
ISRO यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन अपने ह्यूमन स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम (Human Spaceflight Programme) के तहत गगनयान (Gaganyaan) मिशन चला रहा है. केंद्रीय विज्ञान मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि इसरो इस साल मई महीने में पैड अबॉर्ट टेस्ट (Pad Abort Test) करने जा रहा है. आखिर ये टेस्ट है क्या? ये क्यों जरूरी है? इस टेस्ट को करने से क्या होगा?
अबॉर्ट (Abort) का मतलब होता है मिशन को खत्म करना. पैड अबॉर्ट टेस्ट असल में लॉन्च एस्केप सिस्टम (Launch Escape System) है. असल में जिस तरह से फाइटर जेट में किसी तरह की इमरजेंसी या खराबी आने पर फाइटर पायलट सीट इजेक्ट कर लेता है. ठीक उसी तरह ह्यूमन स्पेसफ्लाइट मिशन के रॉकेट में लॉन्च एस्केप सिस्टम होता है. जिसमें क्रू-मॉड्यूल यानी उस केबिन को रॉकेट से अलग कर दिया जाता है, जिसमें एस्ट्रोनॉट्स बैठे होते हैं.
क्रू-मॉड्यूल के नीचे इंजन यानी बूस्टर लगे होते हैं. जैसे ही रॉकेट में किसी तरह की गड़बड़ी महसूस होती है. मॉड्यूल यानी एस्ट्रोनॉट्स के कैप्सूल के बूस्टर एक कमांड के साथ उसे रॉकेट से अलग कर देते हैं. अगर ये घटना वायुमंडल के नीचे होती है, तो कैप्सूल के बड़े-बड़े पैराशूट उसे आराम से जमीन या पानी में उतार देते हैं. अगर वायुमंडल के ऊपर होता है तो कैप्सूल पहले वायुमंडल को पार करता है. फिर एक तय ऊंचाई पर आकर पैराशूट खोला जाता है.
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पहले भी किया जा चुका है लॉन्च अबॉर्ट टेस्ट
मई 2023 में होने वाला परीक्षण पहली बार नहीं है. इससे पहले 5 जुलाई 2018 को इसरो ने ऐसा एक टेस्ट किया था. जो करीब 4 मिनट 25 सेकेंड तक चला था. उसमें क्रू-मॉड्यूल को एक रॉकेट से 2.75 किलोमीटर तक ले जाया गया था. उसके बाद पैड अबॉर्ट टेस्ट किया गया. रॉकेट से अलग होकर क्रू-मॉड्यूल सफलतापूर्वक पैराशूट के सहारे बंगाल की खाड़ी में गिरा. वह अपने लॉन्च पैड से उस समय करीब तीन किलोमीटर दूर खाड़ी में गिरा था.
क्या है इस पैड अबॉर्ट मिशन का नाम?
इसरो ने मई में होने वाले टेस्ट मिशन का नाम रखा है TV-D1 यानी टेस्ट व्हीकल डेमॉन्सट्रेशन. इसे अधिक ऊंचाई पर ले जाकर किया जाएगा. पहले यह इस साल फरवरी के महीने में किया जाना था. लेकिन किसी वजह से इसे टालकर मई किया गया है. इस बार अबॉर्ट टेस्ट 15-16 किलोमीटर की ऊंचाई पर किया जाएगा.
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जब यान समुद्र तल से हवा में 11 किलोमीटर की ऊंचाई पर होगा तब इन-फ्लाइट अबॉर्ट सीनेरियो को शुरू किया जाएगा. 15-16 किलोमीटर की ऊंचाई तक क्रू-मॉड्यूल यानी गगनयान यात्रा करेगा. वहां से कैप्सूल रॉकेट से अलग हो जाएगा. फिर एक सुरक्षित दूरी तय करने के बाद पैराशूट खुल जाएगा. इस बार कैप्सूल में उतना ही वजन डाला जाएगा, जितना एस्ट्रोनॉट्स के बैठने के बाद होता.
सफलता मिली तो भारत बनेगा चौथा देश
मिशन की ट्रैकिंग श्रीहरिकोटा में बैठे वैज्ञानिक मिशन कंट्रोल सेंटर से करेंगे. अगर यह मिशन सफल होता है तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का चौथा देश होगा, जिसके पास इस तकनीक में महारत हासिल होगी. इसके बाद इसी साल गगनयान मिशन का पहली मानवरहित उड़ान (Uncrewed Flight Mission) पूरा किया जाएगा. जिसे G1 नाम दिया गया है. ये उड़ान लोअर अर्थ ऑर्बिट तक होगी. यानी 150 किलोमीटर से 1000 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच.
इसके बाद अगले साल एक बार फिर अबॉर्ट टेस्ट किया जाएगा. जिसके बाद दोबारा मानवरहित उड़ान होगी. इसके बाद फिर से लोअर अर्थ ऑर्बिट में गगयान कैप्सूल की दूसरी ओअर अर्थ ऑर्बिट की उड़ान होगी. इनकी सफलता के बाद ही अगले साल गगनयान मिशन लॉन्च किया जाएगा. जिसमें एक से तीन एस्ट्रोनॉट्स सफलतापूर्वक एक छोटी ऑर्बिटल उड़ान करेंगे. यानी अंतरिक्ष में पहली बार अपने एस्ट्रोनॉट्स अपने यान से पहुंचेंगे.
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मिशन में गलती की कोई गुंजाइश नहींः इसरो वैज्ञानिक
वैज्ञानिक ने बताया कि यह मिशन ऐसा है कि इसमें किसी तरह की गलती स्वीकार नहीं की जा सकती. क्योंकि हम अपनी भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) के काबिल पायलटों को इसमें भेजेंगे. उनकी जान कीमती है. उन्हें भेजने से पहले इस मिशन के कई परीक्षण होंगे. अगले साल लॉन्चिंग की तैयारी है लेकिन यह आगे-पीछे हो सकता है. क्योंकि इस मिशन में गलती की कोई गुंजाइश नहीं है. हम किसी तरह की गलती नहीं करना चाहते.
एस्ट्रोनॉट्स नहीं गगननॉट्स बुलाए जाएंगे अंतरिक्षयात्री
गगनयान के लिए भारतीय वायुसेना के चार पायलटों ने रूस में अपने ट्रेनिंग पूरी कर ली है. इन्हें मॉस्को के नजदीक जियोजनी शहर के गैगरीन कॉस्मोनॉट्स ट्रेनिंग सेंटर में ट्रेनिंग हुई थी. इन्हें गगननॉट्स (Gaganauts) बुलाया जाएगा. भारतीय वायुसेना के चार पायलट जिनमें एक ग्रुप कैप्टन हैं. बाकी तीन विंग कमांडर हैं. फिलहाल इन्हें बेंगलुरू में गगनयान मॉड्यूल की ट्रेनिंग दी जा रही है.