
अक्टूबर से फरवरी तक दिल्ली के फेफड़ों में जहरीली हवा ही जाती है. कभी कम तो कभी ज्यादा. लेकिन 14 दिसंबर से 17 दिसंबर के बीच ऐसा क्या हो गया कि हालात इतने बिगड़ गए. हालात इतने बिगड़ गए कि GRAP-4 लगाना पड़ा. यानी सीएनजी, एलएनजी, बीएस-4 के अलावा सारे ट्रक्स राजधानी के बाहर रोक दिए गए. कम वजन के भारी मालवाहक वाहनों को रोक दिया गया. सभी कंस्ट्रक्शन कार्य रोक दिए गए.
स्कूलों को हाइब्रिड मोड पर चलाने को कहा गया है. निजी संस्थानों में वर्क फ्रॉम होम देने का निर्देश भी आ सकता है. ये फैसला सरकार करेगी. राज्य सरकार चाहे तो ऐसे में शिक्षण संस्थानों को बंद कर सकते हैं. कई तरह के सख्त नियम-कायदे लागू कर दिए गए हैं. ताकि दिल्ली और आसपास के लोगों को प्रदूषण से राहत मिल सके. 24 घंटे में दिल्ली का औसत AQI 379 हो गया. छह घंटे के अंदर में यह 400 पार कर गया.
पर अचानक से हवा कैसे बदल गई?
मौसम विभाग कहता है कि इस समय हवा बेहद शांत है. इसकी वजह से इन्वर्जन लेयर बन गया है. यानी प्रदूषणकारी तत्व दिल्ली के ऊपर वर्टिकली मिल रहे हैं. यानी वो ऊंचाई जहां से पॉल्यूटेंट फैलना शुरू होते हैं. लेकिन इस समय फैल नहीं पा रहे हैं. एक ही जगह टिके हुए हैं. नवंबर के बाद गार्प-4 पहली बार लगाया गया है. क्योंकि प्रदूषण का स्तर लगातार बिगड़ा हुआ है.
इसे आप ऐसे समझ सकते हैं जैसे किचन में जब किसी चीज का छौंका लगाते हैं, तब आप जल्दी से चिमनी ऑन करते हैं. ताकि धुआं तेजी से बाहर निकल जाए. लेकिन अगर वहीं चिमनी ऊपर से बंद कर दी जाए तो धुआं घर में फैलेगा. सांस लेने में दिक्कत होगी. छींक आएगी. ठीक ऐसी ही स्थिति दिल्ली में इस समय बनी हुई है.
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सर्दियों की हवा कैसे प्रदूषित हो जाती है?
दिल्ली-एनसीआर में उत्सर्जन लगातार लगभग एक जैसा ही रहता है. लेकिन सर्दियों के महीनों में प्रदूषण का स्तर भयावह हो जाता है. खासतौर से अक्टूबर से फरवरी तक. इसके पीछे कई तरह की वजहें हो सकती हैं. जैसे तापमान का गिरना. यानी ठंडी हवा जमीन के नजदीक फ्लो करती है. इसमें प्रदूषणकारी तत्व आसानी से मिल जाते हैं. इनका डिस्पर्सन यानी फैलाव रुक जाता है.
दूसरी बात ये कि अगर हवा की गति धीमी हो तो प्रदूषणकारी तत्व फैल नहीं पाते. इसके अलावा आसपास के राज्यों में पराली जलाने से मुसीबत बढ़ जाती है. खासतौर से पंजाब और हरियाणा. इनसे निकलने वाला धुआं जब दिल्ली-एनसीआर की ठंडी हवा से मिलता है तो मुसीबत और बढ़ जाती है.
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दिल्ली के प्रदूषण की असली वजह क्या है?
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की स्टडी के मुताबिक इस साल अक्टूबर से नवंबर तक दिल्ली में वायु प्रदूषण की असली वजह शहर में पैदा होने वाला पॉल्यूशन है. यानी 51.5 फीसदी प्रदूषण शहरी प्रदूषण है. आसपास के जिलों से 34.97 फीसदी प्रदूषण आता है. खेतों की आग यानी पराली जलाने से 8.19 फीसदी और धूल की वजह से 3.7 फीसदी प्रदूषण होता है. यानी सबसे बड़ी समस्या तो दिल्ली के अंदर ही है.
दिल्ली के अंदर प्रदूषण की 51.5 फीसदी वजह से खुद दिल्ली है. यानी यहां पर प्राकृतिक और मानव-निर्मित वजहों का मिश्रण होता है. जैसे निर्माण कार्य, लैंडफिल, इंसानों द्वारा पैदा किया जा रहा प्रदूषण. खेती-किसानी का काम. यहां से काफी ज्यादा मात्रा में धूल निकलता है. इससे हवा में पार्टिकुलेट मैटर बढ़ जाता है.
इसके बाद कचरे को जलाना जिससे खतरनाक जानलेवा धुआं और राख निकलती है. ये हवा में मिलकर उसे और जहरीला बना देते हैं. उद्योगों से सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड्स और अन्य ज्वलनशील ऑर्गेनिक पदार्थ निकलते हैं. बची हुई कसर हैवी ट्रैफिक से निकलने वाला प्रदूषण कर देता है.