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जो चांद आज ग्रहण के साये में है, वहां कभी फटते थे हजारों ज्वालामुखी

आज पूर्ण चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse) है. पर क्या आप जानते हैं कि जो चांद आज ग्रहण के साये में है उस चांद पर करोड़ों साल पहले हजारों ज्वालामुखी फटते थे. हाल ही में चीन ने चांद की चट्टानों पर शोध किया है, जिसमें पहले किए गए शोधों के नतीजों से कुछ अलग बातें निकलकर सामने आई हैं.

जितना सोचा गया उससे 100 करोड़ साल बाद तक चांद पर हुए थे ज्वालामुखी विस्फोट (Photo: NASA-JPL) जितना सोचा गया उससे 100 करोड़ साल बाद तक चांद पर हुए थे ज्वालामुखी विस्फोट (Photo: NASA-JPL)
aajtak.in
  • बीजिंग,
  • 08 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 3:58 PM IST

50 साल पहले, नासा (NASA) और सोवियत स्पेस प्रोग्राम (Soviet space program) द्वारा कुछ मिशन पर काम किया गया था, जिसमें चांद से वहां की चट्टानों के नमूने लाए गए थे. इन चट्टानों की जांच से चंद्रमा की संरचना, गठन और उसके भूवैज्ञानिक इतिहास के बारे में बहुत कुछ पता चला. खासकर, वैज्ञानिकों को यह पता चला कि चंद्रमा पर चट्टानें 300 करोड़ साल पहले, ज्वालामुखी विस्फोट की वजह से बनी थीं. 

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हाल के सालों में, चांद पर वैज्ञानिकों ने काफी काम किया है. नासा और कई अंतरिक्ष एजेंसियों ने चंद्रमा पर अपने रोबोटिक मिशन भेजे हैं. जैसे, चीन ने अपने चेंज प्रोग्राम (Chang'e program) के तहत चांद पर कई ऑर्बिटर्स, लैंडर्स और रोवर्स भेजे हैं. हाल ही में चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (CAS) के प्लैनेटरी साइंटिस्ट्स ने, एक नया शोध किया है, जिसमें उन्होंने चेंज-5 रोवर द्वारा लाए गए 200 करोड़ साल पुराने नमूनों की जांच की है. 

माना जा रहा था कि पिछले 300 करोड़ सालों से चांद जियोलॉजिकली डेड है (Photo: Getty)

यह शोध इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी एंड जियोफिजिक्स ऑफ द चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (IGGCAS) की एक टीम ने किया था, जिसे लीड किया था सु बिन (Su Bin), युआन जियानग्यान (Yuan Jiangyan) और चेन यी (Chen Yi) ने, जो लिथोस्फेरिक इवोल्यूशन एंड अर्थ एंड प्लैनेटरी फिजिक्स की IGGCAS लैब के सदस्य थे. 

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अपोलो और लूना मिशन से लाए गए नमूनों के आधार पर, वैज्ञानिकों ने कहा है कि चंद्रमा पिछले 300 करोड़ सालों भूगर्भीय रूप से मृत (geologically dead) है. हालांकि, 2021 में चेंज-5 मिशन द्वारा लाई गई चांद की चट्टान के नए नमूने, केवल 200 करोड़ साल पुराने थे. इससे यह पता चलता है कि वहां ज्वालामुखीय गतिविधि अपने पहले अनुमान से कम से कम 100 करोड़ साल ज्यादा समय तक हुई थी. चट्टान के एक छोटे पिंड के तौर पर चंद्रमा पर, जिस गर्मी की वजह से ज्वालामुखी बने, वह इन विस्फोटों के होने से बहुत पहले ही खत्म हो जानी चाहिए थी.

गुरुत्वाकर्षण की वजह से चांद पर हुए ज्वालामुखी विस्फोट (Photo: AP)

पहले वैज्ञानिकों को लगा था कि आखिरी समय पर होने वाले ज्वालामुखी, पानी की मात्रा या लूनर मेंटल में रेडियोएक्टिव तत्वों के क्षय की वजह से हुए होंगे. लेकिन नए शोध ने इस आम सहमति को खारिज कर दिया है. नए शोध के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने पाया कि मेंटल में लो मेल्टिंग प्वाइंट वाले खनिजों की वजह से कंप्रेशन (compression) हुआ होगा, जिससे युवा ज्वालामुखी (young volcanism) हुए होंगे.

प्रोफेसर चेन का कहना है कि अभी चंद्रमा के मेंटल के पिघलने को या तो तापमान बढ़ाकर या गलनांक कम करके पाया जा सकता है. इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए, हमें उस तापमान और दबाव का अनुमान लगाना चाहिए जिसमें युवा ज्वालामुखी बना था. शोध में पाया गया कि युवा मैग्मा के नमूनों में पुराने अपोलो मैग्मा नमूनों की तुलना में, कैल्शियम ऑक्साइड और टाइटेनियम ऑक्साइड की सांद्रता ज्यादा थी. ये खनिज चांद के मेंटल में पहले के खनिजों की तुलना में ज्यादा आसानी से पिघल जाते हैं, इन खनिजों की उपस्थिति का मतलब है कि ज्वालामुखी विस्फोट गुरुत्वाकर्षण की वजह से हुए होंगे और मेंटल में मौजूद सामग्री को बाहर उगला होगा. 

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जांच से पता चला है कि मेंटल का कंप्रेशन समान गहराइयों पर हुआ होगा, लेकिन ठंडे तापमान में भी ये ज्वालामुखी बना रहे थे. हाल ही के सालों में मंगल ग्रह के बारे में जो भी जाना गया, यह शोध उससे अलग नहीं है. अरबों साल पहले, मंगल की सतह पर भी हजारों विस्फोट हुए थे, जिनमें से कुछ सौर मंडल में सबसे बड़े ज्वालामुखी के रूप में सामने आए जैसे ओलंपस मॉन्स (Olympus Mons). वैज्ञानिकों को संदेह था कि चूंकि मंगल का आंतरिक भाग ठंडा हो गया है इसलिए भूगर्भीय रूप से वह मृत हो गया है. लेकिन हाल के नतीजों से संकेत मिलते हैं कि वहां अब भी कुछ ज्वालामुखी गतिविधियां हो सकती हैं.

यह अध्ययन चंद्रमा पर युवा ज्वालामुखी के लिए पहला व्यवहार्य स्पष्टीकरण प्रस्तुत करता है जो चांग'ए -5 रोवर द्वारा लौटाए गए नमूनों के अनुकूल है. इस शोध से चंद्रमा के थर्मल और जियोलॉजिकल विकास पर भविष्य में होने वाले शोधों में मदद मिलेगी. 

 

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