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हाइपरसोनिक मिसाइल अटैक का पहले ही मिलेगा अलर्ट, अमेरिका अंतरिक्ष में कर रहा ये तैयारी

रूस, चीन या उत्तर कोरिया अब अमेरिका पर हाइपरसोनिक मिसाइल से भी हमला नहीं कर पाएंगे. अमेरिका ने अंतरिक्ष में शुरू कर दी है बड़ी तैयारी. वह अंतरिक्ष में ऐसे मिलिट्री सैटेलाइट्स का जाल बिछा रहा है जो किसी भी तरह की क्रूज, बैलिस्टिक और हाइपरसोनिक मिसाइलों को ट्रैक करके अलर्ट दे देगा. 10 सैटेलाइट्स छोड़ भी दिए गए हैं.

वांडेनबर्ग स्पेस फोर्स बेस से 10 मिलिट्री सैटेलाइट्स लेकर टेकऑफ करता SpaceX का फॉल्कन-9 रॉकेट. (फोटोः SpaceX) वांडेनबर्ग स्पेस फोर्स बेस से 10 मिलिट्री सैटेलाइट्स लेकर टेकऑफ करता SpaceX का फॉल्कन-9 रॉकेट. (फोटोः SpaceX)
aajtak.in
  • सैक्रामेंटो,
  • 03 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 12:28 PM IST

अमेरिका ने हाइपरसोनिक मिसाइलों (Hypersonic Missiles) से बचने के लिए बड़ी तैयारी शुरू कर दी है. 2 अप्रैल 2023 को अमेरिकी मिलिट्री ने कैलिफोर्निया स्थित वांडेनबर्ग स्पेस फोर्स बेस (Vandenberg Space Force) से 10 मिलिट्री सैटेलाइट्स एकसाथ लॉन्च किए. इन्हें SpaceX के फॉल्कन-9 रॉकेट से अंतरिक्ष में भेजा गया. इसके बाद फॉल्कन-9 रॉकेट का पहला स्टेज सफलतापूर्वक वापस आ गया. 

अमेरिका नहीं चाहता कि रूस, चीन या उत्तर कोरिया की मिसाइलों से उसे कोई खतरा हो. हाल ही में यूक्रेन में रूस ने अपनी हाइपरसोनिक मिसाइल किंझल से हमला किया था. इस मिसाइल को गिराना असंभव है. लेकिन ट्रैक किया जा सकता है. इसलिए अमेरिका नहीं चाहता कि भविष्य में उसके देश पर इस तरह का कोई खतरा आए. आए तो पहले ही अलर्ट मिल जाए. ताकि बचाव संबंधी काम किए जा सकें. 

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रूसी फाइटर जेट के नीचे है हाइपरसोनिक मिसाइल किंझल. जिसे उसने हाल ही में यूक्रेन पर दागा था. (फोटोः गेटी)

अमेरिका की स्पेस डेवलपमेंट एजेंसी (SDA) की योजना है कि वह ऐसे सैकड़ों मिलिट्री सैटेलाइट्स का जाल बिछाएगा, जो दुनिया में कहीं से भी छूटने वाली क्रूज, बैलिस्टिक और हाइपरसोनिक मिसाइलों की पहले ही जानकारी दे सके. अमेरिका को उत्तर कोरिया तो नहीं लेकिन चीन और रूस से बड़ा खतरा है. इसलिए एसडीए ऐसी तकनीक और क्षमताएं विकसित कर रही है, जिससे हाइपरसोनिक मिसाइलों के आने की खबर मिल सके. क्योंकि हाइपरसोनिक मिसाइलें परंपरागत मिसाइल ट्रैकिंग सैटेलाइट्स और रडार को धोखा दे सकती हैं. 

अब हर तरह की मिसाइलों पर रहेगी अमेरिका की नजर

पुराने मिसाइल ट्रैकिंग सैटेलाइट्स अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों को तो ट्रैक कर लेते थे. क्रूज मिसाइलों को भी ट्रैक कर लेते थे. लेकिन हाइपरसोनिक मिसाइलों को ट्रैक करना इनके लिए मुश्किल है. इसलिए SDA ने नए सैटेलाइट्स बनावाए हैं, जो हाइपरसोनिक मिसाइलों को ट्रैक करने में मास्टर हैं. इन सैटेलाइट्स का नाम है प्रोलिफिरेटेड स्पेस वॉरफेयर आर्किटेक्चर (PSWA). इसमें तहत रडार सिस्टम भी है. 

