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चंद्रयान-मंगलयान की सफलता के बाद अंतरिक्ष में भारत की नई उड़ान, वीनस मिशन को कैबिनेट की मंजूरी

PM Narendra Modi की सरकार ने ISRO को Venus Orbiter Mission (VOM) की अनुमति दे दी है. जिसे शुक्रयान भी बुलाया जाता रहा है. इस मिशन में मंगलयान की तरह शुक्र ग्रह पर भी एक ऑर्बिटर भेजा जाएगा. जो उसके वायुमंडल, तापमान, सतह और मौसम आदि की स्टडी करेगा.

वीनस ऑर्बिटर मिशन में शुक्र ग्रह के चारों तरफ चक्कर लगाकर स्टडी करने वाला स्पेसक्राफ्ट भेजा जाएगा. (प्रतीकात्मक फोटोः ISRO) वीनस ऑर्बिटर मिशन में शुक्र ग्रह के चारों तरफ चक्कर लगाकर स्टडी करने वाला स्पेसक्राफ्ट भेजा जाएगा. (प्रतीकात्मक फोटोः ISRO)
ऋचीक मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 18 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 4:42 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने आज इसरो के लिए महत्वपूर्ण घोषणा कीं. कैबिनेट ने शुक्रयान यानी वीनस ऑर्बिटर मिशन (Venus Orbiter Mission - VOM) ने हरी झंडी दे दी है. चंद्रयान और मंगलयान की सफलता के बाद अब टारगेट है शुक्र ग्रह की स्टडी का. शुक्र हमारे ग्रह से नजदीक है. इसलिए इसकी स्टडी से नई जानकारियां मिलेंगी. 

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VOM में एक खास स्पेसक्राफ्ट तैयार किया जाएगा जो सिर्फ शुक्र ग्रह की स्टडी के लिए उसके चारों तरफ चक्कर लगाएगा. ताकि शुक्र ग्रह की सतह, उप-सतह, वायुमंडल, सूरज का प्रभाव आदि समझ सके. कहा जाता है कि एक समय शुक्र ग्रह रहने लायक ग्रह था लेकिन फिर वह बदल गया. इस बदलाव की भी स्टडी की जाएगी. 

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इस स्पेसक्राफ्ट को डेवलपर करने और उसे लॉन्च करने की जिम्मेदारी ISRO की होगी. माना जा रहा है कि यह मिशन मार्च 2028 में लॉन्च किया जाएगा. क्योंकि उस समय शुक्र ग्रह धरती के नजदीक होगा. साथ ही इसके लिए सरकार ने 1236 करोड़ रुपए का फंड अप्रूव किया है. जिसमें से 824 करोड़ रुपए सिर्फ शुक्रयान स्पेसक्राफ्ट पर खर्च होगा. 

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क्या कहा था इसरो चीफ ने शुक्रयान को लेकर? 

पिछले साल इसरो प्रमुख डॉ. एस सोमनाथ ने कहा था कि शुक्र के वायुमंडल और उसके एसिडिक व्यवहार को समझने के लिए जरूरी है वहां एक मिशन भेजना. ताकि वहां के वायुमंडलीय दबाव की स्टडी की जा सके. शुक्र ग्रह का वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी से 100 गुना ज्यादा है. सोमनाथ इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी (INSA) में लेक्चर दे रहे थे. 

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सोमनाथ ने कहा कि हमें अभी तक यह नहीं पता कि इतने ज्यादा दबाव की वजह क्या है. शुक्र के चारों तरफ जो बादलों की परत है. उसमें एसिड है. इसलिए कोई भी स्पेसक्राफ्ट उसके वायुमंडल को पार करके सतह तक नहीं जा सकता. सौर मंडल की उत्पत्ति की जानकारी हासिल करने के लिए शुक्र की स्टडी जरूरी है. शुक्र और मंगल ग्रह को ध्यान से देखें तो पता चलता है कि वहां जीवन क्यों नहीं है. इसे और गहराई से समझने के लिए जरूरी है कि वहां पर एक मिशन भेजा जाए. 

भारत का पहला शुक्र मिशन है शुक्रयान

28 में लॉन्चिंग नहीं हुई तो 2031 में बेहतरीन लॉन्च विंडो मिलेगा.  शुक्रयान ऑर्बिटर मिशन है. यानी स्पेसक्राफ्ट शुक्र के चारों तरफ चक्कर लगाते हुए स्टडी करेगा. इसमें कई साइंटिफिक पेलोड्स होंगे. लेकिन सबसे जरूरी दो पेलोड्स हैं- हाई रेजोल्यूशन सिंथेटिक अपर्चर रडार और ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार होंगे. 

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शुक्रयान अंतरिक्ष से शुक्र ग्रह की भौगोलिक सरंचना और ज्वालामुखीय गतिविधियों की स्टडी करेगा. उसके जमीनी गैस उत्सर्जन, हवा की गति, बादलों और अन्य चीजों की भी स्टडी करेगा. शुक्रयान एक अंडाकार कक्षा में शुक्र के चारों तरफ चक्कर लगाएगा. 

चार साल तक करेगा शुक्र ग्रह की स्टडी

शुक्रयान मिशन की लाइफ चार साल की होगी. यानी इतने समय तक के लिए स्पेसक्राफ्ट बनाया जाएगा. उम्मीद जताई जा रही है कि शुक्रयान को GSLV Mark II रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा. शुक्रयान का वजन 2500 किलोग्राम होगा. इसमें 100 किलोग्राम के पेलोड्स लगे होंगे. इसमें फिलहाल 18 पेलोड्स लगाने की खबर हैं हांलाकि यह फैसला बाद में होगा कि कितने पेलोड्स जाएंगे. इसमें जर्मनी, स्वीडन, फ्रांस और रूस के पेलोड्स भी लगाए जा सकते हैं. 

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