
बात है 14 अक्टूबर 2024 की. मुंबई से न्यूयॉर्क के लिए नॉन-स्टॉप फ्लाइट थी. एयर इंडिया का बोईंग 777 मुंबई से उड़ान भरता है. उसे जेएफके एयरपोर्ट जाना था. इस विमान में 130 टन फ्यूल था. यानी 1.30 लाख किलोग्राम. लेकिन टेकऑफ के कुछ मिनट बाद प्लेन को बम से उड़ाने की धमकी आती है.
विमान संख्या AI 119 को जैसे ही धमकी मिलती है. क्रू सीधे जाकर कॉकपिट में पायलट से बात करता है. इमरजेंसी की स्थिति आ जाती है. विमान को दिल्ली की तरफ घुमा दिया जाता है. ताकि जल्द लैंडिंग हो सके. विमान में 3.40 लाख से 3.50 लाख किलोग्राम वजन के बराबर यात्री, बैगेज और कार्गो था.
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विमान की लैंडिंग वेट क्षमता 2.50 लाख किलोग्राम थी. यानी करीब एक लाख किलोग्राम वजन ज्यादा. ऐसे में प्लेन को हल्का करना जरूरी था. फिर किया गया वो काम जिसे देखकर आप डरेंगे भी और हैरान भी होंगे. महंगे एविएशन फ्यूल को डंप किया गया.
लैंडिंग के समय वजन कम करना जरूरी
विमानन की दुनिया में सुरक्षा सबसे बड़ी चीज है. अगर कोई इमरजेंसी होती है तब इस तरह के बड़े विमान फ्यूल डंप करते हैं यानी ईंधन को हवा में गिराते हैं. क्योंकि विमान एक खास सीमा तक ही वजन उठाने की क्षमता रखते हैं. लैंडिंग वेट कम होना चाहिए, जबकि टेकऑफ वेट ज्यादा. बड़े विमान लैंडिंग के समय अगर ज्यादा भारी होंगे तो उन्हें खतरा हो सकता है.
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तीन हाथियों के वजन के बराबर फ्यूल
इस तरह के बड़े विमानों में करीब 5000 गैलन फ्यूल होता है. यानी तीन हाथियों के वजन के बराबर. अगर टेकऑफ के ठीक बाद इमरजेंसी लैंडिंग की स्थिति बनती है तो पायलट को तत्काल प्लेन का वजन कम करना होता है. इसलिए फ्यूल डंप किया जाता है. जिसे विमानन की भाषा में फ्यूल जेटिसन कहते हैं.
हवा में डंप करते ही उड़ जाता है ईंधन
विमान के विंग्स में मौजूद एक्स्ट्रा फ्यूल को निकाला जाता है. ताकि वो हवा में गायब हो जाए. आजकल के आधुनिक विमानों में ऐसी तकनीक है कि ये हर सेकेंड लाखों हजारों लीटर फ्यूल डंप कर सकते हैं. ये सिस्टम विंग्स पर लगे होते हैं. वहीं से इन्हें नॉजल और वॉल्व के जरिए आसमान में रिलीज कर दिया जाता है.
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चक्कर लगाकर भी खत्म करते हैं फ्यूल
कई बार विमान शहर के ऊपर चक्कर लगाकर फ्यूल को खत्म करते हैं. ताकि वजन कम कर सकें. फ्यूल डंप करने के लिए उचित ऊंचाई 6000 फीट या उससे ऊपर है. इस ऊंचाई पर गिरने वाला फ्यूल भांप बनकर हवा में उड़ जाता है. सभी विमानों में ऐसी सुविधा नहीं होती है.
सभी प्लेन में नहीं होती ऐसी तकनीक
बोईंग-737 या एयरबस-ए320 ऐसे डिजाइन के प्लेन हैं, जो मैक्सिमम टेकऑफ वेट के साथ ही लैंड करते हैं. क्योंकि इनका ढांचा पतला और लंबा होता है. जबकि चौड़े प्लेन जैसे 777 या 747 इन्हें लैंडिंग से पहले फ्यूल जेटिसन करना होता है. ताकि वजन को कम कर सकें.