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इस तरह से सैटेलाइट ट्रैक करेंगे हाइपरसोनिक मिसाइल को. फिर देंगे अलर्ट ताकि बचाव हो सके. 

मिसाइल ट्रैकिंग सैटेलाइट्स की फ्लीट होगी लॉन्च

जैसे ही सैटेलाइट से रडार को सूचना मिलेगी, अमेरिका और उसके मित्र देश अपनी ही सीमा में हाइपरसोनिक मिसाइल को मार गिराने का प्रयास करेंगे. एसडीए के डायरेक्टर डेरेक टूरनीयर ने कहा कि ये सैटेलाइट्स पूरे अमेरिका के लिए वरदान हैं. ये भविष्य के खतरों से हमारे देश और लोगों को बचाएंगे. एसडीए हर दो साल में ऐसे सैटेलाइट्स की पूरी फ्लीट लॉन्च कर सकता है. हम भविष्य के युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. 

अगले दो साल 150 सैटेलाइट्स छोड़ेगा अमेरिका

PSWA में सबसे पहले 28 सैटेलाइट्स लॉन्च किए जाएंगे. 10 सैटेलाइट्स 2 अप्रैल 2023 को लॉन्च हुए बाकी एक साल के अंदर कर दिए जाएंगे. इसके बाद साल 2024 और 2025 तक 150 सैटेलाइट्स और छोड़े जाएंगे. जिनका काम सिर्फ और सिर्फ हाइपरसोनिक समेत अन्य खतरों से अमेरिका को अलर्ट करना होगा. इन सैटेलाइट्स को पारंपरिक टैक्टिकल रेडियो लिंक्स, लेजर इंटर-सैटेलाइट कम्यूनिकेशन और वाइडव्यू इंफ्रारेड सेंसर्स से जोड़ा जाएगा. ताकि रूस और चीन की तरफ से आने वाली किसी भी तरह की मिसाइल से बचा जा सके. 

मिलिट्री सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में छोड़कर वापस लौटता फॉल्कन-9 रॉकेट का पहला स्टेज. (फोटोः SpaceX) 

सैटेलाइट्स को छोड़कर 8 मिनट में वापस आया रॉकेट

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अभी जो 10 सैटेलाइट्स छोड़े गए हैं, उनमें 8 डेटा रिले स्पेसक्राफ्ट हैं. जिन्हें यॉर्क स्पेस सिस्टम ने बनाया है. दो मिसाइल ट्रैकिंग सैटेलाइट्स हैं, जिन्हें SpaceX ने बनाया है. ये सभी सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में 1000 किलोमीटर की ऊंचाई पर चक्कर लगाएंगे. स्पेसएक्स के फॉल्कन-9 रॉकेट का पहला स्टेज इन सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में छोड़कर सिर्फ 8 मिनट में वापस भी आ गया. जबकि दूसरा स्टेज 10 एसडीए सैटेलाइट्स के साथ अंतरिक्ष में रह गया. 

SDA बदल रहा है युद्ध के तरीकों को

डेरेक टूरनीयर दो साल पहले एसडीए के डायरेक्टर बने. तब से लेकर एसडीए सिर्फ भविष्य के लिए सैटेलाइट्स बना रहा है, जो पेंटागन के पुराने तरीकों से एकदम अलग है. पहले बड़े सैटेलाइट्स छोड़े जाते थे. लेकिन एसडीए ने कहा कि हम छोटे-छोटे कई सैटेलाइट्स छोड़कर जाल बिछाएंगे. अगर कुछ सैटेलाइट्स का नुकसान हो भी जाता है, तो कोई दिक्कत नहीं आएगी. इतने सैटेलाइट्स छोड़ दिए जाएंगे कि मिसाइल वॉर्निंग, नेविगेशन और कम्यूनिकेशन चलता रहे. 

