
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन 13 मार्च 2023 को सैन डिएगो में ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के नेताओं से मिलने वाले हैं. ताकि ऑस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बियां दी जा सकें. ये पनडुब्बियां कैनबेरा डिफेंस प्रोजेक्ट के तहत दी जा रही हैं. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन ने मिलकर AUKUS प्लान की घोषणा 2021 में की थी. ताकि इंडो-पैसिफिक इलाके में चीन को काउंटर किया जा सके.
हालांकि सवाल ये उठ रहा है कि अमेरिका में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने के नियम बहुत सख्त हैं. दूसरा ऑस्ट्रेलिया को कितने समय में इन पनडुब्बियों की डिलिवरी होगी. ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका से पांच वर्जिनिया क्लास न्यूक्लियर पावर्ड पनडुब्बियां खरीद रहा है. खरीद की तय सीमा 2030 है.
इस सबमरीन पैक्ट यानी पनडुब्बी समझौते में जो बाइडेन, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी एलबानीज और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक शामिल होंगे. समझौते के तहत आने वाले दिनों में एक अमेरिकी पनडुब्बी ऑस्ट्रेलिया के बंदरगाहों पर दौरा करेगी. 2030 के अंत तक नई वर्जिनिया क्लास पनडुब्बियां मिल जाएंगी.
नई पनडुब्बी में ब्रिटिश डिजाइन और अमेरिकी टेक्नोलॉजी
इन पनडुब्बियों में ब्रिटिश डिजाइन और अमेरिकी टेक्नोलॉजी लगी है. एक पनडुब्बी के ऑस्ट्रेलिया दौरे के बाद अमेरिका अपनी दो पनडुब्बियों को साल 2027 तक पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तटों पर तैनात कर देगा. 2030 के शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया तीन वर्जिनिया क्लास सबमरीन खरीद लेगा. इसके बाद दो और सबमरीन खरीदने का विकल्प भी है.
चीन ने तीनों देशों के इस समझौते का विरोध किया है. जबकि, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन मिलकर चीन के सैन्य ठिकानों पर दबाव बनाना चाहते हैं. चीन लगातार ताइवान पर दबाव बना रहा है. साथ ही वह दक्षिण चीन सागर पर अपना कब्जा बताता है. जिसका विरोध अमेरिका समेत कई देश करते हैं. इसलिए तीनों देश मिलकर चीन पर दबाव डालना चाहते हैं.
2021 में बना था AUKUS प्रोजेक्ट, ये रोकेगा चीन को
2021 में हुए AUKUS प्लान के तहत अमेरिका और ब्रिटेन ने ऑस्ट्रेलिया को अत्याधुनिक न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन देने की बात कही थी. जिसके बाद ब्रिटिश डिजाइन और अमेरिकी टेक्नोलॉजी से ये पनडुब्बियां बनाई जा रही हैं. इन पनडुब्बियों का निर्माण कहां हो रहा, फिलहाल इसका खुलासा नहीं हो पाया है.
अमेरिका 1950 में ब्रिटेन के साथ टेक्नोलॉजी बांटी थी. उसके बाद से अब तक ऐसा नहीं हुआ था. लेकिन इस बार वह अपनी प्रोपल्शन टेक्नोलॉजी बांट रहा है. फिलहाल न्यूक्लियर नॉन-प्रोलिफिरेशन ट्रीटी के तहत सिर्फ पांच ही देश हैं, जो परमाणु पनडुब्बियों से लैस हैं. ये हैं अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस.
तीनों देश आपस में करेंगे आधुनिक टेक्नोलॉजी शेयरिंग
AUKUS प्रोजेक्ट के तहत अब ये तीन देश आपस में एडवांस टेक्नोलॉजी शेयर करेंगे. जैसे- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और हाइपरसोनिक हथियार. पिछले हफ्ते कुछ ब्रिटिश और ऑस्ट्रेलियन अधिकारियों ने कहा था कि अब भी ब्यूरोक्रेटिक बाधाओं को पार करने पर हमें काम करना है. ताकि टेक्नोलॉजी की शेयरिंग आसान हो सके.
पेंटागन के पूर्व अधिकारी बिल ग्रीनवॉल्ट ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया तक नई पनडुब्बियां पहुंचने में अभी काफी समय है. उसके पहले बाकी दो देशों को चाहिए कि वो सेकेंड स्टेज के काम को तेजी से करें. क्योंकि अगर ऑस्ट्रेलिया तक ताकतवर और आधुनिक पनडुब्बियां तैनात नहीं हुईं तो चीन की तरफ से खतरा बढ़ता जाएगा.
रक्षा समझौतों के लिए अमेरिका कर रहा नियमों में बदलाव
बिल कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया के लिए सबसे ज्यादा जरूरी हैं, समुद्री ड्रोन्स, स्वार्म ड्रोन, लगातार सर्विलांस, एडवांस एआई और डेटा एनालिटिक्स. लेकिन इंटरनेशनल ट्रैफिक इन आर्म्स रेगुलेशन (ITAR) के तहत ऐसी मदद करना मुश्किल हो रहा है. अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका डिफेंस ट्रेड की प्रक्रिया को सरल बनाने में जुटा हुआ है.
अगले पांच साल में ऑस्ट्रेलिया के कर्मचारी अमेरिका आएंगे. वो नई पनडुब्बी के निर्माण का हिस्सा बनेंगे. ट्रेनिंग लेंगे. ताकि वो वापस जाकर अपनी पनडुब्बियों का ख्याल रख सकें. साथ ही इस दौरान अमेरिका में जो ट्रेन्ड कर्मियों की कमी है, वो भी पूरी होगी.