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अजन्मे बच्चों पर भी पड़ रहा है प्रदूषण का असर, फेफड़ों और दिमाग में मिला जहरीला कार्बन

प्रदूषण कितना खतरनाक रूप ले रहा है, वह इस बात से समझा जा सकता है कि अब प्रदूषण के ज़हरीले कण मां के गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगों तक पहुंच गए हैं. वह बच्चा जो सीधे तौर पर इस दुनिया में फैल रहे प्रदूषण के संपर्क में नहीं आया, वह गर्भ में ही प्रदूषण के दुष्परिणाम झेल रहा है.

अजन्मे बच्चे के दिमाग तक पहुंच गया है ज़हरीला कार्बन (Photo: AI Nanny) अजन्मे बच्चे के दिमाग तक पहुंच गया है ज़हरीला कार्बन (Photo: AI Nanny)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 08 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 6:07 PM IST

हम सभी जानते हैं कि प्रदूषण बहुत हानिकारक है, लेकिन यह कितना खतरनाक हो सकता है आप कल्पना नहीं कर सकते. वायु प्रदूषण के खतरनाक प्रभावों पर हाल ही में हुए एक शोध ने वैज्ञानिक ही नहीं हर किसी को हिलाकर रख दिया है. इसके प्रभाव अब उन बच्चों पर भी दिखने लगे हैं जिन्होंने अभी जन्म भी नहीं लिया है.

शोध के मुताबिक, अजन्मे बच्चे के विकसित हो रहे फेफड़ों और बाकी ज़रूरी अंगों में जहरीले प्रदूषक (Toxic Pollutants) पाए गए हैं. इन टॉक्सिक कणों का पता गर्भावस्था की तीसरी तिमाही (Third Trimester) में चला था.

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जन्म से पहले ही प्रदूषण से प्रभावित हो रहे हैं बच्चे (Photo: AI Nanny)

ये जहरीले प्रदूषक, नैनोकणों (Nanoparticles) के रूप में होते हैं जिन्हें ब्लैक कार्बन (Black Carbon) कहा जाता है. शोधकर्ताओं को यह तब मिले, जब वे यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि क्या प्रदूषण के कण भ्रूण तक पहुंच सकते हैं. अजन्मे बच्चे में नैनोपार्टिकल्स का मिलना, गर्भावस्था के दौरान मां का प्रदूषण के संपर्क में आने का नतीजा है.

हालांकि, पिछले अध्ययनों से पता चला है ब्लैक कार्बन नैनोपार्टिकल्स प्लेसेंटा में तो पहुंच जाते हैं, लेकिन इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं था कि ये कण भ्रूण में भी प्रवेश कर जाते हैं. यह इस तरह की पहली खोज है.

शोध के नतीजे मेडिकल जर्नल द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ (The Lancet Planetary Health) में प्रकाशित किए गए हैं. इस शोध का उद्देश्य यह पता लगाना था कि गर्भावस्था के दौरान यह कण, भ्रूण में विकसित हो रहे अंगों को सीधे तौर पर प्रभावित करने के लिए, मानव प्लेसेंटा और उसके आगे तक पहुंच सकते हैं या नहीं.

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वायु प्रदूषण के प्रभाव बेहद खतरनाक (Photo: Reuters)

ब्रिटेन की एबरडीन यूनिवर्सिटी (University of Aberdeen, UK) और बेल्जियम की हैसेल्ट यूनिवर्सिटी (Hasselt University, Belgium) के शोधकर्ताओं ने पाया कि ये नैनोकण, गर्भावस्था के पहली तिमाही में ही, प्लेसेंटा से गर्भ में पहुंच जाते हैं और वहां विकसित हो रहे अंगों में प्रवेश करते हैं. इन अंगों में लिवर, फेफड़े और दिमाग शामिल है.

पेपर के सह-लेखक प्रोफेसर टिम नवरोट (Tim Nawrot) का कहना है कि इस शोध से पता चलता है कि वे मां के शरीर में प्रवेश करने वाले कार्बन कण, प्लेसेंटा और बच्चे में पहुंच जाते हैं. इसका मतलब है कि एयर क्वालिटी रेगुलेशन को कार्बन कणों के इस ट्रांसफर पर ध्यान देना चाहिए और मानव विकास के सबसे संवेदनशील चरणों की सुरक्षा के लिए काम करना चाहिए.

पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के मुताबिक, ब्लैक कार्बन, गैस और डीजल इंजनों, कोयले से चलने वाले पॉवर प्लांट और जीवाश्म ईंधन को जलाने वाले अन्य स्रोतों से निकलने वाला काला पदार्थ है. इसमें एक बड़ा हिस्सा पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) या पीएम (PM) का होता है, जो एक वायु प्रदूषक है.

ये नए नतीजे बेहद चिंताजनक हैं, क्योंकि तीसरी तिमाही अंगों के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है और प्रदूषण के संपर्क में आने से गर्भावस्था में समस्याएं आ सकती हैं. साफ तौर पर समझें तो, नतीजे बता रहे हैं कि गर्भ में पल रहा बच्चा, सीधे-सीधे ब्लैक कार्बन वायु प्रदूषण कणों के संपर्क में आता है. जिससे बच्चे के स्वास्थ्य को जन्म से पहले भी खतरा हो सकता है.

 

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