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इन 3 देशों में प्रदूषण Zero, 'बुरे कार्बन' का नामो निशान नहीं

दुनिया के तीन देश ऐसे हैं, जो Carbon Negative क्लब में शामिल हो गए हैं. यानी यहां कार्बन उत्सर्जन कम करने की कोई चुनौती नहीं बची. यहां ग्रीनहाउस गैसों का प्रदूषण नहीं है. देश से कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए इन देशों ने जो कुछ भी किया उससे ये दुनिया के सामने मिसाल बन गए हैं. आज जानेंगे कि ये कैसे संभव हुआ.

कार्बन निगेटिव देशों में पहला है भूटान (Photo: Getty) कार्बन निगेटिव देशों में पहला है भूटान (Photo: Getty)
पारुल चंद्रा
  • नई दिल्ली,
  • 03 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 7:52 PM IST

पूरी दुनिया इस वक्त जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के खतरनाक प्रभाव झेल रही है. देशों के सामने अब कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emissions) कम करने की चुनौती है. लेकिन कुछ देश ऐसे भी हैं जो इस चुनौती से फ्री हो गए हैं, यानी उन्हें कार्बन उत्सर्जन कम करने की ज़रूरत ही नहीं है. वो इसलिए क्योंकि ये देश 'कार्बन निगेटिव' देश (Carbon Negative Countries) बन चुके हैं. 

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आपको बता दें कि दुनिया में 3 देश ऐसे हैं जिन्हें कार्बन निगेटिव देश घोषित किया जा चुका है. ये देश हैं- भूटान (Bhutan), सूरीनाम (Suriname) और पनामा (Panama). जहां जलवायु परिवर्तन के घातक परिणामों को लगभग हर देश झेल रहा है, वहां ये तीनों देश दुनिया के सामने मिसाल बन गए हैं. आज जानेंगे कि इन देशों के लिए ये कर पाना कैसे संभव हुआ. लेकिन पहले ये जान लेते हैं कि कार्बन उत्सर्जन और कार्बन निगेटिव होना क्या है. 

कार्बन उत्सर्जन और कार्बन निगेटिव होना क्या है

किसी एक संस्था या व्यक्ति द्वारा किए गए कुल कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को कार्बन उत्सर्जन/फुटप्रिंट कहते हैं. यह उत्सर्जन कार्बन डाइऑक्साइड या ग्रीनहाउस गैसों के रूप में होता है. इन ग्रीनहाउस गैसों में कमी लाना ही अब दुनिया के सामने चुनौती है. 

जब कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) और इसके समकक्ष (CO2e) ग्रीनहाउस गैसों (Greenhouse gasses) का उत्सर्जन शून्य से कम होता है, तो इसे कार्बन निगेटिव कहते हैं. हालांकि, कार्बन निगेटिव मात्रा का उत्सर्जन असंभव है, इसलिए कार्बन निगेटिव होने का मतलब है जितनी कार्बन हम पर्यावरण में छोड़ते हैं, उतनी किसी और माध्यम से कम कर देना.

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वातावरण में CO2 और अन्य ग्रीनहाउस गैसों में लगातार वृद्धि हो रही है (Photo: AP)

भूटान

अब सबसे पहले बात करते हैं भूटान की. भूटान ने नेट-ज़ीरो (Net Zero) की शपथ नहीं ली, क्योंकि भूटान को ऐसा करने की ज़रूरत ही नहीं थी. भूटान के जंगल एक साल में करीब 90 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) अवशोषित करते हैं. जबकि इस देश से हर साल कुल कार्बन उत्सर्जन, 40 लाख टन से भी कम होता है.

भूटान ऐसा क्यों कर पाया इसके पीछे कई वजह हैं. सबसे पहली वजह यह है कि भूटान जंगलों के मामले में बहुत अमीर है. यहां के संविधान के मुताबिक, इस देश में कम से कम 60 प्रतिशत जंगल होना ज़रूरी है, जबकि भूटान में जंगल का प्रतिशत 72 प्रतिशत है. इतना ही नहीं, देश में लॉग निर्यात (Log export) प्रतिबंधित है, यानी लकड़ियां देश के बाहर नहीं जा सकतीं. भूटान में ऊर्जा का मुख्य स्रोत रीनुएबल हाइड्रोपॉवर (Renewable Hydropower) है. यानी, बिजली नदियों बर बने प्लांट से आती है. हालांकि यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि भूटान एक छोटा और गैर-औद्योगिक राष्ट्र है. 

सूरीनाम

बात अगर सूरीनाम की करें तो, ये जान लीजिए कि पृथ्वी पर अगर सबसे ज्यादा जंगल किसी इलाके में हैं, तो वह दक्षिणी अमेरिका के इसी देश में है. सूरीनाम दक्षिण अमेरिका का सबसे छोटा संप्रभु राज्य है, जिसका 97 प्रतिशत हिस्सा घने उष्णकटिबंधीय जगलों से भरा हुआ है. 

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सूरीनाम दक्षिण अमेरिका का सबसे छोटा संप्रभु राज्य है (Photo: Getty)

हालांकि, यह देश आर्थिक रूप से कृषि उत्पादों, बॉक्साइट, सोना और पेट्रोकेमिकल्स जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है, लेकिन अपने जंगलों की रक्षा करके सूरीनाम कार्बन निगेटिव क्लब में प्रवेश पाने में सफल रहा है. लाखों हेक्टेयर संरक्षण क्षेत्र बनाने के लिए यहां के लोगों और सेना ने सरकार का साथ दिया और यह संभव हो पाया.

 

पनामा

इस कार्बन निगेटिव क्लब में सबसे नया नाम पनामा का है. मध्य अमेरिकी देश पनामा, दक्षिण अमेरिका की सीमा पर बसा है. यह पहाड़ों, नदियों और अपने उष्णकटिबंधीय वातावरण के लिए जाना जाता है. यह देश वन आवरण के विनाश को रोकने में सक्षम रहा है और अब इस देश का 57 प्रतिशत हिस्सा जंगलों से भरा है. पनामा का लक्ष्य है कि 2023 तक वह भारी ईंधन और कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर देंगे, साथ ही 2050 तक 50 हजार हैक्टेयर जमीन को घने जंगल में बदल देंगे. 

पनामा का लक्ष्य है जल्द ही भारी ईंधन और कोयले को खत्म करना (Photo: Getty)

COP 26 में तीनों देशों ने एक औपचारिक गठबंधन किया, जिसमें अधिमान्य व्यापार और अंतर्राष्ट्रीय योगदान की मांग की है. उम्मीद की जा रही है कि इस क्लब में और देश भी जल्द शामिल होंगे. आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने COP 26 (2021 में हुआ 26वां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन) में 2070 तक भारत द्वारा शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने का एलान किया था. 

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