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अमेरिका से भारत आया NISAR सैटेलाइट, लॉन्च के बाद आपदाओं को लेकर करेगा अलर्ट

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने फरवरी में इसरो को NISAR अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट सौंपा था. आज यानी 9 मार्च 2023 को अमेरिकी वायु सेना के C-17 विमान ने बेंगलुरु में उतारा. उसके बाद उसे बेंगलुरु स्थित इसरो सैटेलाइट असेंबलिंग सेंटर में ले जाया गया. इसकी लॉन्चिंग अगले साल होगी.

ये है NISAR सैटेलाइट जिसे बेंगलुरु पहुंचाया गया है. अब इसके रडार और सैटेलाइट बस की असेंबलिंग होगी. ये है NISAR सैटेलाइट जिसे बेंगलुरु पहुंचाया गया है. अब इसके रडार और सैटेलाइट बस की असेंबलिंग होगी.
ऋचीक मिश्रा
  • बेंगलुरु/नई दिल्ली,
  • 09 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 9:18 PM IST

पूरी दुनिया को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने वाला सैटेलाइट NISAR आज यानी 9 मार्च 2023 को बेंगलुरु पहुंच गया. इसे पिछले महीने नासा ने इसरो को सौंपा था. इस सैटेलाइट को नासा और इसरो ने मिलकर बनाया है. इसे रिसीव करने के लिए खुद इसरो प्रमुख डॉ. एस. सोमनाथ जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी गए थे. 

यह ऐसा सैटेलाइट है जो पूरी दुनिया को बाढ़, आग, भूस्खलन, भूकंप, तूफान, चक्रवात जैसी आपदाओं की जानकारी पहले ही देगा. इस सैटेलाइट को साल 2024 में लॉन्च किया जाएगा. इसके साइंटिफिक पेलोड में दो प्रकार के रडार सिस्टम हैं. निसार का पूरा नाम है नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar). इसे बनाने में 10 हजार करोड़ रुपए की लागत आई है. 

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बेंगलुरु एयरपोर्ट पर अमेरिकी वायुसेना के विमान से आया NISAR सैटेलाइट. 

बेंगलुरु में इसे यूआर राव सैटेलाइट सेंटर में रखा जाएगा. जहां पर इसके रडार और सैटेलाइट बस को जोड़ा जाएगा. इसके बाद कुछ टेस्ट किए जाएंगे. इस मिशन का लाइफटाइम फिलहाल तीन साल है. बाद में यह और बढ़ सकता है. इसका मेश रिफ्लेक्टर 40 फीट व्यास है. इसे नीयर पोलर अर्थ ऑर्बिट में तैनात किया जाएगा. यह दिन और रात दोनों समय काम करने वाला सैटेलाइट होगा. 

GSLV-Mk2 रॉकेट से किया जाएगा लॉन्च

इसे लॉन्च करने के लिए GSLV-Mk2 रॉकेट का इस्तेमाल किया जा सकता है. यह दुनिया का सबसे महंगा अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट है. निसार पूरी दुनिया पर नजर रखेगा. निसार स्पेस में धरती के चारों तरफ जमा हो रहे कचरे और धरती की ओर अंतरिक्ष से आने वाले खतरों की सूचना भी देता रहेगा. 

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NISAR को खास तरह डिब्बे में पैक किया गया था. यह वातानुकूलित होता है. इसमें धूुल और नमी भी नहीं जाती.

सैटेलाइट्स और उसके पेलोड्स की कई बार टेस्टिंग हो चुकी है. यह भारत और अमेरिका अब तक का सबसे बड़ा संयुक्त साइंस मिशन है. निसार में दो प्रकार के बैंड होंगे एल और एस. ये दोनों धरती पर पेड़-पौधों की घटती-बढ़ती संख्या पर नजर रखेंगे साथ ही प्रकाश की कमी और ज्यादा होने के असर की भी स्टडी करेंगे.

धरती का एक चक्कर 12 दिन में लगाएगा निसार

एस बैंड ट्रांसमीटर को भारत ने बनाया है और एल बैंड ट्रांसपोंडर को नासा ने. इसका रडार इतना ताकतवर होगा कि यह 240 किलोमीटर तक के क्षेत्रफल की एकदम साफ तस्वीरें ले सकेगा. यह धरती के एक स्थान की फोटो 12 दिन के बाद फिर लेगा. क्योंकि इसे धरती का पूरा एक चक्कर लगाने में 12 दिन लगेंगे. 

अंतरिक्ष में कुछ इस तरह दिखाई देगा NISAR सैटेलाइट. 

इस दौरान यह धरती के अलग-अलग हिस्सों की रैपिड सैंपलिंग करते हुए तस्वीरें और आंकडे वैज्ञानिकों को मुहैया कराता रहेगा. इस मिशन की लाइफ पांच साल मानी जा रही है. इस दौरान निसार ज्वालामुखी, भूकंप, भूस्खलन, जंगल, खेती, गीली धरती, पर्माफ्रॉस्ट, बर्फ का कम ज्यादा होना आदि विषयों की स्टडी करेगा. 

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एक ही सैटेलाइट में टेलिस्कोप, ट्रांसपोंडर्स और रडार

निसार सैटेलाइट में एक बड़ा मेन बस होगा, जिसमें कई इंस्ट्रूमेंट्स लगे होंगे. साथ ही कई ट्रांसपोंडर्स, टेलीस्कोप और रडार सिस्टम होगा. इसके अलावा इसमें से एक आर्म निकलेगा, जिसके ऊपर एक सिलेंडर होगा. यह सिलेंडर लॉन्च होने के कुछ घंटों बाद खुलेगा तो इसमें डिश एंटीना जैसी एक बड़ी छतरी निकलेगी. यह छतरी ही सिंथेटिक अपर्चर रडार है. यही धरती पर होने वाली प्राकृतिक गतिविधियों की इमेजिंग करेगी.

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