
हिमालय (Himalaya) को दुनिया का तीसरा ध्रुव कहते हैं. हिमालय में तिब्बत के पठार, हिंदूकुश, तियानशान पहाड़ों की शृंखला आती है. जलवायु परिवर्तन (Climate Change), बढ़ते तापमान (Rising Temperature) और बारिश के बदले पैटर्न की वजह से पिछले तीस सालों में हिमालय के 10 हजार ग्लेशियर पिघल गए हैं.
इन ग्लेशियरों के पिघलने की वजह से हजारों की संख्या में ग्लेशियल लेक्स (Glacial Lakes) बन गई हैं. जो कि हिमालय के निचले इलाकों के लिए खतरनाक है. ये किसी भी वक्त टूटकर सिक्किम, केदारनाथ या चमोली जैसा हादसा कर सकती है. दिखने में ये बेहद सुंदर लगती हैं, लेकिन जब टूटती हैं, तो भयानक तबाही लेकर आती हैं.
चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेस के इंस्टीट्यूट ऑफ तिब्बतन प्लेट्यू रिसर्च के साइंटिस्ट एसो. प्रो. वीकाई वांग और उनकी टीम ने हिमालय के ग्लेशियल लेक्स की बड़ी स्टडी की है. जो हाल ही में नेचर कम्यूनिकेशंस में प्रकाशित हुई है. उन्होंने कहा कि भारत, चीन, पाकिस्तान, नेपाल सभी को तत्काल इन खतरनाक झीलों को लेकर एक्शन लेना चाहिए.
भारत-चीन-पाकिस्तान को मिलकर काम करना होगा, तभी सुरक्षा
तीसरे ध्रुव की गोद में पल रहे इन शैतानों से बचने के लिए इन सभी देशों को एकसाथ मिलकर काम करना होगा. प्रो. वीकाई वांग ने सेंटीनल-2ए और 2बी का डेटा लिया. जो 2018 से 2022 तक का है. उन्होंने सभी ग्लेशियल लेक्स का वर्गीकरण किया. उनके आकार, सोर्स और खतरे के आधार पर बांटा, फिर उन्हें अलग-अलग लिस्ट में डाला.
दो दशक में दोगुनी हुई ग्लेशियर से बनी झीलों के टूटने की घटना
इससे डरावने आंकड़े सामने आए. 1981 से 1990 के बीच हिमालय पर GLOF की 1.5 घटनाएं होती थी, जो 2011 से 2020 के बीच बढ़कर 2.7 हो चुकी हैं. यानी हर दशक में दोगुनी गति से ये घटनाएं बढ़ रही हैं. यह हिमालय और उसके निचले इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए खतरनाक संकेत हैं. अगर हर साल GLOF की घटनाएं सामने आती रहीं, तो अब जागने का समय आ गया है.
5535 झीलें खतरनाक... 1500 झीलें किसी भी समय टूट सकती हैं
प्रो. वीकाई वांग ने 5535 ऐसी ग्लेशियल लेक्स को पहचाना है, जो इन देशों के लिए कभी भी खतरनाक साबित हो सकती है. ये किसी भी समय फूट सकती है. यानी GLOF की घटना हो सकती है. इसमें से 1500 झीले बेहद खतरनाक हैं. इनके हाई पोटेशिंयल GLOF की आशंका है. यानी निचले इलाकों में भारी तबाही किसी भी समय आ सकती है.
55 हजार इमारतें, 100 से ज्यादा हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्टर खतरे में
प्रो. वांग ने बताया कि इन झीलों के टूटने से कम से कम 55,805 इमारतें, 105 मौजूदा या प्लान हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट, 194 वर्ग किलोमीटर की खेतिहर हमीने, 50005 किलोमीटर सड़कें, 4038 ब्रिज टूटने की आशंका है. इसके अलावा इन झीलों के टारगेट पर कम से कम 2 लाख लोगों की जान है. यानी ये ग्लेशियल झीलें टूटकर इतने लोगों पर बर्बादी ला सकती हैं.
कैसे आती है ग्लेशियल लेक्स के टूटने से आपदा?
ग्लेशियल लेक्स के टूटने की घटना को GLOF - ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्ल्ड्स कहते हैं. ग्लेशियर के पिघलने से बनी ये झीलें ग्लेशियर के टूटने से टूट सकती हैं. बर्फीले एवलांच यानी हिमस्खलन से, भूस्खलन या किसी प्राकृतिक बांध के टूटने की वजह से टूट सकती हैं. फिर इनके अंदर मौजूद लाखों लीटर पानी तेजी से नीचे की ओर आता है, जिससे तबाही मचती है.
सिक्किम, केदारनाथ, चमोली... जैसी कई घटनाएं
अभी हाल ही में सिक्किम में ऐसा ही हादसा हुा था. 2015 से 2020 के बीच हिमालय में 10 हजार से 30 हजार ग्लेशियल लेक देखी गईं. इनकी ऊंचाई दुर्गमता को देखते हुए इनकी स्टडी करना मुश्किल है. ये बता पाना मुश्किल है कि ये कब टूटेंगी. GLOF का रिस्क असेसमेंट करने बेहद खतरनाक है. इसलिए वैज्ञानिक सैटेलाइट्स की मदद लेते हैं.