
पाकिस्तान और नेपाल हंगर इंडेक्स के मामले में भारत से आगे हैं. कैसे भाई? इन दोनों गरीब और कमजोर देशों के पास इतना अनाज कहां से आ गया कि वो हंगर इंडेक्स में भारत से आगे हैं. क्या भारत के लोग भूखे सोते हैं? फर्जी है ये इंडेक्स, कुछ भी लिख देते हैं? अरे भारत के पास इतनी जमीन है... खेत हैं. इतनी पैदावार है. फिर हंगर इंडेक्स में भारत इन दोनों देशों से पीछे कैसे?... ऐसे कई सवाल आपके मन में आ रहे होंगे. जायज सी बात है. आने भी चाहिए.
जो पाकिस्तान बाढ़ आने पर भारत से अनाज की मदद मांगता हो. नेपाल में किसी भी प्राकृतिक आपदा में भारत सबसे पहले मदद करता है, ऐसे में इस बात पर भरोसा नहीं होता कि भारत इन दोनों देशों से ग्लोबल हंगर इंडेक्स में पीछे खिसक गया है. साल 2000 से ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) लगातार जारी हो रहा है. इसे निकालने का मकसद ये है दुनियाभर के देश साल 2030 तक जीरो हंगर (Zero Hunger) के लक्ष्य को हासिल कर लें. यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा बनाए गए सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स में से एक है.
ग्लोबल हंगर इंडेक्स यानी GHI में ज्यादा आय वाले देशों को शामिल नहीं किया जाता. आमतौर पर भूख को नापने का क्या पैमाना है. यानी शरीर में कितनी मात्रा में कैलोरी जा रही है. लेकिन GHI इस चीज को नहीं देखता. वह भूख की सामान्य परिभाषा को नहीं मानता. कई और चीजों को शामिल करता है. इनमें कई चीजों को शामिल कर लेता है. जैसे माइक्रोन्यूट्रीएंट्स की कमी आदि. अब समझते हैं कि GHI भूख को कैसे नापता है? वह चार चीजों पर ध्यान देता है.
इन चार पैमानों पर बनता है हंगर इंडेक्स
पहला- अल्पपोषण (Undernourishment) यानी खाने की सामग्री की पर्याप्त मात्रा मौजूद नहीं है. खाने के सामग्री की मौजूदगी और अल्पपोषित आबादी का हिस्सा. यानी पूरी कैलोरी शरीर में नहीं जा रही है.
दूसरा- Child Wasting यानी पांच साल के उम्र से कम के बच्चे जो बुरी तरह से अल्पपोषित हैं. इसका सही मतलब ये होता है कि बच्चे अपनी हाइट के हिसाब से कितने वजनी है. अगर वजन कम है तो उसे चाइल्ड वेस्टिंग कहते हैं.
तीसरा- Child Stunting यानी पांच साल से कम उम्र के वो बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से सही हाइट हासिल नहीं कर पाए. यानी क्रोनिक अल्पपोषण (Chronic Undernutrition) की स्थिति.
आखिरी- Child Mortality यानी पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत की दर, वह भी पोषण की कमी की वजह से. दूसरा अस्वस्थ पर्यावरण की वजह से.
कैसे मिलता है देशों को इंडेक्स में स्थान?
हर देश को 100 अंकों के स्केल पर नापा जाता है. अंतिम स्कोर की गणना अल्पपोषण और बाल मृत्युदर, दोनों को 33.33% अंक और चाइल्ड वेस्टिंग और चाइल्ड स्टंटिंग को 16.66% के अंक पर मापा जाता है. जिन देशों को 9.9 या उससे कम अंक मिलते हैं, उन्हें भूख की Low कैटेगरी में डाला जाता है. जिनका अंक 20 से 34.9 होता है, उन्हें Serious कैटेगरी में डाला जाता है. जिनका अंक 50 या उससे ऊपर होता है उसे Extremely Alarming कैटेगरी में डाल दिया जाता है.
भारत को 29.1 स्कोर मिला है. यानी यह Serious कैटेगरी में आता है. जबकि नेपाल को 81, पाकिस्तान को 99, श्रीलंका को 64 और बांग्लादेश को 84 अंक मिले हैं. साल 2000 में भारत का यह स्कोर 38.8 था. जो साल 2014 में घटकर 28.2 हो गया था. उसके बाद से लगातार भारत का हंगर इंडेक्स स्कोर बढ़ता जा रहा है.
क्या हंगर इंडेक्स में सच में नापी जाती है 'भूख'?
पिछले साल सितंबर में इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई. जिसका नाम था Global Hunger Index does not really measure hunger - An Indian perspective. भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. दुनिया में कई मामलों और इंडिकेटर्स में आगे हैं. लेकिन हर बार हंगर इंडेक्स में यह पीछे क्यों रह जाती है. GHI के पैमानों की जांच करने के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) को कहा गया. जांच की गई. पता चला कि भूख को नापने का GHI का पैमाना सही नहीं है. हर देश का अपना पैमाना होना चाहिए भूख को नापने का. क्योंकि हर देश की परिस्थितियां, पर्यावरण और खान-पान अलग है.
GHI जिन चार चीजों से भूख को नापती है वो हैं- अल्पपोषण, चाइल्ड स्टंटिंग, चाइल्ड वेस्टिंग और चाइल्ड मॉर्टेलिटी. इन चारों से भूख नहीं नापी जाती. इन चारों से सेहत की स्थिति पता की जा सकती है. ऐसे में इसे हंगर इंडेक्स का नाम देना असंगत होगा. GHI में जो डेटा प्रतिशत में शामिल किया जाता है, लोग उसे सामान्य आबादी के बीच भूखे लोगों की संख्या से जोड़ लेते हैं. जो कि गलत है. भारत उन कुछ देशों में से एक रहा है, जो साल 2009-10 तक कई तरह के सर्वे करके भूख से संबंधित अपरोक्ष डेटा जमा करता रहा है.
लोगों से इस सर्वे में पूछा जाता था कि क्या आपको हर रोज दो समय खाना मिलता है. ये सर्वे करता था NSSO. इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य भी था. अब ऐसा माना जा रहा है कि इस तरह के डेटा को फिर से जमा करने की जरूरत है. भूख को मापना एक संवेदनशील मुद्दा है. इसे नापने के लिए आजकल फूड इनसिक्योरिटी एक्सपीरिएंस स्केल (FILES) का प्रचलन है. दूसरे तरीके हैं फूड एंड न्यूट्रीशन टेक्निकल असिसटेंस (FANTA), फूड एक्सेस सर्वे टूल (FAST) और मॉडिफाइड वर्जन है MFAST. भारत में इन तरीकों से भी भूख नापी जा सकती है.