिलाते हैं. 1 मार्च से 12 मार्च तक जंगलों की आग में 115 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. वजह है फरवरी में बारिश का नहीं होना. तापमान का सामान्य से ज्यादा होना. इस साल पूरे देश में फरवरी का महीना सूखा गया. सिर्फ 7.2 मिलिमीटर बारिश हुई.
मौसम विभाग के अनुसार साल 1901 के बाद छठा सबसे कम बारिश वाला महीना था फरवरी. मध्य भारत में फरवरी महीने में बारिश की 99 फीसदी कमी महसूस की गई. उत्तर-पश्चिम में 76 फीसदी, दक्षिणी प्रायद्वीप में 54 फीसदी, पूर्व और उत्तर-पूर्व में 35 फीसदी कम बारिश हुई. फरवरी का औसत उच्चतम तापमान 29.66 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड हुआ.
फरवरी की गर्मी, बारिश का न होना... मुसीबत की शुरुआत
मार्च के शुरुआती 13 दिनों में पूरे देश में बारिश में 77 फीसदी कमी दर्ज की गई है. जो फरवरी में ज्यादा थी. अगर सिर्फ सोमवार यानी 13 मार्च 2023 की बात करें तो पूरे देश में जंगल की 772 बड़ी आग लगी है. FSI के मुताबिक पतझड़ के मौसम में इस बार हर बार की तुलना में ज्यादा तापमान है. इससे पहले फरवरी में बारिश भी नहीं हुई. सूखी हुई जमीन और गर्मी की वजह से जंगल में आग लगने की आशंका बढ़ जाती है.
कहां कितनी आग लगी है
FSI के मुताबिक सबसे ज्यादा आग ओडिशा में 202 जगहों पर आग लगी है.
मिजोरम में 110
छत्तीसगढ़ में 61
मेघालय में 59
मणिपुर में 52
आंध्र प्रदेश में 48
असम में 43
तेलंगाना में 33
मध्यप्रदेश-महाराष्ट्र में 27-27
नगालैंड-झारखंड में 23-23
कर्नाटक में 20
अरुणाचल प्रदेश में 13
प.बंगाल-तमिलनाडु में 8-8
केरल में 6
बिहार में 4
त्रिपुरा-उत्तराखंड-उत्तर प्रदेश-गुजरात-सिक्किम में एक-एक
17-18 को आने वाली बारिश से थोड़ी राहत की उम्मीद
मौसम विभाग के अनुसार पश्चिमी विक्षोभ की वजह से 17 और 18 मार्च को बारिश हो सकती है. इससे दिल्ली समेत उत्तर भारतीय इलाके में थोड़ी राहत मिल सकती है. लेकिन पश्चिमी तट की तरफ संभावना कम है. पिछले कुछ दिनों में गुजरात, कोंकण, गोवा में अधिकतम तापमान 38 से 39 डिग्री सेल्सियस रहा है.
राजस्थान, रायलसीमा, तटीय कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल के गंगा के मैदान, तेलंगाना, केरल, झारखंड और विदर्भ में पारा 35 से 37 के बीच था. 32 से 35 के बीच तापमान उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली राजधानी क्षेत्र में रिकॉर्ड किया गया. जम्मू डिविजन में पारा औसत से 6-8 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था.
122 साल बाद फरवरी का महीना सबसे गर्म था
साल 1901 के बाद इस साल फरवरी का महीना सबसे गर्म था. साल 2021 के जुलाई महीने में The Lancet जर्नल में एक रिपोर्ट छपी थी. जिसमें साल 2000 से 2019 तक का गर्मी और मौसम बदलने का डेटा था. अधिक तापमान की वजह से पूरी दुनिया में हर साल 50 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है. ये बेहद खतरनाक स्थिति है.
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (CSTEP) ने भारत के तापमान की स्टडी की थी. इसमें बताया गया था कि पिछले तीस साल यानी 1990 से 2019 तक गर्मियों में अधिकतम तापमान के औसत में 0.9 डिग्री सेल्सियस और सर्दियों में 0.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इनका असर देश के कई राज्यों में पड़ा है.
50 सालों में पड़ने वाली गर्मी अब 10 सालों में आ रही
सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, बिहार, पंजाब, राजस्थान, गुजरात और उत्तर-पूर्वी राज्य शामिल हैं. आमतौर पर एक्सट्रीम हीटवेव यानी अत्यधिक गर्मी की स्थिति हर 50 साल में बनती है. लेकिन लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से अब ये हर दस साल में हो रही है. ऐसा इंसानी हरकतों की वजह से है.
CSTEP के अनुसार 2021 से 2050 के बीच गर्मियों का औसत अधिकतम तापमान 2 से 3.5 डिग्री सेल्सियस के बीच होगा. इसका असर देश के 100 से ज्यादा जिलों पर पड़ेगा. 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तापमान 455 जिलों में बढ़ेगा. सर्दियों का औसत अधिकतम तापमान 0.5 से 3.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ेगा. देश के 485 जिलों को अच्छी से अच्छी स्थिति में भी औसत अधिकतम तापमान में 1 से 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी बर्दाश्त करनी होगी.
तापमान बढ़ने से देश पर क्या असर पड़ेगा?
गर्मी हो या सर्दी अगर औसत अधिकतम तापमान में बढ़ोतरी होती है, तो खेतों, फसलों, पौधों के विकास, इकोलॉजिकल सिस्टम और कार्बन इकोनॉमी पर भारी नुकसान होगा. दिन और रात में होने वाले तापमान में भारी बदलाव की वजह से मिट्टी की उर्वरता कम होती चली जाएगी. गर्मी बढ़ने से सिर्फ यही नुकसान नहीं होगा. आगे और खतरा है.
2030 तक हीट स्ट्रेस से 5.8% कम हो जाएगा वर्किंग ऑवर
2019 में आई इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2030 तक हीट स्ट्रेस की वजह से भारत में वर्किंग ऑवर (काम करने के घंटे) में 5.8 फीसदी की कमी आएगी. कृषि और निर्माण क्षेत्र के वर्किंग ऑवर में 9.04% की कमी आएगी. इतना ही नहीं सदी के अंत तक गर्मी की वजह से होने वाली मौतों के आंकड़े में तेजी से इजाफा होगा.
करना क्या चाहिए कि गर्मी कम हो और असर भी
- बेहतर अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगाया जाए.
- लोगों में तेजी से जागरुकता फैलाई जाए.
- हीट एक्शन प्लान बनाकर लागू करें.
- इमरजेंसी कूलिंग सेंटर बनाए जाएं. जैसे टोरंटो और पेरिस में हैं.
- सर्वाइवल गाइड्स तैनात हों, जैसे एथेंस में हैं.
- छतें सफेद ही रंग की हों, जैसे लॉस एंजेल्स में हैं.
- सेल्फ शेडिंग टॉवर ब्लॉक्स, जैसे अबु धाबी में हैं.
- मेडेलिन की तरह ग्रीन कॉरिडोर बनाए जाएं.
- जिलेवार हीट हॉटस्पॉट मैप सबसे पहले बनाए जाएं.