
बादल छाए रहेंगे पूरे दिल्ली-एनसीआर में. लेकिन बारिश होगी कहीं-कहीं. पहले भी ऐसा होता था लेकिन अब सेलेक्टिव बारिश की मात्रा बढ़ती जा रही है. इस बार राष्ट्रीय राजधानी के कई जिलों में ऐसा ही देखने को मिला. साइंस के लिए लिखने वाली मैगजीन DTE में इस पर एक विस्तृत लेख लिया गया है.
इसमें भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के हवाले से बताया गया है कि 1 जून से 10 जुलाई के बीच पश्चिमी दिल्ली में सामान्य से 99 फीसदी कम बारिश हुई. लेकिन बगल के ही उत्तर-पश्चिम दिल्ली में सामान्य से 122 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है. यानी पश्चिमी दिल्ली में 1 मिलिमीटर और उत्तर-पश्चिम दिल्ली में 183 मिलिमीटर बारिश हुई.
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पश्चिमी दिल्ली के पूसा के ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन (AWS) और उत्तर-पश्चिम दिल्ली के पीतमपुरा के वेदर स्टेशन के बीच की दूरी 12 किलोमीटर है. दिल्ली में 12 AWS हैं. एक ऑटोमैटिक रेन गॉज, चार पार्ट टाइम ऑब्जरवेशन और पांच सिनोप्टिक मैन्युअल ऑब्जरवेटरी. इनके जरिए दिल्ली-एनसीआर और आसपास के इलाकों के मौसम का डेटा लिया जाता है.
पूरी दिल्ली में सामान्य से ज्यादा बारिश पर हिस्सों में कम
दक्षिणी दिल्ली में अब तक सामान्य से 23 फीसदी कम बारिश हुई है. दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में 11 फीसदी कम और मध्य दिल्ली में 9 फीसदी कम. ये आंकड़ा है 1 जून से 10 जुलाई के बीच का. 10 जुलाई को पूरी दिल्ली की बारिश सामान्य से 11 फीसदी अधिक थी. दिल्ली में मॉनसून ने 27-28 जून को धमाकेदार एंट्री की थी.
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मॉनसून आया तो स्वागत में खड़े थे अन्य मौसमी पैटर्न भी
दिल्ली में जब मॉनसून आया तब अन्य स्थानीय मौसमी पैटर्न भी बने थे. साथ ही पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance) की भी आमद हो रखी थी. इसके अलावा अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से आने वाली नमी का भी प्रभाव था. इसकी वजह से यहां पर मीजोस्केल कन्वेक्टिव सिस्टम बना था. यानी ऐसा मौसम जिसमें थंडरस्टॉर्म अपने साथ बारिश वाले बादलों को 100 किलोमीटर तक अपने साथ ले जा सके.
जून महीने में इतिहास की दूसरी सबसे भयानक बारिश
इसकी वजह से 28 जून को दिल्ली में भयानक बारिश हुई. दिल्ली का बड़ा इलाका पानी में डूब गया. सफदरजंग स्थित मौसम विभाग के स्टेशन ने एक ही दिन में 228.1 मिलिमीटर बारिश दर्ज की. जून महीने के इतिहास में दूसरी बार सबसे ज्यादा बारिश. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बारिश से जुड़े हादसों में 14 लोगों की मौत हो गई.
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दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में बादलों का ये ड्रामा क्यों?
वैज्ञानिकों ने इसकी कई वजहें बताई हैं. ये भी बताया है कि जब ये सब साथ मिलकर काम करते हैं, तब ऐसा होता है. ये वजहें हैं- वायुमंडलीय गर्मी, सतह की गर्मी का अंतर, हवा द्वारा सतह पर होने वाले घर्षण, नमी, हरियाली, जलाशयों की मौजूदगी और प्रदूषण. ये सब मिलकर दिल्ली के मौसम में खलल डालते हैं.
एक्सपर्ट ने बताई बारिश में अंतर की असली वजह
आईआईटी भुवनेश्वर में स्कूल ऑफ अर्थ, ओशन और क्लाइमेच साइंसेस में एसोसिएट प्रोफेसर वी. विनोज ने इसका खुलासा किया. उन्होंने बताया कि ऊपर बताई गई वजहों में से कुछ बारिश को बढ़ा सकती हैं. जैसे हरियाली. हवा में एयरोसोल. लेकिन कुछ बारिश को एक जगह से दूसरी जगह खिसका सकती हैं. जैसे- सतह की गर्मी, हवा की दिशा और ताकत.
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नमी और गर्मी बनाते हैं लो प्रेशर एरिया, होती है बारिश
जब नमी की मौजूदगी में सतह या जमीन गर्मी होती है, तब इससे लो प्रेशर एरिया बनता है. इसकी वजह से बारिश होती है. इमारतों की सतह हवाओं के साथ घर्षण पैदा करती हैं. इससे हवा के बहाव में बाधा पैदा होती है. हवा धीमी हो जाती है. ऐसी जगहों पर नमी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है.
प्रदूषण से आते हैं थंडरस्टॉर्म, बढ़ती है वायुमंडल की गर्मी
प्रदूषण की वजह से एयरोसोल अपना खेल दिखाते हैं. इनकी वजह से थंडरस्टॉर्म वाले बादल बनते हैं. अगर पर्याप्त समय मिलता है तो ये बादल फैलते हैं. बड़े होते जाते हैं. इससे कुछ इलाकों में तेज बारिश होती है. थंडरस्टॉर्म आते हैं. ये सभी फैक्टर्स को प्रभावित करता है वायुमंडलीय गर्मी.
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शहरों के बीच फंसी गर्मी बनाता है हीट आइलैंड इफेक्ट
वायुमंडलीय गर्मी को बढ़ाने में अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट भी काम करता है. वी. विनोज ने कहा कि अगर आपको किसी शहर में बारिश के पैटर्न को समझना है तो इन सभी फैक्टर्स और उनके रिलेशन का एनालिसिस करना होगा. वो और उनके साथी ऐसे कई शहरों की स्टडी कर रहे हैं. ताकि यह पता चल सके कि शहरीकरण की वजह से उस शहर के मौसम में किस तरह का और कितना बदलाव आया है.