
संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने पिछले साल दुनियाभर के देशों से अपील की थी कि वो एंटी-सैटेलाइट टेस्ट (ASAT) न करें. क्योंकि इससे अंतरिक्ष में भारी मात्रा में कचरा फैलता है. जिससे स्पेस स्टेशन, दूसरी सैटेलाइट्स और अन्य अंतरिक्ष मिशन को खतरा रहता है. इसके बाद से अब तक 13 देशों ने इस टेस्ट को न करने का फैसला किया है.
नीदरलैंड्स, ऑस्ट्रिया और इटली यह टेस्ट न करने वाले देशों की सूची में नए नाम हैं. पिछले साल अप्रैल में संयुक्त राष्ट्र ने एंटी-सैटेलाइट टेस्ट न करने का प्रस्ताव रखा था. जिसे यूएन जनरल एसेंबली में सितंबर महीने में पारित किया गया. दिसंबर तक 9 देशों ने यह कसम खा ली. ये हैं- ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, जर्मनी, फ्रांस, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, स्विट्जरलैंड और यूनाइटेड किंगडम.
इस साल 27 फरवरी को नीदरलैंड्स ने, 3 मार्च को ऑस्ट्रिया ने और 6 अप्रैल को इटली संयुक्त राष्ट्र की बात मानते हुए ASAT न करने की कसम खा ली. इन तीनों देशों ने कहा है कि वो कभी भी डायरेक्ट एसेंट ASAT टेस्टिंग नहीं करेंगे. यानी जमीन, जंगी जहाज, विमान से बेकार या मरते हुए सैटेलाइट्स पर सीधे मिसाइल से हमला नहीं करेंगे. क्योंकि इसकी वजह से अंतरिक्ष में भारी मात्रा में कचरा फैलता है.
रूस ने दो साल पहले फैलाया था अंतरिक्ष में कचरा
नवंबर 2021 में रूस ने अपने पुराने और बेकार सैटेलाइट कॉसमॉस 1408 (Cosmos 1408) को मिसाइल से मार गिराया था. थोड़ी देर में ही अंतरक्ष में इस सैटेलाइट का कचरा फैल गया. इसकी वजह से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को कई बार अपनी पोजिशन बदलनी पड़ी. नहीं तो इनसे टकराकर स्पेस स्टेशन खत्म हो जाता. इसके बाद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और अमेरिकी ने इस चीज का काफी विरोध किया था.
नासा एडमिनिस्ट्रेटर बिल नेल्सन ने कहा था कि रूस की इस हरकत से स्पेस स्टेशन और उसके खुद के अंतरिक्ष यात्रियों की जान खतरे में पड़ गई थी. इतना ही नहीं ये खतरा चीन (China) के स्पेस स्टेशन तियांगोंग और उनके एस्ट्रोनॉट्स के लिए भी है. बिल ने कहा कि सभी देशों को साफ-सुथरा अंतरिक्ष बनाए रखने के लिए जरूरी ASAT को खत्म करना चाहिए.
पिछले कई सालों से चल रहे ASAT टेस्ट की वजह से अंतरिक्ष में 6851 बड़े कचरे घूम रहे हैं. इसमें से 3472 कचरे के टुकड़े तो अब भी ऑर्बिट में हैं. चार इंच से बड़े टुकड़े ज्यादा खतरनाक साबित होते हैं. सवाल ये है कि एसैट टेस्ट होते क्या है? ऐसी मिसाइल या रॉकेट जो अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहे दुश्मन देश के सैटेलाइट को मार गिराए. उसे एंटी-सैटेलाइट हथियार (ASATs Weapons) कहते हैं.
एंटी-सैटेलाइट हथियारों का इतिहास
1957 में सोवियत संघ ने दुनिया का पहला सैटेलाइट स्पुतनिक-1 लॉन्च किया था. अमेरिका को लगा कि शीत युद्ध का दुश्मन धरती की कक्षा में परमाणु हथियार से संपन्न सैटेलाइट तैनात कर रहा है. तब अमेरिका ने पहला ASAT बनाया था. यह हवा से लॉन्च की जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइल थी, जिसका नाम था बोल्ड ओरियन.
फिर सोवियत ने अपना ASAT बनाया. नाम दिया को-ऑर्बिटल्स (Co-Orbitals). ये हथियार अपने और दुश्मन के सैटेलाइट के साथ-साथ उड़ते रहते. जैसी जरूरत पड़ती उसके मुताबिक ये खुद ही फट जाते. यानी आत्मघाती हमलावर. साथ ही अपनी या दुश्मन के सैटेलाइट को खत्म कर देते. इस तकनीक पर तबसे काम चल ही रहा है.
2007 में चीन इस रेस में शामिल हुआ. उसने अपने बैलिस्टिक मिसाइल से अंतरिक्ष में अपने पुराने मौसम सैटेलाइट को उड़ा दिया. जिससे अंतरिक्ष में कचरा फैल गया. 2019 में भारत ने भी 'मिशन शक्ति' के तहत अपने पुराने सैटेलाइट को बैलिस्टिक मिसाइल से मार गिराया था. अप्रैल 2022 में अमेरिका पहला देश बना जिसने मिसाइलों से सैटेलाइट्स को मारना प्रतिबंधित किया.
भारत के पास कौन सा ASAT हथियार है
भारत के पास एंटी-सैटेलाइट मिसाइल के लिए पृथ्वी एयर डिफेंस (पैड) सिस्टम है. इसे प्रद्युम्न बैलिस्टिक मिसाइइल इंटरसेप्टर भी कहते हैं. यह एक्सो-एटमॉसफियरिक (पृथ्वी के वातावरण से बाहर) और एंडो-एटमॉसफियरिक (पृथ्वी के वातावरण से अंदर) के टारगेट पर हमला करने में सक्षम हैं. पहले से मौजूद पैड सिस्टम को अपग्रेड कर तीन स्टेज वाला इंटरसेप्टर मिसाइल बनाया गया. फिर मिशन शक्ति के परीक्षण में उसी मिसाइल का इस्तेमाल किया गया.
भारतीय ASAT मिसाइल की रेंज 2000 किमी है. यह 1470 से 6126 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से सैटेलाइट की तरफ बढ़ती है. हालांकि, बाद में इसे अपग्रेड कर ज्यादा ताकतवर और घातक बनाया जा सकता है. डीआरडीओ ने बैलिस्टिक इंटरसेप्टर मिसाइल के जरिए 300 किमी की ऊंचाई पर मौजूद उपग्रह को मार गिराया.
कितने प्रकार के होते हैं एंटी-सैटेलाइट हथियार
ASATs दो तरह के होते हैं. एक जो सीधे काइनेटिक ऊर्जा के जरिए टक्कर मारते हैं. जैसे-मिसाइल या रॉकेट या ड्रोन. दूसरे नॉन-काइनेटिक हथियार. यानी साइबर अटैक. सैटेलाइट्स को लेजर के जरिए बेकार कर दिया जाता है. ऐसे हमले हवा, धरती की निचली कक्षा या फिर जमीन से भी किया जा सकता है.