
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आज श्रीहरिकोटा से Spadex मिशन को लॉन्च करेगा. रात 10 बजे इसे लॉन्च किया जाएगा. इसरो ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए इसकी जानकारी दी है. माना जा रहा है कि इसरो के इस मिशन की सफलता ही भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) के बनने और चंद्रयान-4 (Chandrayaan-4) मिशन की सफलता को तय करेगा. इसलिए इस लॉन्चिंग को बेहद अहम माना जा रहा है.
क्या है Spadex मिशन
इस मिशन में दो सैटेलाइट हैं. पहला चेसर दूसरा टारगेट. चेसर सैटेलाइट टारगेट को पकड़ेगा. उससे डॉकिंग करेगा. इसके अलावा इसमें एक महत्वपूर्ण टेस्ट और हो सकता है. सैटेलाइट से एक रोबोटिक आर्म निकले जो हुक के जरिए यानी टेथर्ड तरीके से टारगेट को अपनी ओर खींचे. ये टारगेट अलग क्यूबसैट हो सकता है.
मिलेगी ये सफलता...
इस प्रयोग से फ्यूचर में इसरो ऑर्बिट छोड़ अलग दिशा में जा रहे हिस्से को वापस कक्षा में लाने की तकनीक मिल जाएगी. साथ ही ऑर्बिट में सर्विसिंग और रीफ्यूलिंग का ऑप्शन भी खुल जाएगा. स्पेडेक्स मिशन में दो अलग-अलग स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में जोड़कर दिखाया जाएगा.
मिशन चंद्रयान-4 के लिए अहम
चंद्रयान-4 के लिए अंतरिक्ष में डॉकिंग बहुत जरूरी तकनीक है. डॉकिंग मतलब जो अलग-अलग हिस्सों को एकदूसरे की तरफ लाकर उसे जोड़ना. अंतरिक्ष में दो अलग-अलग चीजों को जोड़ने की ये तकनीक ही भारत को अपना स्पेस स्टेशन बनाने में मदद करेगी. साथ ही चंद्रयान-4 प्रोजेक्ट में भी हेल्प करेगी. स्पेडेक्स यानी एक ही सैटेलाइट के दो हिस्से होंगे. इन्हें एक ही रॉकेट में रखकर लॉन्च किया जाएगा. अंतरिक्ष में ये दोनों अलग-अलग जगहों पर छोड़े जाएंगे.
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कम लागत वाला मिशन
SpaDeX (Space Docking Experiment) मिशन ISRO का एक कम लागत वाला तकनीकी मिशन है. इसका उद्देश्य PSLV रॉकेट की मदद से अंतरिक्ष में दो छोटे यानों के डॉकिंग और अनडॉकिंग की प्रक्रिया को पूरा करना है. ISRO के अनुसार यह तकनीक भारत के भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों जैसे चांद पर इंसानी मिशन, चंद्रमा से नमूने लाना, और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) के निर्माण और संचालन के लिए बेहद अहम है.
बनेगा दुनिया का चौथा देश
ISRO ने बताया कि यह तकनीक तब जरूरी होती है जब एक ही मिशन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कई रॉकेट लॉन्च की जरूरत पड़ती है. अगर यह मिशन सफल होता है, तो भारत दुनिया का चौथा देश बन जाएगा, जो इस तकनीक को हासिल कर चुका है. अबतक अमेरिका, चीन और रूस के पास ही ये तकनीक है.