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गुस्से में पीला, डर में लाल और डिप्रेशन में ब्लू... आपकी फीलिंग के साथ बदलता है शरीर का रंग और तापमान

गुस्से में चेहरा लाल हो जाता है. शर्म से गुलाबी. डर से नीला पड़ने लगता है. ऐसा होता क्यों है? वैज्ञानिकों ने स्टडी की. अलग-अलग भावनाएं शरीर के तापमान और रंगत को बदल देती हैं. अलग-अलग देश, राज्य, भौगोलिक स्थितियों में यह अलग-अलग होता है. जरूरी नहीं कि भारत में कोई गुस्से में लाल हो तो वैसा ही साइबेरिया में हो.

हर भावना के साथ बदल जाता है आपके शरीर का रंग और तापमान. (फोटोः PNAS) हर भावना के साथ बदल जाता है आपके शरीर का रंग और तापमान. (फोटोः PNAS)
ऋचीक मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 28 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 2:05 PM IST

इमोशन यानी भावना. ये आपके व्यवहार और मानसिक स्थिति को नियंत्रित करती हैं. सिर्फ इतना ही नहीं आपके शरीर के तापमान और रंग को भी कंट्रोल करती हैं. हर भावना कुछ कहती है. अपना अलग रंग दिखाती है. हम लोग अक्सर कहते हैं कि गुस्से में लाल हो गई. शर्म से गुलाबी या लाल हो गई. डर से पीले या नीले पड़ गए हो. 

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शरीर में भावनाओं की वजह से आने वाले बदलाव देश, शहर, मौसम, पर्यावरण के हिसाब से बदलते हैं. जरूरी नहीं कि भारत में गुस्से में कोई लाल हो तो वहीं सिचुएशन आर्कटिक में रहने वाले किसी इंसान के साथ हो. लेकिन भावनाओं की वजह से होने वाले शारीरिक बदलावों और सेंसेशन पूरी दुनिया में लगभग एक जैसे होते हैं. 

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वैज्ञानिकों ने हाल ही ऐसी ही एक स्टडी की. यह स्टडी इसलिए जरूरी है कि भविष्य में इन्हीं रंगों और तापमानों के आधार पर भावनाओं से संबंधित मानसिक बीमारियों को ठीक किया जा सकेगा. यह स्टडी हाल ही में PNAS जर्नल में प्रकाशित हुई है. इसके लिए पांच तरह के एक्सपेरिमेंट किए गए. इसमें 701 लोगों ने भाग लिया. 

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अलग भावना पर अलग शारीरिक बदलाव

इन सभी लोगों को अलग-अलग बैच में बांटकर उन्हें कुछ शब्द सुनाए गए. कहानियां सुनाई गईं. फिल्म दिखाई गई. चेहरे के एक्सप्रेशन दिखाए गए. फिर उनसे पूछा गया कि जब आप ये देख रहे थे तब आपके शरीर के किस हिस्से में किस तरह का सेंसेशन हो रहा था. सभी पार्टिसिपेंट्स ने बताया कि उन्होंने शरीर में क्या बदलाव महसूस किया. 

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जिन लोगों पर एक्सपेरिमेंट किया गया वो यूरोप और एशिया के थे. कैसे भावनाएं शरीर के नक्शे को बदलती हैं... 

जब आप अपने किसी प्रिय, प्रेमी या प्रेमिका से मिलने जाते हैं, तब आप की चाल बड़ी हल्की होती है. दिल एक्साइटमेंट में तेजी से धड़कता है. जबकि एनजाइटी यानी बेचैनी या व्यग्रता में आपकी मांसपेशियां खिंच जाती हैं. हाथों से पसीने आने लगते हैं. ऐसा ज्यादातर नौकरी के लिए होने वाले इंटरव्यू के दौरान होता है. 

शरीर के हर हिस्से और तंत्र को एक्टिव करती हैं भावनाएं

हर भावना आपके कार्डियोवस्कुलर और स्केलेटोमस्कूलर यानी दिल, फेफड़े, मांसपेशियों और हड्डियों पर जोर डालती हैं. इसके अलावा न्यूरोएंडोक्राइन और ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम पर असर डालती हैं. इसी की वजह से शरीर और भावनाओं के बीच तालमेल होता है. 

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दिल टूटता नहीं कांच की तरह... अपना काम करता है

तभी तो अगले हफ्ते किसी लड़की की शादी हो रही हो, तो वह यह सोच-सोचकर अपने पैर ठंडे कर लेती हैं. प्यार में धोखा खाए हुए लोगों को दिल क्यों टूट जाता है. ये भावना ही है. दिल थोड़े ही शरीर के अंदर कांच की तरह टूटता है. वो अपना काम लगातार करता रहता है. पूरे शरीर में खून की सप्लाई करता है, बस गति सामान्य से धीमी ये तेज हो जाती है.

या फिर अपना फेवरेट गाना सुनने के बाद डांस करने का या शांति से सुनने का मन क्यों होता है. हर भावना में आपके शरीर का तापमान और रंग बदल जाता है. चाहे वह गुस्सा हो, डर हो या खुशी ही क्यों न हो. लेकिन वैज्ञानिक अभी तक यह नहीं समझ पाए हैं कि भौगोलिक बदलाव होने पर इनमें बदलाव कैसे आ जाता है. इसकी स्टडी हो रही है. 

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