
एक नए शोध से पता चला है कि इस साल की शुरुआत में टोंगा (Tonga) में, समुद्र के अंदर हुआ ज्वालामुखी विस्फोट अब तक दर्ज किया गया सबसे ऊंचा विस्फोट था. यानी इससे निकलने वाली राख, धूल और पानी की वाष्प की जो धारा थी, वो समुद्र तल से 57 किलोमीटर ऊपर पहुंच गई थी. यह पृथ्वी के वायुमंडल की तीसरी परत यानी मेसोस्फीयर (Mesosphere) तक पहुंच गई थी.
15 जनवरी 2022 को, टोंगा के मुख्य द्वीप टोंगटापु के 64 किमी उत्तर में हुंगा टोंगा-हंगा हापाई ज्वालामुखी ((Hunga Tonga-Hunga Haʻapai volcano) अचानक फट गया. यह पिछले करीब 30 सालों में पृथ्वी पर हुआ सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली विस्फोट था. इसमें 100 हिरोशिमा बमों के बराबर बल था. इस घटना ने एक सुनामी को जन्म दिया जो जापान तक पहुंच गई थी. इससे वायुमंडल में एक शॉकवेव (Shockwave) पैदा हुई थी.
शोध में बताया गया है कि 15 जनवरी को हुए इस ज्वालामुखी विस्फोट की ऊंचाई 57 किलोमीटर थी, जबकि पिछला रिकॉर्ड फिलीपींस (Philippines) में माउंट पिनातुबो (Mount Pinatubo) के पास था. 1991 में इस ज्वालामुखी विस्फोट की धारा 40 किमी तक पहुंच गई थी. हंगा टोंगा-हंगा हापई पिछले रिकॉर्ड धारक से 17 किलोमीटर ज्यादा है.
साइंस (Science) जर्नल में प्रकाशित हुए शोध के मुताबिक, सैटेलाइट इमेजरी (satellite imagery) द्वारा रिकॉर्ड की गई ये धारा इतनी बड़ी थी कि इसे रिकॉर्ड करने के लिए खास तैयारी करनी पड़ी थी. ज्यादातर मामलों में, ज्वालामुखी की धारा की ऊंचाई को मापने के लिए, तापमान को सबसे ऊपर लिया जाता है और फिर अलग-अलग ऊंचाई पर पाए जाने वाले मानक वायु तापमान के साथ उसकी तुलना की जाती है. ये धाराएं सामान्य तौर पर ट्रोपोस्फीयर (Troposphere) में होती हैं, जो पृथ्वी के वायुमंडल की सबसे निचली परत है, जहां बढ़ती ऊंचाई के साथ तापमान कम होता जाता है.
मेसोस्फीयर तक पहुंचने वाली ज्वालामुखी धारा का ये पहला दर्ज उदाहरण है. यह वायुमंडल का वह क्षेत्र है जिसे आमतौर पर शूटिंग स्टार्स के लिए जाना जाता है. मेसोस्फीयर वायुमंडल की तीसरी परत है, जो करीब 48 और 90 किलोमीटर ऊंची है. यहां, हवा का तापमान उच्च ऊंचाई के साथ फिर से बढ़ना शुरू कर सकता है. इसलिए इसे मापने के लिए टीम को एक नया तरीका निकालना पड़ा.
इस तरीके में पैरालैक्स इफेक्ट (Parallax effect) की मदद ली गई और अंतरिक्ष में 36,000 किलोमीटर ऊपर तीन जियोस्टेशनरी वेदर सैटेलाइट का इस्तेमाल किया गया. इन सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों पर पैरालैक्स इफेक्ट लागू किया गया. विस्फोट के दौरान, सैटेलाइट ने हर दस मिनट में तस्वीरें लीं जिससे टीम, धारा की ट्राजेक्टरी में होने वाले बदलाव देख सकी.
टीम अब इस नए तरीके का इस्तेमाल करके अन्य ज्वालामुखी धाराओं की ऊंचाई का पता लगाने के लिए. एक ऑटोमेटेड सिस्टम बनाने की योजना बना रही है.