इस साल जून में बाकी 18 सैटेलाइट भी छोड़े जाएंगे. उसके बाद साल के अंत तक अमेरिका एगलिन एयरफोर्स बेस पर मौजूद मिलिट्री यूनिट्स को सैटेलाइट्स से डेटा रिसीव होने लगेगा. इसके साथ यूएस मरीन कॉर्प्स भी जुड़ रहा है. इसके अलावा इन सैटेलाइट्स के जरिए हिंद-प्रशांत इलाके में किसी भी मिलिट्री एक्सरसाइज पर भी नजर रख सकते हैं. साल 2024 की शुरुआत में इन सैटेलाइट्स की जांच होगी. एक हाइपरसोनिक मिसाइल दागकर उन्हें जांचा जाएगा. 

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क्यों नहीं पहचान हो पाती हाइपरसोनिक मिसाइल की? 

वर्तमान में अमेरिका का जो मिसाइल अर्ली वॉर्निंग सैटेलाइट्स हैं, वो स्पेस में मौजूद इंफ्रारेड सिस्टम, एसबीआईआरएस आधारित हैं. यानी वह बैलिस्टिक मिसाइलों के पीछे से निकले वाले आग, गर्मी और धुएं से पहचान करते हैं. लेकिन हाइपरसोनिक मिसाइलों का इंफ्रारेड सिग्नेचर बेहद कम होता है. ये वायुमंडल के नीचे उड़ते हुए टारगेट तक जाते हैं. ये ग्लाइड भी कर सकते हैं. यानी बिना आवाज या गर्मी के चुपचाप हवा में तैरते रह सकते हैं. इसलिए इन्हें ट्रैक करने के लिए नए सिस्टम की जरुरत थी. इसलिए एसडीए ने ये नए सैटेलाइट्स बनाए. 

चीन के पास डीएफ-17 नाम की हाइपरसोनिक ग्लाइड मिसाइल है. (फोटोः ट्विटर/ग्लोबल टाइम्स)

28 में से 20 सैटेलाइट्स करेंगे टैक्टिकल कम्यूनिकेशन

पूरी तरह से लॉन्च होने के बाद इन 28 सैटेलाइट्स में से 20 सिर्फ टैक्टिकल कम्यूनिकेशन के लिए होंगे. ये बेहद कम लेटेंसी वाला कम्यूनिकेशन स्थापित करेंगे. जानकारी सीधे वॉर फाइटर के पास जाएगी. इसके साथ ही बाकी के आठ सैटेलाइट्स मिसाइलों की पहचान और ट्रैकिंग का काम करेंगी. स्पेसएक्स औऱ यॉर्क स्पेस सिस्टम के अलावा इस प्रोजेक्ट में लॉकहीड मार्टिन और एल3हैरिस कंपनियां भी शामिल हैं. जून में इन दोनों कंपनियों के सैटेलाइट्स लॉन्च होंगे. 

कैसे काम करेगा ये सैटेलाइट सिस्टम? 

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डेरेक ने बताया कि वॉर फाइटर वो होगा जो आती हुई मिसाइलों को नष्ट करने के लिए एंटी-मिसाइल सिस्टम को एक्टीवेट करेगा. खैर... जैसे ही कोई मिसाइल डिटेक्ट होगी. ट्रैकिंग सैटेलाइट्स उनका डेटा, लोकेशन आदि ट्रांसपोर्ट लेयर सैटेलाइट्स को लेजर कम्यूनिकेशन के जरिए देंगे. इसके बाद ये डेटा रिले सैटेलाइट्स के पास जाएगा. जहां से वो सूचना जमीन पर मौजूद ग्राउंड स्टेशन को मिलेगा. इसके बाद वॉर फाइटर एंटी-मिसाइल सिस्टम एक्टिवेट कर देगा. फिर क्या... हाइपरसोनिक मिसाइल को मार गिराने की कवायद शुरू हो जाएगी. अब तक एसडीए ने इस तरह के 211 स्पेसक्राफ्ट्स को बनाने की अनुमति हासिल कर ली है. 

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