
क्या गर्मियों में ठंडा पानी और सर्दियों में शॉवर से गिरता भाप वाली गर्म पानी आपके दिमाग में आइडिया पैदा करता है? दशकों से इसे वैज्ञानिक शॉवर इफेक्ट (Shower Effect) कहते आए हैं. अब दो नए प्रयोग किए गए ताकि यह पता चल सके कि आखिर बाथरूम में ही बेस्ट आइडिया क्यों आते हैं? खैर बात करते हैं पहली स्टडी की... जिसे किया है वर्जिनिया यूनिवर्सिटी में फिलॉस्फी ऑफ कॉग्नीटिव साइंस के शोधकर्ता जैक इरविंग ने.
जैक का कहना है कि बेवजह का कंसेंट्रेशन आपकी कल्पनाशीलता या रचनात्मकता की दुश्मन होती है. किसी एक समस्या का समाधान खोजने के लिए लगातार काम करने के बजाय बेहतर है कि आप ब्रेक लें. या फिर थोड़ी देर कुछ दूसरे काम करें. जैसे की बाथरूम में नहाना. बाथरूम का वातावरण आपके दिमाग को फ्री करता है. आप अलग-अलग दिशाओं में सोचना शुरू करते हैं. लेकिन बिना किसी कंसेंट्रेशन के. बिना किसी बाधा के. आप विचारों के लहरों के गोते लगाने लगते हैं. अलग-अलग तरह के विचार. अलग-अलग सबजेक्ट पर. इसलिए वहां से एक बेहतरीन आइडिया सामने आने की संभावना ज्यादा रहती है.
अगर आप कोई बेहद बोरिंग काम लगातार कर रहे हैं, तो आपकी क्रिएटिविटी और नए आइडिया खत्म होने लगेंगे. आपका ध्यान असली समस्या से हट जाएगा. आप सिर्फ एक ही समस्य पर अटक कर रह जाएंगे. किसी पेंट होती दीवार को देखना एक बोरिंग काम है. या फिर एक जैसा काम लगातार एक ही रूटीन में करना. जब तक आप कुछ ऐसा नहीं करते जिसमें खुद शामिल न हों. जैसे- पैदल चलना, बागबानी करना या फिर नहाना. ये आपको कम लेवल पर व्यस्त रखते हैं. इससे क्रिएटिविटी बढ़ती है.
इतिहास इस बात का गवाह है कि शॉवर इफेक्ट पर किए गए रिसर्च के नतीजे एक जैसे नहीं थे. जब आप कोई ऐसा काम करते हैं, जिसमें किसी तरह की डिमांड नहीं होती. जैसे- ध्यान लगाने की, गलतियां न करने की. यानी जैसे नहाना, या टॉयलेट जाना, तब आपका दिमाग मुक्त होता है बंधनों से. फिर वह सोचना शुरू करता है. इधर-उधर के बारे में सोचता है. लेकिन यह बात और कई स्टडीज प्रमाणित करने में चूक गईं.
जैक इरविंग ने कहा कि पुराने एक्सपेरिमेंट्स के डिजाइन में भी गलतियां हो सकती है. इसलिए पुरानी स्टडीज यह पता नहीं कर पाई थीं कि फ्री थिंकिंग (Free Thinking) और फोकस्ड थिंकिंग (Focused Thinking) में संतुलन रखना पड़ता है. पुरानी स्टडीज ये नहीं बताते थे कि दिमाग क्यों इतना फ्री होता है नहाते समय. जबकि वो ये स्टडी कर रहे थे कि दिमाग का ध्यान बंटता कैसे हैं. साल 2015 में एक स्टडी आई थी, जिसमें कहा गया था कि अगर इंसान अपने काम से अलग ज्यादा सोचता है, तो वह क्रिएटिव आइडिया नहीं ला सकता. यानी बिना फोकस वाले विचार बेकार होते हैं.
इसलिए जैक इरविंग और उनके साथियों ने दो एक्सपेरीमेंट डिजाइन किए. पहले प्रयोग में 222 लोग पार्टिसिपेट कर रहे थे. इनमें ज्यादातर महिलाएं थीं. शुरुआत में इन पार्टिसिपेंट्स को कहा गया कि 90 सेकेंड में ईंट या पेपर क्लिप को लेकर कोई सटीक आइडिया लेकर आओ, जो अभी यूज नहीं हो रहा है. इसके बाद प्रयोग में भाग लेने वाले लोगों को 1 से 2 हफ्ते का एक टास्क दिया गया. पहले समूह को हैरी मेट सैली फिल्म का तीन मिनट का एक सीन देखने को कहा गया. दूसरे ग्रुप को एक तीन मिनट की सीन देखने को दिया गया, जिसमें एक इंसान धोने के लिए कपड़े लेकर खड़ा है.
वीडियो देखने के बाद दोनों समूहों के 45 सेकेंड का समय दिया गया ताकि वो अपने पुराने टास्क में कोई नया आइडिया जोड़ सकें. अंत में पार्टिसिपेंट्स से पूछा गया कि वीडियो सेगमेंट के समय उनका दिमाग कितना चला. फिर पता चला कि जो लोग धोने के कपड़े लिए खड़े इंसान को देख रहे थे, वो बोर हो गए. लेकिन इस बीच उनके दिमाग में ज्यादा बेहतर आइडिया आए. जबकि जो लोग फिल्म का सीन देख रहे थे, उनके दिमाग में अच्छे आइडिया नहीं आए. दूसरे एक्सपेरिमेंट से भी ऐसे ही नतीजे आए.
नतीजा ये निकला कि जब आपका दिमाग फ्री होता है, तब आप बेहतर आइडिया ला पाते हैं. चाहे वह बोरिंग वीडियो देखकर आए या फिर बाथरूम में आए. यह स्टडी हाल ही में साइकोलॉजी ऑफ एस्थेटिक्स, क्रिएटिविटी एंड द आर्ट्स में प्रकाशित हुई है.