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नेपाल में आपदा... पहली बार एवरेस्ट फतह करने वाले तेनजिंग नोर्गे के गांव में एवरेस्ट से ही आई प्रलय

एवरेस्ट के नीचे बसे थमे गांव में भयानक आपदा आई है. एकदम केरल के वायनाड जैसी. बस यहां पर ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड की वजह से पूरा गांव कीचड़ और मलबे में दब गया है. सुंदर हरा-भरा गांव इस समय गंदे भूरे पीले रंग के मलबे में दबा हुआ है. थमे गांव के आधे से ज्यादा मकान कीचड़ में दब गए हैं. तबाह हो गए हैं.

बाएं से ... आपदा से पहले का थमे शेरपा गांव और हादसे के बाद की स्थिति. बाएं से ... आपदा से पहले का थमे शेरपा गांव और हादसे के बाद की स्थिति.
आजतक साइंस डेस्क
  • नई दिल्ली,
  • 16 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 7:20 PM IST

नेपाल के प्रसिद्ध शेरपा गांव थमे में भयानक आपदा आई है. जैसी केरल के वायनाड में आई थी. यहां पर एवरेस्ट पहाड़ की तरफ अचानक से फ्लैश फ्लड आया. माना जा रहा है कि ये किसी ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) की वजह से हुआ है. थमे एवरेस्ट पर सबसे पहले चढ़ने वाले शेरपा तेनजिंग नोर्गे का गांव है. 

इस गांव के आधे से ज्यादा घर कीचड़ में दब गए हैं. पानी का तेज बहाव है. सोशल मीडिया पर जो वीडियो आ रहे हैं, वो बेहद भयानक और डरावने हैं. तीन घर और होटल बर्बाद हो चुके हैं. पांच छह इमारतें और खतरे में हैं. सोलुखुंभू के डीएसएपी द्वारिका प्रसाद घिमिरे ने कहा है कि राहत एवं बचाव कार्य किया जा रहा है. 

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यह आपदा थमे नदी के बहाव के बढ़ने से हुआ है. नदी का बहाव GLOF की वजह से बढ़ा है. इसकी वजह थमे नदी की दूसरी शाखा दूधकोशी नदी में भी बाढ़ आ गई है. प्रशासन ने लोगों को निचले इलाकों से भागकर ऊपर की ओर जाने के लिए कहा है. हिमालयन टाइम्स अखबार के मुताबिक थेंगबो ग्लेशियर पर आउटबर्स्ट हुआ है. 

एवरेस्ट के नीचे थेंगबो ग्लेशियर से आई आपदा

थेंगबो ग्लेशियर पर कोई झील बनी थी, जिसके टूटने से थमे गांव में ये आपदा आई है. जिसकी वजह से भयानक बाढ़ आई. भूस्खलन हुआ. थमे गांव का आधा हिस्सा पूरी तरह से बर्बाद हो गया है. ये थेंगबो झील ताशी लापचा पास के नजदीक है. इसी गांव में विश्व प्रसिद्ध माउंटेनियर शेरपा तेनजिंग नॉर्गे पैदा हुए थे. 

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पहले ऐसा दिखता था थमे शेरपा गांव, अब चारों तरफ बर्बादी ही बर्बादी है. (फोटोः गेटी)

लगातार कई घंटों से हो रही थी तेज बारिश

तेनजिंग ने एडमंड हिलेरी के साथ मई 1953 में एवरेस्ट पर पहली बार फतह हासिल की थी. हालांकि काठमांडू पोस्ट ने चीफ डिस्ट्रिक्ट ऑफिसर देवी पांडे ने कहा कि अभी झील के टूटने की पुष्टि नहीं हुई है. एक बात सही है कि इस इलाके में लगातार बारिश हो रही है. हो सकता है कि इसकी वजह से फ्लैश फ्लड आया हो. 

कई बहादुर शेरपा इसी गांव से निकले हैं

थमे गांव खुंभू घाटी में 12,500 फीट की ऊंचाई पर मौजूद है. यह नामचे बाजार के पास है. यहीं से एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाले अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव की शुरूआत करते हैं. इस गांव से कई प्रसिद्ध शेरपा निकले हैं, जिन्होंने एवरेस्ट पर फतह की है. जैसे- अपा शेरपा, कमी रिता शेरपा, लाकपा रिता शेरपा. 

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निचले इलाकों को किया गया अलर्ट

निचले इलाके में दूधकोशी नदी के पास मौजूद रिहायशी इलाकों को अलर्ट कर दिया गया है. ताकि वहां किसी को नुकसान न हो. GLOF का मतलब ये होता है कि ग्लेशियर के पिघलने से बनी अस्थाई बर्फ और पानी की झील. जिसकी दीवार मिट्टी या बर्फ की हो सकती है. गर्मी से बर्फ की दीवार पिघलती है. या तेज बारिश से मिट्टी की दीवार टूट जाती है. इससे झील में जमा पानी तेजी से निचले इलाके की तरफ जाता है. 

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हिमालय पर कम हो रहे हैं ठंडी वाले दिन

लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान की वजह से हिमालय पर  Cold Days कैसे घटते जा रहे हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि हिमालय का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है. कोल्ड डेज़ और कोल्ड नाइट्स की गणना के लिए जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में 16 स्टेशन हैं. लगातार गर्म दिन बढ़ रहे हैं. जबकि ठंडे दिन कम होते जा रहे हैं. पिछले 30 वर्षों में ठंडे दिनों में 2% से 6% की कमी आई है. 

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हिमालय के इलाके काफी अनस्टेबल

किसी भी ग्लेशियर के पिघलने के पीछे कई वजहें हो सकती है. जैसे- जलवायु परिवर्तन, कम बर्फबारी, बढ़ता तापमान, लगातार बारिश आदि. गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने का हिस्सा काफी ज्यादा अनस्टेबल है. ग्लेशियर किसी न किसी छोर से तो पिघलेगा ही. अगर लगातार बारिश होती है तो ग्लेशियर पिघलता है. डाउनस्ट्रीम में पानी का बहाव तेज हो गया था. बारिश में हिमालयी इलाकों की स्टेबिलिटी कम रहती है. ग्लेशियर पिघलने की दर बढ़ जाती है. 

भारत के दो दर्जन ग्लेशियरों पर वैज्ञानिकों की नजर

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फिलहाल दो दर्जन ग्लेशियरों पर वैज्ञानिक नजर रख पा रहे हैं. इनमें गंगोत्री, चोराबारी, दुनागिरी, डोकरियानी और पिंडारी मुख्य है. यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के वैज्ञानिकों ने हिमालय के 14,798 ग्लेशियरों की स्टडी की. उन्होंने बताया कि छोटे हिमयुग यानी 400 से 700 साल पहले हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की दर बहुत कम थी. पिछले कुछ दशकों में ये 10 गुना ज्यादा गति से पिघले हैं.  

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हिमालय गर्मी में पिघल रहा है तेजी से

स्टडी में बताया गया है कि हिमालय के इन ग्लेशियरों ने अपना 40% हिस्सा खो दिया है. ये 28 हजार वर्ग KM से घटकर 19,600 वर्ग KM पर आ गए हैं. इस दौरान इन ग्लेशियरों ने 390 क्यूबिक KM से 590 क्यूबिक KM बर्फ खोया है. इनके पिघलने से जो पानी निकला, उससे समुद्री जलस्तर में 0.92 से 1.38 मिलीमीटर की बढ़ोतरी हुई है. 

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